प्रियंका गांधी की सोमवार से शुरू चुनावी गंगा यात्रा के दौरान भी वह इन मुद्दों पर जेहन में रखे हैं। इसी के तहत प्रियंका गांधी लोगों से आत्मीय संबंध बनाने में जुटी हैं। उनकी कोशिश लोगों के दिलों में उतरना है। नांव पर चलते वक्त जब गंगा किनारे खडे लोग प्रियंका गांधी जिंदाबाद के नारे लगाते हैं तो वह नाव से ही उनसे पूछती हैं, ‘इतनी दूरी से कैसे पहचान लिया।” उन लोगों तक उनकी आवाज नहीं पहुंचती है तो उन्हें माइक सौंपी जाती है और जैसे ही प्रियंका की आवाज सुनाई देती है तो लोग खुशी से झूम उठते है।
इतना ही नहीं प्रियंका अब तक के दौरे में कार्यकर्ताओं, नेताओं से कहीं ज्यादा आम आदमी को तवज्जो दे रही हैं। वह किसी महिला के हाथ से पानी पी रही हैं तो किसी बच्ची के कंधे पर हाथ रखती हैं। उसे माला पहनाती हैं। उसे दूर तक साथ-साथ ले जाती है। बच्चों संग सेल्फी खिंचवाने से भी गुरेज नहीं करती हैं। जगह-जगह फोटो सेशन का दौर होता है।
जहां भी लोग दिखते हैं हाथ हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है। वह रुकती हैं, छतों पर जमा लोगों के अभिवादन को भी दिल से स्वीकार करती हैं। यहां तक कि एसपीजी घेरे में चल रहीं प्रियंका रस्सा उठा कर एक गरीब के घर में घुस जाती हैं, वहां महिलाओं से मिलती हैं। गले लगाती है।
प्रियंका गंगा किनारे बसने वाली जातियों बिंद, निषाद, जुलाहा, लोधी, कुशवाहा और कुर्मियों में भी पैठ बनाने की कोशिश में है। इसी के तहत वह मल्लाह सम्मेलन कर रही हैं। ये वही वोटबैंक हैं जो कभी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक हुआ करते थे। लेकिन इसमें से कुछ को बसपा ले उड़ी तो कुछ को सपा ने जोड़ लिया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने बसपा से इन सभी को छीन लिया। अब इसमें सेंधमारी की रणनीति पर काम कर रही है कांग्रेस।
ऐसा नहीं कि कांग्रेस और प्रियंका गांधी केवल दलितों, अति पिछड़ों और अन्य पिछड़ी जातियों पर ही फोकस कर रही है बल्कि उनका फोकस ब्राह्मणों पर भी है। अब अगर बात करें, प्रियंका के इस गंगा यात्रा के आरंभ की तो वह प्रयागराज के सिरसा पहुंची तो वहां ब्राह्मणों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। बता दें कि यहां सिरसा, उरुवा, सुकुलपुर और पंडित का पुरा क्षेत्र के ब्राह्मण थे। यहां यह भी बता दें कि ये सभी गांव ब्राह्मण बहुल है। यहां करीब 50 हजार ब्राह्मण है। इसी क्षेत्र से विधायक रहे केपी तिवारी जो 1980 के दशक में जब प्रदेश में कांग्रेस की अंतिम सरकार थी तो वह ऊर्जा मंत्री भी रहे। इस बार भी तिवारी ने प्रियंका के इस दौरे पर काफी मेहनत की और ब्राह्मणों को जुटाया।
कांग्रेस और प्रियंका का फोकस केवल जाति आधारित इंजीनियरिंग पर नहीं है। बल्कि वह सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड को भी जम कर खेल रही है। इसी का नतीजा है कि राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से लेकर मिर्जापुर तक कोई बड़ा मंदिर नहीं छोड़ा। यहां तक कि प्रोटोकाल को तोड़ते हुए वह संगम तट पर पहुंच गईं और दादी इंदिरा गांधी की तर्ज पर मां गंगा का पूजन-अर्चन किया। दुग्द्धाभिषेक किया। फिर वह बड़ा हनुमान जी, लेटे हनुमान जी का भी दर्शन किया। फिर मिर्जापुर में मां विंध्यवासिनी, काली खोह, अष्टभुजा, चंद्रिका देवी का दर्शन-पूजन किया। वह कंतित दरहगार भी गईं और चादर चढाई। अभी उन्हें बूढेनाथ मंदिर चुनार के अलावा बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन-पूजन करना है।