धर्म नगरी काशी में शुक्रवार से आरंभ हुआ तीन दिवसीय रथयात्रा मेला। रथयात्रा मेले का ये 232वां वर्ष है। दो साल के कोरोना काल के दौरान भक्त और भगवान के बीच दूरी बन गई थी। अबकी बार सब कुछ सामान्य होने के बाद पुनः काशी के प्रथम लक्खा मेले की शुरूआत हुई। ऐसे में भगवान जगन्ना, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र के दर्शन-पूजन का सिलसिला भोर के 5 बजे से ही शुरू हो गया जो देर रात तक जारी रहेगा। इस रथयात्रा मेले से ही काशी में पर्व-त्योहारों की शुरूआत हो गई।
भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र के दर्शन-पूजन के साथ शुरू हुआ रथयात्रा मेला
वाराणसी. काशी वासियों के लिए आज का दिन महत्वपूर्ण हो गया। वजह भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा मेला बना। बता दें कि कोरोना काल के दो साल ने काशीवासियों और भगवान के बीच एक दूरी बना दी थी। दो साल तक रथयात्रा मेला नहीं लगा। वो रथयात्रा मेला जिसका भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। सो आज शुक्रवार की सुबह 5.11 बजे मंगला आरती के बाद भगवान के पट आम और खास दर्शनार्थियों के लिए खोल दिए गए। इसके साथ ही काशी के लक्खा मेले में शुमार रथयात्रा मेले की शुरूआत हो गई। भगवान के दीदार के लिए भक्तों का सैलाब सुबह से ही जमा हो गया था।
तड़के तीन बजे तीनों देव विग्रहों को रथ पर विराजमान किया गया बता दें कि गुरुवार की शाम ही भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र संग नगर भ्रमण पर निकले थे। शाम को वो रथयात्रा चौराहे के समीप स्थित बेनीराम के बगीचा में पहुंचे जहां तीनों देव विग्रहों की आरती उतारी गई फिर रात्रि के तीसरे पहर यानी तीन बजे भोर में मध्य रात्रि में इन विग्रहों को रथयात्रा चौराहे पर पहले से सुसज्जित रथ पर विराजमान कराया गया। शुक्रवार की भोर में 5.11 बजे मंगला आरती हुई और उसके बाद से भगवान जगन्नाथ, भैया बलभद्र और बहन सुभद्रा के दर्शन-पूजन का सिलसिला आरंभ हो गया।
15 दिन तक बीमार थे भगवान जगन्नाथ बता दें कि भक्तवत्सल भगवान जगन्नाथ, बहन सुभ्रदा और भैया बलभद्र, भक्तों के अतिशय प्रेमवश अत्याधिक स्नान से 14 जून को अस्वस्थ हो गए थे। भगवान के स्वास्थ्य लाभ के निमित्त एकांतवाश में जाने के कारण 14 से 29 जून तक अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहे। 30 जून को मंगला आरती के बाद प्रभु जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भैया बलभद्र ने भक्तों को फिर दर्शन दिए। धूम धाम से पालकी यात्रा निकाली गई। मंदिर के पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि आज भोर लगभग तीन बजे भगवान अपने भाई-बहन के साथ रथ पर सवार हुए। स्नान-शृंगार और मंगला आरती के बाद भगवान के दर्शन-पूजन के लिए उनके पट खोल दिए गए।
1790 में काशी में बना जगन्नाथ मंदिर जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट के सचिव आलोक शापुरी ने बताया कि वर्ष 1790 में काशी में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना हुई थी। पुरी के रथयात्रा मेले की तर्ज पर काशी में भी इस उत्सव की शुरुआत उनके पूर्वजों ने की थी। बीच में कोरोना महामारी के दो वर्षों को छोड़ दिया जाए, तो अंग्रेजों के जमाने में भी कभी रथयात्रा मेले की रंगत फीकी नहीं पड़ी थी।
काशी में शुरू हुआ मेला, पर्व त्योहार का मौसम रथयात्रा मेले के साथ ही काशी में पर्व-त्योहार और मेलों का मौसम शुरू हो जाता है। रथयात्रा मेले के बाद भगवान शिव को प्रिय सावन का महीना आएगा जिममें महीने पर भक्त जन व्रत-अनुष्ठान करते हैं। फिर भादों में गणेश नवरात्रि, आश्विन माह में नवरात्रि, विजयादशमी, नाटी इमली का विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप और इसी बीच इस बार लोगों को विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला देखने का भी सुअवसर प्राप्त होगा। ये ऐतिहासिक लीला महीने भर चलती है। फिर कार्तिक माह की पूर्णिमा यानी देव दीपावली के साथ मेलों और त्योहारों के क्रम को विराम लगेगा। इस दरौन नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नागनथैया लीला का साक्षी बनने का भी मौका मिलेगा काशीवासियों को। अब तो बीते दो कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाली देव दीपावली भी लक्खा मेले में शामिल हो चुकी है।