राम मंदिर निर्माण संत महात्माओं के पर्यवेक्षण में हो
उन्होंने कहा कि हमरा स्पष्ट मत है कि श्री राम मंदिर का निर्माण चारों शंकराचार्यों, रामानंदाचार्यों, रामानुजाचार्यों, मध्वाचार्यों, निम्बार्काचार्यों, तेरह अखाड़ों के प्रमुखों आदि के पर्यवेक्षण में ही कराया जाना चाहिए न कि किसी सामाजिक या सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक संस्था से संबंधित व्यक्तियों की इकाइयों द्वारा। ऐसे में धर्म परम धर्म संसद1008 यह परमधर्मादेश निर्गत करती है जिससे संविधान में संशोधन के माध्यम से न्यायालय में त्वरित सुनवाई करवा कर श्री रामजन्म भूमि में चिर प्रतीक्षित श्री राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त होना सुनिश्चित हो।
उन्होंने कहा कि हमरा स्पष्ट मत है कि श्री राम मंदिर का निर्माण चारों शंकराचार्यों, रामानंदाचार्यों, रामानुजाचार्यों, मध्वाचार्यों, निम्बार्काचार्यों, तेरह अखाड़ों के प्रमुखों आदि के पर्यवेक्षण में ही कराया जाना चाहिए न कि किसी सामाजिक या सांस्कृतिक अथवा राजनीतिक संस्था से संबंधित व्यक्तियों की इकाइयों द्वारा। ऐसे में धर्म परम धर्म संसद1008 यह परमधर्मादेश निर्गत करती है जिससे संविधान में संशोधन के माध्यम से न्यायालय में त्वरित सुनवाई करवा कर श्री रामजन्म भूमि में चिर प्रतीक्षित श्री राम मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त होना सुनिश्चित हो।
सरकार सुप्रीम कोर्ट में मंदिर निर्माम के बाबत अपील करे
बता दें कि तीन दिन तक बनारस के सीरगोवर्धनपुर में चली धर्म संसद में देश विदेश से आए संत-महात्मा और आमजन ने धर्म संसद के तीनों दिन अयोध्या में रामजन्म भूमि पर विशाल मंदिर बनाने पर सहमति जताई थी। साथ ही अंतिम निर्णय यानी धर्मादेश के लिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को अधिकृत किया था। ऐसे में बुधवार को उन्होंने मीडिया के समक्ष धर्मादेश सुनाया। कहा कि जनता क मांग और उसकी भावनाओं के अनुरूप कार्य करना सरकार का दायित्व होता है, ऐसे में हम जनता की तरफ से सरकार से मांग करते हैं कि वह संसद में कानून बनाए साथ ही सर्वोच्च न्यायलय में अपील दायर कर मंदिर निर्माण पर पांच जजों की पीठ के समक्ष नियमित सुनवाई कर चार सप्ताह में निर्णय सुनाने का अनुरोध करे।
रामालय ट्रस्ट की ओर से हम भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर अनुरोध करेंगे
उऩ्होंने बताया कि इस संबंध में रामालय ट्रस्ट की ओर से हम भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर अनुरोध करेंगे कि वह पांच जजों की पीठ स्थापित कर राम मंदिर निर्माण की बाबत नियमित सुनवाई करे और चार सप्ताह में अपना अंतिम निर्णय सुनाए। सर्वोच्च न्यायालय से यह भी अपील करेंगे कि उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के निर्णय को स्वीकार करते हुए अपने स्थगनादेश के निर्णय पर पुनर्विचार करे। उन्होंने कहा कि यही नहीं हम देश के सभी सांसदों को पत्र भेज कर यह अपील करेंगे कि 11 दिसंबर से आरंभ हो रहे संसद के शीत सत्र में धर्म संसद के धर्मादेश को संसद के पटल पर रख कर चर्चा कर महत्वपूर्ण निर्णय लें।
