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काशी की रामलीला में भाग लेने के लिए अलग-अलग गांवों के लाखों लोगों के साथ-साथ देश भर के विद्वान और पेशेवर मंचों के कलाकार यहां अपना किरदार निभाने आते रहे हैं। लेकिन, इस बार सब कुछ सूना है। रामलीला मैदान खाली पड़ा है। काशीवासियों में उमंग और उत्साह गायब है। सब कुछ बदला-बदला सा है।
काशी की रामलीला में भाग लेने के लिए अलग-अलग गांवों के लाखों लोगों के साथ-साथ देश भर के विद्वान और पेशेवर मंचों के कलाकार यहां अपना किरदार निभाने आते रहे हैं। लेकिन, इस बार सब कुछ सूना है। रामलीला मैदान खाली पड़ा है। काशीवासियों में उमंग और उत्साह गायब है। सब कुछ बदला-बदला सा है।
18वीं शताब्दी के मध्य में शुरुआत
अंग्रेज जेम्स प्रिंसप ने लिखा है रामनगर की रामलीला 1830 में शुरू हुई थी। ब्रिटिश लाइब्रेरी में भी इसके प्रमाण मौजूद हैं। काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह के दादा महाराज बलवंत सिंह ने 18वीं शताब्दी के मध्य में इस भव्य रामलीला की नींव डाली थी। महाराज उदित नारायण अंग्रेजों के निशाने पर थे। वह काशी नरेश के हर काम में दखल डालते थे। शाही परिवार के सदस्य, कुंवर ईशान बताते हैं 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी रामलीला बंद नहीं हुई। लालटेन की रोशनी में आयोजित रामलीला की रोशनी बाहर न जाए इसके लिए पीएमओ के निर्देश पर रोशनी को पेड़ के पत्तों से ढंकने की व्यवस्था की गई थी, ताकि इसे आसमान से न देखा जा सके। और यह दुश्मनों की नजर से महफूज रहे।
अंग्रेज जेम्स प्रिंसप ने लिखा है रामनगर की रामलीला 1830 में शुरू हुई थी। ब्रिटिश लाइब्रेरी में भी इसके प्रमाण मौजूद हैं। काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह के दादा महाराज बलवंत सिंह ने 18वीं शताब्दी के मध्य में इस भव्य रामलीला की नींव डाली थी। महाराज उदित नारायण अंग्रेजों के निशाने पर थे। वह काशी नरेश के हर काम में दखल डालते थे। शाही परिवार के सदस्य, कुंवर ईशान बताते हैं 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी रामलीला बंद नहीं हुई। लालटेन की रोशनी में आयोजित रामलीला की रोशनी बाहर न जाए इसके लिए पीएमओ के निर्देश पर रोशनी को पेड़ के पत्तों से ढंकने की व्यवस्था की गई थी, ताकि इसे आसमान से न देखा जा सके। और यह दुश्मनों की नजर से महफूज रहे।
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रामनगर की रामलीला केवल पुरुषों द्वारा ही की जाती है। राम, उनके भाइयों और सीता की भूमिकाएं पुरुष ही निभाते हैं। किरदारों का चयन राज पैलेस के आधिकारी करते हैं। ऑडिशन टेस्ट के बाद जब वे कलाकारों को पास करते हैं तब अंत में राजपुरोहित यानी ब्राह्मण परिवार उनका अंतिम रूप से चयन करते हैं।
रामनगर की रामलीला केवल पुरुषों द्वारा ही की जाती है। राम, उनके भाइयों और सीता की भूमिकाएं पुरुष ही निभाते हैं। किरदारों का चयन राज पैलेस के आधिकारी करते हैं। ऑडिशन टेस्ट के बाद जब वे कलाकारों को पास करते हैं तब अंत में राजपुरोहित यानी ब्राह्मण परिवार उनका अंतिम रूप से चयन करते हैं।
दो महीने का कठिन अभ्यास–
सभी चयनित कलाकारों को दो महीने का कठिन अभ्यास करना होता है। सभी कलाकार रामचरित मानस और रामकथा के महाकाव्यों के विद्वानों के साथ रहते हैं। इस दौरान वे घंटों रामायण का पाठ करते हैं। अपनी भूमिकाओं के लिए आवश्यक विभिन्न इशारों और मुखर कौशल में उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। खास बात है कि किरदार निभा रहे कलाकारों को रामलीला कार्यकर्ताओं के कंधों पर लादकर रामलीला स्थल तक ले जाया जाता है ताकि उनके पैर फर्श को न छुए। हर दिन प्रदर्शन के बाद दर्शक कलाकारों का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। यह परंपरा आज भी जीवित है। दशहरे के बाद भरतमिलाप के समय शाही परिवार हाथी पर सवार होकर भरत मिलाप लीला का मंचन देखने आते हैं।
सभी चयनित कलाकारों को दो महीने का कठिन अभ्यास करना होता है। सभी कलाकार रामचरित मानस और रामकथा के महाकाव्यों के विद्वानों के साथ रहते हैं। इस दौरान वे घंटों रामायण का पाठ करते हैं। अपनी भूमिकाओं के लिए आवश्यक विभिन्न इशारों और मुखर कौशल में उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। खास बात है कि किरदार निभा रहे कलाकारों को रामलीला कार्यकर्ताओं के कंधों पर लादकर रामलीला स्थल तक ले जाया जाता है ताकि उनके पैर फर्श को न छुए। हर दिन प्रदर्शन के बाद दर्शक कलाकारों का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। यह परंपरा आज भी जीवित है। दशहरे के बाद भरतमिलाप के समय शाही परिवार हाथी पर सवार होकर भरत मिलाप लीला का मंचन देखने आते हैं।
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कोरोना वायरस ने इस बार रामलीला के इस भव्य अनुष्ठानिक प्रदर्शन की रौनक को फीका कर दिया है। काशी नरेश महाराजा अनंत नारायण सिंह 18 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। गुडग़ांव के एक अस्पताल में भर्ती होने के बाद अब वह रिकवर हो गए हैं, लेकिन वे कहते हैं सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है। जीवन बचेगा तभी धर्म बचेगा। नवरात्रि के इस पर्व में जब रामलीलाओं का मंचन होना चाहिए वह हर शाम पुरोहितों से रामचरित मानस का पाठ सुनते हैं। ऐसा पहली बार है जब महल और सड़कों पर खालीपन है। हर ओर रौनक गायब है।
कोरोना वायरस ने इस बार रामलीला के इस भव्य अनुष्ठानिक प्रदर्शन की रौनक को फीका कर दिया है। काशी नरेश महाराजा अनंत नारायण सिंह 18 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। गुडग़ांव के एक अस्पताल में भर्ती होने के बाद अब वह रिकवर हो गए हैं, लेकिन वे कहते हैं सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरूरी है। जीवन बचेगा तभी धर्म बचेगा। नवरात्रि के इस पर्व में जब रामलीलाओं का मंचन होना चाहिए वह हर शाम पुरोहितों से रामचरित मानस का पाठ सुनते हैं। ऐसा पहली बार है जब महल और सड़कों पर खालीपन है। हर ओर रौनक गायब है।