बीते 25 वर्षों से बुनकरों, शिल्पियों, भूमिहीन महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे सारनाथ के मवइयां में रहने वाले डॉ. रजनीकांत मूल रूप से मिर्जापुर जिले के चुनार थाना के जलालपुरमाफी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से शिल्पकारों को आर्थिक रूप से सबल बनाने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही बनारस और आसपास के शिल्प उत्पादों को जीआई के तहत पेटेंट कराया।
गत 25 जनवरी को जब डॉ. रजनीकांत को पद्मश्री की उपाधि देने की घोषणा की गई थी तब उन्होंने पत्रिका से बातचीत में कहा था कि यह पुरस्कार बनारस सहित पूर्वांचल के शिल्पियों, बुनकरों और भूमिहीन महिलाओं को समर्पित है। इस पुरस्कार ने समाज हित में अब और ज्यादा बेहतर करने की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। डॉ. रजनीकांत ने पूर्वांचल के बुनकरी से जुड़े घरेलू उत्पादों को वैश्विक मंच दिलाने में अहम भूमिका निभाई। स्वयं सहायता समूहों की नींव डालने वालों में से रहे। अब तक नौ उत्पादों का जीआई पंजीयन कराया और सात उत्पाद पंजीयन की प्रक्रिया में हैं। 2017 में बौद्धिक संपदा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था