बता दें कि तीन दिन तक बनारस के सीरगोवर्धनपुर में चली धर्म संसद में देश विदेश से आए संत-महात्मा और आमजन ने धर्म संसद के तीनों दिन अयोध्या में रामजन्म भूमि पर विशाल मंदिर बनाने पर सहमति जताई थी। साथ ही अंतिम निर्णय यानी धर्मादेश के लिए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को अधिकृत किया था। ऐसे में बुधवार को उन्होंने मीडिया के समक्ष धर्मादेश सुनाया। कहा कि जनता क मांग और उसकी भावनाओं के अनुरूप कार्य करना सरकार का दायित्व होता है, ऐसे में हम जनता की तरफ से सरकार से मांग करते हैं कि वह संसद में कानून बनाए साथ ही सर्वोच्च न्यायलय में अपील दायर कर मंदिर निर्माण पर पांच जजों की पीठ के समक्ष नियमित सुनवाई कर चार सप्ताह में निर्णय सुनाने का अनुरोध करे।
रामालय ट्रस्ट की ओर से हम भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर अनुरोध करेंगे
उऩ्होंने बताया कि इस संबंध में रामालय ट्रस्ट की ओर से हम भी सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर अनुरोध करेंगे कि वह पांच जजों की पीठ स्थापित कर राम मंदिर निर्माण की बाबत नियमित सुनवाई करे और चार सप्ताह में अपना अंतिम निर्णय सुनाए। सर्वोच्च न्यायालय से यह भी अपील करेंगे कि उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के निर्णय को स्वीकार करते हुए अपने स्थगनादेश के निर्णय पर पुनर्विचार करे। उन्होंने कहा कि यही नहीं हम देश के सभी सांसदों को पत्र भेज कर यह अपील करेंगे कि 11 दिसंबर से आरंभ हो रहे संसद के शीत सत्र में धर्म संसद के धर्मादेश को संसद के पटल पर रख कर चर्चा कर महत्वपूर्ण निर्णय लें।
काशी में मंदिरों को तोड़ा जाना अधार्मिक, अशास्त्रीय, अनैतिक और असंवैधानिक
शंकराचार्य ने कहा कि काशी में मंदिरों को तोड़ा जाना अधार्मिक, अशास्त्रीय, अनैतिक और असंवैधानिक है। विश्वनाथ गलियारे के बहाने अनेक प्राचीन मंदिरों को शासनतंत्र के द्वारा विध्वंस कर देव विग्रहों के अपवित्रीकरण एवं निर्वासीकरण जैसे अपकृत्यों की घोर भर्तसना करते हुए इसे हिंदू धर्म पर आघात व धर्म विरुद्ध ही नहीं असंवैधानिक घोषित करते हैं। यह स्थापित धर्मशास्त्रीय व वैधानिक विधि है कि प्राणप्रतिष्ठित देव विग्रह जीवंत व्यक्ति की भांति आवास, भोग, वस्त्रादि की अपेक्षा रखते हैं। उन्हें आवश्यकताओं से वंचित रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के प्रावधानों का अतिक्रमण करना है। काशी में देव मंदिरों को तोड़ने वाले अयोध्या मे मंदिर निर्माण के अधिकारी कैसे हो सकते हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि काशी में मंदिरों को तोड़ा जाना अधार्मिक, अशास्त्रीय, अनैतिक और असंवैधानिक है। विश्वनाथ गलियारे के बहाने अनेक प्राचीन मंदिरों को शासनतंत्र के द्वारा विध्वंस कर देव विग्रहों के अपवित्रीकरण एवं निर्वासीकरण जैसे अपकृत्यों की घोर भर्तसना करते हुए इसे हिंदू धर्म पर आघात व धर्म विरुद्ध ही नहीं असंवैधानिक घोषित करते हैं। यह स्थापित धर्मशास्त्रीय व वैधानिक विधि है कि प्राणप्रतिष्ठित देव विग्रह जीवंत व्यक्ति की भांति आवास, भोग, वस्त्रादि की अपेक्षा रखते हैं। उन्हें आवश्यकताओं से वंचित रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 के प्रावधानों का अतिक्रमण करना है। काशी में देव मंदिरों को तोड़ने वाले अयोध्या मे मंदिर निर्माण के अधिकारी कैसे हो सकते हैं।