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उल्टा पड़ा Priyanka Gandhi का दांव लल्लू के अध्यक्ष बनते ही पार्टी को लगा बड़ा झटका, कई दिग्गज नाराज

locationवाराणसीPublished: Oct 15, 2019 02:36:47 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-यही रही Priyanka Gandhi की strategy तो हो सकता और बड़ा धमाका- अन्य कई दिग्गजों में है पार्टी की नई रणनीति को लेकर नाराजगी
 

प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी

वाराणसी. एक तरफ कांग्रेस 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने की रणनीति बनाने में मशगूल है। यूपी की प्रभारी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव Priyanka Gandhi यूपी कांग्रेस में आमूलचूल परिवर्तन करने पर तुली हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए उन्होंने सभी दिग्गजों को हाशिये पर डाल दिया है। प्रियंका के इस फैसले से समूची कांग्रेस में नाराजगी है। कुछ ने चुप्पी साध ली है तो कुछ ने पाल बदल का फैसला कर लिया है। इसकी शुरूआत हो भी चुकी है। अमेठी के राजा कहे जाने वाले संजय सिंह अपनी पत्नी संग पहले ही भाजपा ज्वाइन कर चुके हैं। अब नेहरू-गांधी परिवार की सबसे नजदीकी माने जाने वाले परिवार की राजकुमारी रत्ना सिंह ने भी कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया है।
कांग्रेसी दिग्गजों की मानें तो पार्टी के वरिष्ठ नेता काफी दिनों से खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। उनका कहना है कि जिस तरह से पहले राहुल गांधी ने अपनी टीम बनाने के चक्कर में ब्लॉक स्तर के नेताओं को अपनी किचेन कैबिनेट में जगह दी और वो वरिष्ठ नेताओं पर धौस जमाने लगे उससे भी कांग्रेस के दिग्गजों में नाराजगी बढी थी। लेकिन वो खुद को कट्टर कांग्रेसी मानते हुए पार्टी में बने हुए थे। लेकिन जिस तरह से प्रियंका गांधी ने एक-एक कर सभी पुराने कांग्रेसियों को साइड लाइन किया उससे उनकी नाराजगी बढ़ी।
पुराने कांग्रेसी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि जिस तरह से अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया या उससे पहले 2019 के चुनाव में जिस तरह से पुराने लोगों के या तो टिकट काटे गए या उन्हें उनके पसंदीदा जगह से हटा कर दूसरी जगह भेज कर उनका राजनीतिक कैरियर खत्म करने की कोशिश की गई वो उससे नारज तो थे ही। अब प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी अपेक्षित ओहदा न मिलने से उनकी नाराजगी और बढ़ी। दूसरे गाधी परिवार के ये दोनों ही युवा नेता किसी के साथ जिस अंदाज में बाद करते हैं वो भी उन्हें नागवार गुजरता है। उन्हें लगता है कि इस अंदाज में तो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी कभी बात नहीं की।
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उन्होंने कहा कि यह नाराजगी ही थी जिसके तहत बनारस के पूर्व सांसद ने प्रियंका गांधी के सलाहकार परिषद में शामिल होने से इंकार कर दिया। अब भले ही वह अपनी सफाई दें लेकिन डॉ मिश्र को जो संदेश देना था वह दे चुके हैं। पुराने कांग्रेसियों का कहना है कि डॉ मिश्र मुखर हो गए, उनकी बात सार्वजनिक हो गई। लेकिन चाहे प्रमोद तिवारी हों, जितिन प्रसाद हों ये भी प्रियंका के इस कदम से संतुष्ट नहीं हैं। कहा कि प्रियंका ने पार्टी को लड़कों की फौज में तब्दील कर दिया है।
इस उपेक्षा ही देन है कि राजकुमारी रत्ना सिंह जो पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय राजा दिनेश सिंह की पुत्री हैं। राजा दिनेश सिंह प्रतापगढ़ से चार बार और उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार 1996, 1999 और 2009 में सांसद रह चुकी हैं। रत्ना सिंह का परिवार शुरू से ही कांग्रेसी रहा है। इनके परिवार में रामपाल सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे। पिता राजा दिनेश सिंह कांग्रेस की सरकार में विदेश मंत्री रहे।
वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बहुत करीबी थे। इसके चलते नेहरू-गांधी परिवार उनको बहुत महत्व देता था। बिना सांसद रहे भी उन्हें मंत्री बनाया गया था। अचानक राजकुमारी रत्ना के कांग्रेस से नाता तोड़ने के फैसले पर प्रदेश कांग्रेस हतप्रभ है।
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रत्ना सिंह
रत्ना सिंह के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने को पार्टी के गढ़ में बड़ी सेंध माना जा रहा है। सुलतानपुर, प्रतापगढ़ और रायबरेली बेल्ट कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही है। लोकसभा चुनाव से लेकर पिछले कुछ महीनों के दौरान सुलतानपुर से संजय सिंह, रायबरेली से दिनेश सिंह और अब प्रतापगढ़ से रत्ना सिंह बीजेपी के पाले में आ गई हैं। ये तीनों ही नेता गांधी परिवार के खासमखास थे। वहीं, रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह की भी बीजेपी से करीबी की चर्चा है। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर विधानसभा में हुई चर्चा में शामिल होने वाली अदिति इकलौती कांग्रेस विधायक थीं। इसके ठीक बाद उनकी सुरक्षा वाई कैटिगरी की कर दी गई थी।
राजकुमारी रत्ना सिंह यदि भाजपा में शामिल होती हैं तो उनकी भाजपा में मौजूदगी से प्रतापगढ़ सदर की विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में भाजपा के सहयोगी अपना दल के प्रत्याशी को मजबूती मिल सकती है।
इस प्रकरण पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये योगी आदित्यनाथ की सफल रणनीति का हिस्सा है। वो हर हाल में राजपूत बिरादरी को वह चाहे जहां हो यानी जिस भी पार्टी में हो, उसे भाजपा के पाले में कर, पार्टी के ठाकुर वोट बैंक मजबूत करने में लगे हैं और इसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है।

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