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मौजूदा दौर में घृणा, हिंसा और उत्पीड़-वैमष्यता का सामान्यीकरण हो चला है:सांसद मनोज झा

locationवाराणसीPublished: Nov 11, 2019 04:35:11 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुनारायण सिंह जन्म शताब्दी समारोह में बोले सांसद-सामाजिक-राजनीतिक संकट से अतीत भी हो रहा प्रभावित-वर्तमान हालात के लिए हम सभी गुनाहगारः सांसद मनोज झा -जरूरत रचनात्मक बेचैनी की है

वर्तमान संकट और गांधी विषयक गोष्ठी को संबोधित करते आरजेडी सांसद मनोज झा

वर्तमान संकट और गांधी विषयक गोष्ठी को संबोधित करते आरजेडी सांसद मनोज झा

वाराणसी. मौजूदा दौर में घृणा, हिंसा और उत्पीड़-वैमष्यता का सामान्यीकरण हो चला है। बेचैन तो सब हैं पर किसी में रचनात्मक बेचैनी नहीं है। मौजूदा परिवेश में संकट आपदा की श्रेणी में आ चुका है। इससे वर्तमान तो बिगड़ा ही है हमारा अतीत भी संकट में है। भविष्य की तो बात ही छोड़ दीजिए। इसके लिए अकेले-अकेले बेचैन होने से काम नहीं चलने वाला सभी को एक दूसरे का हाथ पकड़ना होगा। ठीक उसी तरह जैसे अंधेरे में चलते समय सहारे के लिए हम सब एक दूसरे का हाथ थाम लेते हैं। यह कहना है आरजेडी सांसद मनोज झा का। वह सोमवार को महात्मा गांघी काशी विद्यापीठ के गांधी अध्ययन पीठ सभागार में वर्तमान संकट और महात्मा गांधी विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। मौका था स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुनारायण सिंह जन्म शताब्दी समारोह का।
सांसद मनोज झा ने कहा कि वर्तमान दौर के लिए हम सभी गुनाहगार हैं, क्योंकि हम सभी केवल बेबसी का रोना रो रहे। हम बापू यानी महात्मा गांधी को स्मरण तो करते हैं पर जरूरत उनकी रचनात्मक बेचैनी को आत्मसात करने की है। अगर समय रहते हम अपने अंदर उस रचनात्मक बेचैनी को पैदा नहीं कर सकते तो वर्तमान तो डूबा ही है अतीत भी नष्ट हो जाएगा, भविष्य की तो बात ही न करें। कारण कि वर्तमान दौर ने हमसे हमारा सब कुछ छीन लिया है।
उन्होंने सत्ता पक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि लोग नेहरू और पटेल में भेद कर पटेल को छीनने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वह भूल जाते है कि पटेल जब गांधी को पत्र लिखते हैं तो कहते हैं कि आप नेहरू की चिंता करें वो कहीं ज्यादा परेशान हैं। कहा कि गांधी, लोहिया, जयप्रकाश, नेहरू, पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद को अलग-अलग करके उयन्हें कभी समझा ही नहीं जा सकता। क्योंकि वो एक ऐसी जंजीर हैं जिसका पहले से अंतिम सिरा तक कस कर एक दूसरे में जुड़ा है। उनको समझ पाना सबके बस की बात नहीं। मौजूदा सत्ता पक्ष के लोग तो एकदम नहीं समझ सकते।
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झा बोलते हैं कि कुछ लोग गांधी जी के निरंतर रघुपति राघव राजा राम के जाप करने के प्रसंग को दशरथ नंदन राम और तुलसी के रामचरित मानस से जोड़े रहे हैं। लेकिन ये गांधी के राम नहीं थे। उनके राम किसी रूप में मानव निर्मित राम नहीं थे। उनके राम निर्विकार थे। 1909 में लिखे एक पत्र में वे (गांधी) कहते हैं राम नाम ईश्वर का एक नाम है, इसलिए हम सब उसे व एक आवाज से परमात्मा, ईश्वर, शिव, विष्णु, राम, अल्लाह, खुदा, जिहोवा, गॉड आदि अनेक और अनंत नामों से पुकारते हैं।
आज के संदर्भ में बापू की प्रासंगिकता को उकेरने से पूर्व हमें ये निश्चित करना होगा कि क्या हम स्वयं समकालीन प्रसंगों को समझते हैं और उनकी बनावट और बुनावट से दुःखी हैं। हमारा दुःख हमें सामूहिक फैसला लेने को प्रेरित करता है। क्योंकि सिर्फ बेचैनी नहीं बल्कि एक रचनात्मक बेचैनी की जरूरत है क्योंकि आजीवन बापू की बेचैनी रचनात्मक रही। आम आदमी की मुक्ति की रचनात्मक बेचैनी जिसे विष्णु प्रभाकर कहते हैं, :यह है लफ्जे दर्द, जिस पहलू से देखो दर्द है।” सांसद झा सवाल करते हैं, क्या बापू इस दौर में जब घृणा, हिंसा और उत्पीड़-वैमष्यता का सामान्यीकरण नहीं हो चला है?
अपने संबोधऩ के दौरान उन्होंने बापू और 370,खान अब्दुल गफ्फार खान, बापू और भीड़ की हिंसा, गौ रक्षा- 29 मई 1947, बापू और जवाहर एवं बापू और एक बिखरते सपने और सिसकती आशाएं जैसी रचनाओं और विचारों का उल्लेख भी किया।
वर्तमान संकट और गांधी विषयक गोष्ठी में शामिल वक्ता
इस संगोष्ठी को बीएचयू विधि संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो एमपी सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अजय उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्ता, समाजवादी विजय नारायण ने भी संबोधित किया। अध्यक्षता जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा, बिहार के कुलपति प्रो हरिकेश सिंह ने की। संचालन काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ने किया।
इस मौके पर बीएचयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष शिवकुमार सिंह, कुंवर सुरेश सिंह, डॉ सुरेंद्र प्रताप, पूर्व एमएलसी अरविंद सिंह, समाजवादी नेता राधेश्याम सिंह आदि मौजूद रहे। समारोह में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और लोकतंत्र सेनानियों को सम्मानित भी किया गया। साथ ही गांधी पर नौ मिनट का भाषण देकर देश भर में शुमार होने वाले आयुष चतुर्वेदी को भी सम्मानित किया गया।
वर्तमान संकट और गांधी विषयक गोष्ठी

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