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प्रियंका गांधी का करिश्मा क्या बदल पाएगा 30 साल से UP में लगातार नीचे गिरते कांग्रेस के ग्राफ का आंकड़ा

locationवाराणसीPublished: Mar 25, 2019 12:21:30 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

जानें यूपी में कांग्रेस की 1951 से 2014 तक की स्थिति
 
-अंतिम बार 1984 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 83 सीटों पर कब्जा किया थातब पार्टी ने 85 उम्मीदवार ही उतारा था-आजादी के बाद से यूपी में कांग्रेस का यह सबसे दमदार प्रदर्शन रहा- यहां तक कि 1951 के पहले चुनाव में भी पार्टी 81 सीट ही जीत पाई थी

प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. यूपी की सियासत में कांग्रेस पिछले 30 साल से नीचे की ओर ही गई है। तीन दशक से उसे न कोई ऐसा दमदार नेता मिला जो पार्टी की नैया का खेवनहार बन सके। हालांकि इन 30 सालों में कांग्रेस कई बार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई। यहां तक कि यह वो दौर है जिसमें राजीव गांधी भी रहे। लेकिन वह भी कुछ खास नहीं कर सके। 1984 में आखिरी बार कांग्रेस ने रिकार्ड सीटें जीती थीं। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक उसका श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को देते हैं। अब 2019 में एक बार फिर से कांग्रेस अपनी खोई जमीन की तलाश में है। इसी के तहत तुरुप का पत्ता के रूप में इंदिरा गांधी की पौत्री प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा गया है। उम्मीद की जा रही है कि दादी के नक्शे कदम पर चलने वाली प्रियंका कांग्रेस के गिरते ग्राफ में सुधार करेंगी।
काफी आजमाए हाथ

बता दें कि इन 30 सालों में कांग्रेस ने अपने को फिर से प्रदेश की राजनीति की मुख्य धारा में वापसी के काफी प्रयास किए। क्षेत्रीय दलों से गठबंधन भी किया। इसमें कभी बसपा के साथ दोस्ती की तो कभी सपा के साथ। लेकिन इससे उसका नुकसान ही हुआ। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो बसपा से गठबंधन के बाद कांग्रेस का परंपरागत दलित वोटबैंक भी उसके हाथ से खिसक गया। इन्हीं 30 सालों में यूपी में मंडल-कमंडल का दौर भी आया, रामजन्म भूमि विवाद भी हुआ, अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया। इन सबका लाभ परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भाजपा को मिला। कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण का आरोप भी लगा। नतीजा यह कि उसका परंपरागत ब्राह्मण वोटबैंक भी भाजपा की ओर शिफ्ट हो गया। 2014 में तो रही सही कसर भी पूरी हो गई जब कांग्रेस महज मां-बेटे यानी सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जीत तक ही सिमट कर रह गई। राहुल गांधी भी भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी से महज एक लाख मतों से ही जीत पाए।
आंकड़े बताते हैं कि कभी 53 प्रतिशत के इर्द-गिर्द वोट पाने वाली कांग्रेस को यूपी में 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 07 फीसदी वोट के भी लाले पड़ गए। 1951 के लोकसभा सभा चुनाव में इस पार्टी ने प्रदेश की 86 सीटों में से 81 सीटें जीत ली थी। तब इसका सबसे अधिक 52.99 वोट प्रतिशत था लेकिन उसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर कांग्रेस का ग्राफ नीचे ही गिरता चला गया। 1984 में कांग्रेस ने 51.03 प्रतिशत मत हासिल कर 85 में से 83 सीटें जीत ली लेकिन 1991 के बाद पार्टी की जो दशा खराब हुई कि 1998 के चुनाव तक पार्टी दहाई की संख्या भी नहीं छी पाई। 1999 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को बमुश्किल 10 सीटें हासिल हुई। हालांकि 2009 में 21 सीटों पर सफलता हासिल हुई।
1980 सबसे बेहतरीन साल

