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गोमूत्र और नीम से भगाईये नीलगाय, एक लीटर दूध से भी कम खर्च में घर पर तैयार कर सकते हैं दवा

locationवाराणसीPublished: Jun 08, 2020 12:59:48 pm

कृषि वैज्ञानिकों का दावा, इस दवा के छिड़काव से खेतों के आसपास भी नहीं फटकेंगे जंगली और आवारा पशु।

Nilgai

नीलगाय

वाराणसी/आज़मगढ़. आवारा पशु और नीलगाय, किसानों के लिये दोनों ही बड़ी मुसीबत हैं। आवारा और छुट्टा घूमने वाले पशुओं की रोकथाम के लिये सरकार लगातार कोशिश कर रही है। गांव-गांव में गोशालाएं खुलवा दी गयी हैं, पर नीलगाय की समस्या किसानों के सामने जस की तस बनी हुई है। किसानों के लिए उनसे अपनी फसल बचाना मुश्किल हो गया है। धान की नर्सरी से लेकर सब्जी और गन्ने की फसल नीलगाय नुकसान पहुंचा रही हैं। इन्हें गोवंश माने जाने के चलते इनका वध नहीं करते। पर इस समस्या का समाधान कृषि वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकालने का दावा किया है। समाधान भी ऐसा कि उसमें खर्च नाममात्र होगा। नीलगायों को भगाने के लिए वैज्ञानिकों ने गोमूत्र, नीम व बकाइन की पत्ती से ऐसी घरेलू दवा बनाने का दावा किया है, इसमें इस्तेमाल होने वाले सारे समान आसानी से घर में ही मिल जाएंगे। इसको तैयार करने का खर्च एक किलो दूध के दाम से भी कम आएगा।

 

दवा के छिड़काव के बाद फसल के पास नहीं फटकेंगे पशु

कृषि विज्ञान केंद्र कोटवां के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डा. आरपी सिंह बताते हैं कि जंगली पशु हर साल फसलों को चार से पांच प्रतिशत फसलों को 4 से 5 प्रतिशत नुकसान पहुंचाते हैं। खेती को इनसे बचाने के लिए जैविक, देशी पद्धति से घरेलू दवा असानी से तैयार की जा सकती है। इसके छिड़काव के बाद कोई भी पशु आपकी फसलों के करीब नहीं आयेगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि खड़ी फसल (खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, गन्ना, मक्का आदि), साग, सब्जियों पर छिड़काव कर फसल को बचाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जनपद के सठियांव, तहबरपुर, पल्हनी, अतरौलिया, मेंहनगर आदि क्षेत्रों के किसान इन दवाओं का छिड़काव कर अपने फसलों को बचा रहे हैं।

 

ऐसे बनाएं दवा

घरेलू विधा में पांच लीटर गो मूत्र, ढाई किलो नीम की पत्ती, ढाई किलो बकाईन की पत्ती, एक किलो धतूरा व एक किलो मदार की पत्ती, ढाई सौ ग्राम लाल मिर्च का बीज, ढाई सौ ग्राम लहसुन, ढाई सौ ग्राम पत्ता सुर्ती, एक किलो ग्राम नीलगाय के मल को आपस में मिला लें। फिर इसे मिट्टी के बर्तन में डालकर बर्तन के मुंह को 25 दिन के लिए पूरी तरह बंद कर दें। मुंह ऐसे बंद करें कि किसी भी हालत में हवा अंदर न जाय। जिस पात्र में इसे रखा जाये उसका 1.3 हिस्सा खाली रहना बेहद जरूरी है। ऐसा न होने पर दवा सड़ाव के दौरान कार्बनिक गैस उत्पन्न होने पर बर्तन फट सकता है।

 

ऐसे करें इस्तेमाल

दवा के सड़ाव में उत्पन्न कार्बनिक गैस के प्रभाव से ही दवा असर कारक व तीव्र गंधयुक्त होती है। दवा को 25 दिन सड़ाने के बाद इसे खोलें और घड़े से 50 फीसदी दवा लें और 100 लीटर पानी में मिलाएं। उसमें 250 ग्राम सर्फ मिलाकर प्रति बीघा छिड़काव करें। पात्र में तैयार दवा में से इस्तेमाल करने भर निकलने के बाद बची हुई दवा को ढंककर रखना चाहिए, क्योंकि दवा जितनी पुरानी होगी, उतनी ही असर कारक होगी।

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