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वो युवा जिसकी पढ़ाई के लिए मां ने अपना आखिरी जेवर तक बेंच दिया था, अब वह बन गया युवाओं का देवता

locationवाराणसीPublished: Sep 16, 2019 06:37:28 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-युवा जिसने खुद जब किसी से मांगी मदद तो हाथ खाली ही रहे-अब 6 साल से युवाओ को दे रहा नई दिशा-सिखा रहा जीने की एक नई कला-विदेशों में जमा चुके हैं अपनी धाक

राजा पाठक

राजा पाठक

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. कहते हैं कि मुफलिसी इंसान की हिम्मत तोड़ देती है, लेकिन ऐसा सबके साथ नहीं होता। कुछ ऐसी शख्सियतें होती हैं जिन्हें ये विपरीत परिस्थितियों में काम करना अच्छा लगता है या यूं कहें कि उससे वो अपनी मंजिल चुनते हैं और अपने जैसों को उस संकट से उबारने की ठान कर आगे का रास्ता चुन लेते हैं। ऐसे ही एक युवा हैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विद्या संस्थान के शोध छात्र जिन्होंने गुरबत के दिन भी देखे आगे बढ़ने के लिए जमाने की ठोकरें भी खाईं पर हिम्मत नहीं हारी और अब युवाओं के लिए मिशाल बन चुके हैं। पांच साल से ऊपर हो गए, वो एक ऐसी नई पीढ़ी तैयार कर रहे हैं जो भविष्य में इस देश को एक योग्य शिक्षक दे सकेगी। देश का विश्व गुरु बनाने का सपना पूरा कर सकेगी।
राजा पाठक
टीचिंग प्रोफेशन नहीं पैशन है

शिक्षक बनना भले ही कुछ लोगों के लिए हंसी खेल हो पर ऐसा वास्तव में है नहीं। सरकारी व्यवस्था जो 1991 में शुरू हुई उसके तहत उच्च शिक्षा में प्रवक्ता पद हासिल करना अब काफी कठिन हो चला है। इसके लिए कुछ खास परीक्षाएं पास करनी होती है जिन्हें हम नेट व जेआरएफ के नाम से जानते हैं। यहां बात ऐसे युवा की कर रहे हैं जिन्होंने 2014 में पहले खुद नेट क्वालिफाई करने के लिए बड़ी जद्दोजहद झेली, फिर जब नेट क्वालिफाई कर लिया तो उससे मिलने वाली फेलोशिप से ऐसे गरीब छात्रों को नेट-जेआरएफ की तैयारी कराने का बीड़ा उठाया जिनके पास कोचिंग की फीस भरना तो दूर दो जून की रोटी, कपडा और कापी-पेंसिल, कलम खरीदना भी मुश्किल था। ऐसे ही 4-5 बच्चों के साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विश्वनाथ मंदिर से शुरू हुआ वह सफर अब यहां तक पहुंच गया है कि उस युवा जिसे राजा पाठक कहते हैं के लिए छात्रों का चयन करना मुश्किल हो रहा है।
राजा पाठक का प्रमाण पत्र
पूस की कंपकपाती ठंड में भोर में चलती थी कक्षाएं

ये राजा पाठक हैं जिन्होंने पूस की वो कंपकपाती ठंड के बीच विश्वनाथ मंदिर की चौखट पर बच्चों को नेट व जेआरएफ क्वालिफाई करने का सबक सिखाना शुरू किया। आज जब पत्रिका से वह बात करने पहुंचे तो गर्व के साथ बताया कि हाल ही में हुई अखिल भारतीय पात्रता परीक्षा में मेरी कोचिंग के 100 में से 80 छात्र सफल हो गए। वो बताते हैं कि अध्ययन-अध्यापन उनका पेशा नहीं उनकी शौक है पैशन है। अभी हाल ही में जर्मनी, पेरिस से लौटे राजा ने बताया कि भारत में युवा शोध करने के लिए गाइड की सिफारिश करते हैं, लेकिन विदेशों में भारतीय शिक्षा, भारतीय संस्कृति, दर्शन आदि पर शोध के लिए खुला आमंत्रण है बस एक राह दिखाने वाला चाहिए। बातों-बातों में वह कहते हैं कि इस देश में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ज्यादातर सीनियर अपने जूनियर को कुछ बताना नहीं चाहते जबकि वो अपनी मंजिल तय कर चुके होते हैं। लेकिन अगर अपने भाइयों को सही राह दिखाई जाए तो कुछ भी मुश्किल नहीं।
राजा पाठक
विदेशो में शोध को प्रेरित करेंगे

बता दें कि वर्तमान में ग्रह गणना के लिए प्रोग्राम एवं सॉफ्टवेयर के विकास विषय पर राजा शोध कर रहा हैं। इसी शोध प्रक्रम में डैड फैलोशिप के अंतर्गत जर्मनी स्थित हायडीलवर्ग विश्वविद्यालय में शोध के लिए बुलाया गया था। इसके बाद शैक्षणिक उद्देश्य से ही जर्मनी, स्विटजरलैंड, पैरिस तथा उर्सवर्ग आदि स्थानों का शोध की दृष्टि से भ्रमण किया। वहां चल रहे शोध कार्यों को देखा तथा उनसे काफी कुछ सीखा। बताया कि वहां भारतीय संस्कृति संस्कृत तथा भारतीय ज्ञान-विज्ञान पर शोध कार्य चल रहे हैं। अब मैं अपने छात्रों को विदेश में शोध के रास्ते भी बताऊंगा।
राजा पाठक का प्रमाण पत्र
गोपालगंज बिहार से पढने आए काशी