पार्टी ने वर्ष 1980 में विधान सभा चुनाव में 424 में से 309 सीटें और 1985 में 425 में से 269 सीटें जीत लीं। वोट प्रतिशत भी 39.25 फीसदी तक पहुंच गया लेकिन इसके बाद कांग्रेस की हालत फिर से खराब होना शुरू हो गई। ’90 के दशक के बाद इस पार्टी के लिए दो विधान सभा चुनाव ऐसे भी आए जिसमें पार्टी के करीब 85 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी। वोट प्रतिशत भी 8 प्रतिशत के करीब पहुंच गया।
2017 विधानसभा परिणाम सबसे निराशाजनक

2017 के विधानसभा चुनाव इसने सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए मात्र 6.25 प्रतिशत वोट हासिल किए। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री व राजीव गांधी जैसे दिग्गज प्रधानमंत्री देने वाली कांग्रेस प्रदेश में फिर से खोया जनाधार पाने के लिए जद्दोजहद में लगी है।
यूपी लोकसभा चुनाव : कांग्रेस की स्थिति 1951 से 2014

क्रम- चुनाव वर्ष-उम्मीदवारों की संख्या- विजयी-प्रतिशत

1. 1951 86 81 52.99

2. 1957 86 70 46.29

3. 1962 86 62 38.02
4. 1967 85 47 33.44

5. 1971 85 73 48.54

6. 1977 85 00 24.09

7. 1980 85 51 35.09

8. 1984 85 83 51.03

9. 1989 85 15 31.77
10. 1991 85 05 18.02

11. 1996 85 05 08.14

12. 1998 85 00 06.02

13. 1999 85 10 14.72

14. 2004 80 09 12.04

15. 2009 80 21 27.42
16. 2014 80 02 7.53

2009 और 2014 में पूर्वांचल में विभिन्न दलों की स्थिति

पार्टी- 2009- 2014
भाजपा-09-23
अपना दल-00-02
सपा-09-01
कांग्रेस-04-00
बसपा-04-00

पूर्वांचल की संसदीय सीटें
वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मछली शहर, भदोही, मिर्जापुर, फतेहपुर, फूलपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, बलिया, सलेमपुर, लालगंज, घोसी, आजमगढ़, संत कबीर नगर, बस्ती, अम्बेडकर नगर, महराजगंज, डुमरियागंज, बहराईच, बांसगांव, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर।
बनारस में छात्रों से मिलतीं प्रियंका
समझौते से दूरी

ऐसे में कांग्रेस ने 2019 के इस चुनाव में यूपी में अब तक एकाध छोटे दलों को छोड़ किसी बड़े क्षेत्रीय दल से गठबंधन नहीं किया है। दावा किया जा रहा है कि पार्टी अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि सोमवार की शाम तक इस पर अंतिम मुहर लगनी है कि यूपी में कांग्रेस किसी के साथ गठबंधन करेगी या नहीं। वैसे कांग्रेस के पुराने दिग्गजों का भी यही मानना है कि पार्टी को किसी से गठबंधन नहीं करना चाहिए। यही मांग करते-करते पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे मणिशंकर पांडेय ने पार्टी छोड़ दी थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद प्रियंका गांंधी
प्रियंका से उम्मीदें

इन सभी समीकरणों के बीच कांग्रेस ने इस बार प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतारा। सक्रिय राजनीति में दाखिल होते ही प्रियंका अपने चिरपरिचित अंदाज में प्रतिद्वंद्वियों पर लगातार हमलावर है। इसके लिए उन्होंने इस अल्प काल में ही काफी कुछ जमीनी काम भी कर लिया। अपने पहले ही पूर्वांचल दौरे में वह यूपी के अनुदेशकों से मिलीं, शिक्षा मित्रों से मुलाकात की। मल्लाह समुदाय की पीड़ा सुनी तो सफाईकर्मियों के दुःख को भी समझा। महिलाओं से मिलीं तो छात्र नेताओं से भी मिल कर उनकी पीड़ा को समझा। इन सभी समुदायों से मिल कर वो लगातार यूपी सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रियंका से काफी उम्मीदें भी हैं।
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