मूलतः बिहार के गोपालगंज निवासी राजा पाठक एक सामान्य परिवार से हैं। उन्होंने पत्रिका से बातचीत में बताया कि पिता स्व. रामचंद्र पाठक जी सामान्य किसान थे। करीब 25 वर्ष पहले उनका देहांत हो उस वक्त मेरी उम्र महज ढाई वर्ष थी। उसके बाद मां कलावती पांडेय ने ही हम चार भाई बहनों को पढ़ाया लिखाया। पढ़ने के लिए ही काशी आया। यहां संस्कृत पाठशाला में दाखिला लिया। चार भाई-बहनों में सबसे छोटा था,पढ़ाई के लिए यहां इसलिए आए क्योंकि यहां संस्कृत विद्यालय में खाना मुफ्त में मिलता था। घर से साल में एक हजार रुपए मां भेजती थी। कक्षा 5 से 12वीं की पढ़ाई के दौरान जब भी घर से पैसा आता था, समझ जाते थे कि घर का कोई सामान बिका होगा। इंटर के बाद बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म संस्थान में दाखिला ले लिया। 2014-15 में बीएचयू में टॉप किया और देश के 100 प्रतिभाशाली छात्रों में शामिल हुए। इसके पहले 2013 में उन्होंने नेट और जेआरएफ क्वालीफाई किया। अब संस्कृत धर्म विद्या संस्थान में प्रो शत्रुघ्न के गाइडेंस में शोध कर रहे हैं। शोध भी ऐसा कि ज्योतिषीय गणना के लिए एक साफ्टवेयर विकसित करने में जुटे हैं।
राजा पाठक विद्यार्थियों के साथ
जो कठिनाइयां भोगीं वो अगली पीढी न भोगे यही है मकसद

राजा ने पत्रिका को बताया कि मैं जब नेट व जेआरएफ की तैयारी कर रहा था तो बहुत मुश्किल का सामना करना पडा। कोई इसके बारे में कुछ बताने वाला नहीं था। प्रॉपर गाइडेंस नहीं मिल पा रही थी। फिर भी मैने अपनी मेहनत से 2013 में नेट व जेआरएफ क्वालीफाइ कर लिया। फिर 2014 में मैने तय किया अब आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ करूंगा ताकि मैनें जो दुश्वारियां झेली हैं वह उन्हें न झेलनी पड़े। फिर बीच बीएचयू परसिर स्थित विश्वनाथ मंदिर के पास सुबह पांच बजे से ही बच्चों को पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ। पहले साल सिर्फ 12 बच्चे आए थे, लेकिन ईश्वर की कृपा और बच्चों की मेहनत से 12 में से नौ बच्चे नेट व जेआरएफ के लिए क्वालीफाई कर गए। अगले साल यह संख्या बढ़ कर 45 हो गई।यहां संख्या बढ़ने लगी तो नरिया स्थित जैन मंदिर में चला गया वहां एक मित्र थे उनसे कह कर बच्चों को पढाने का काम शुरू कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे छात्रों की संख्या बढ़ती गई। करीब 250 बच्चे हो गए तो उनके अध्ययन के लिए जैन मंदिर परिसर भी छोटा पड़ने लगा। व्यवस्थापकों को भी दिक्कत होने लगी तो मैं फिर लौट कर बीएचयू परिसर में गया और संस्कृत धर्म विद्या संस्थान के अध्यक्ष प्रो. चंद्रमा पांडेय से मिल कर अपनी बात कही। वह सहर्ष तैयार हो गए। उन्होंने संस्थान में ही कमरा दिया। राजा ने बताया कि गुरुजी (प्रो पांडेय) तो चाय आदि की भी व्यवस्था करने को तैयार हो गए थे। लेकिन मैने केवल कक्षा ही लेना उचित समझा।
राजा पाठक
700 छात्रों को क्वालीफाई करा चुके हैं नेट व जेआरएफ

शोध छात्र राजा पाठक ने बताया कि छह सालों में अब तक तकरीबन 700 छात्र जिन्हें मैने कोचिंग दी वो नेट व जेआरएफ क्वालीफाई कर चुके हैं। यह प्रक्रिया जारी है और जारी रहेगी। इससे शोध कार्य में थोड़ी दिक्कत जरूर आती है पर उसे भी मैनेज कर लिया जाता है। मेरा लक्ष्य है इन विद्यार्थियों को गाइड करना, उन्हें इस काबिल बना देना कि उन्हें कहीं भटकना न पड़े। इन सब में वर्ष में करीब 30 से 35 हजार रुपये तो मेरे ही खर्च हो जाते हैं पर मुझे अच्छा लगता है। ये मेरा मिशन है। 2014 से 2019 के बीच करीब 800 स्टूडेंट्स को फ्री में नेट के कंबाइंड पेपर (मैथ्स, इंग्लिश, कम्प्यूटर साइंस, रीजनिंग, पॉलिटिकल साइंस) पढ़ाया। अब स्टूडेंट्स की बढ़ती संख्या को देखकर कोचिंग में दाखिले की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी। करीब 2000 से ज्यादा छात्रों ने आवेदन किया। 250 को लिया गया। यहां बिहार के सुपर 30 की तर्ज पर विभिन्न राज्यों से आए स्टूडेंट्स शामिल किए गए हैं।

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