सपा के दो बड़े नेताओं ने ही दिये बयान, जानिये अपने बयान में इन नेताओं ने क्या कहा।
वाराणसी. मुलायम सिंह यादव ने सपाईयों को गठबंधन की खबरों पर ध्यान न देते हुए सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारने और चुनाव की तैयारी तेज करने का जो निर्देश जारी किया है उसके बाद सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं ने चुप्पी साध ली है। पूर्वांचल के ज्यादातर सपा के बड़े नेता या मंत्रियों ने या तो अपने मोबाइल बंद कर लिये या फिर फोन की घंटी बजती रही, लेकिन उन्होंने मीडिया से बात नहीं की। कुछ बोले भी तो सिर्फ इतना, कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव एक परिपक्व और अनुभवी नेता हैं वह जो फैसला लेंगे वो 100 प्रतिशत न सिर्फ अच्छा बल्कि सपा के बेहतर भविष्य की जमानत होगा। हालांकि नेताओं के कुछ न बोलने के पीछे एक सच्चाई यह भी है कि सपा में अब अखिलेश और शिवपाल के बीच सपा दो गुटों में अंदर ही अंदर बंटी हुई है और कोई भी नेता बोलने से इसलिये भी डर रहा है कि कहीं वह एक बयान सपा नेता की हैसियत से उसका आखिरी बयान न हो।
रविवार की शाम जब सपा के नेता यह बात कर ही रहे होंगे कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ तो कांग्रेस को कितनी और कौन-कौन सी सीटें देनी पड़ेंगी, उसी दौरान मुलायम सिंह यादव का गठबंधन की खबरों पर ध्यान न देने का निर्देश जारी हो गया। उन्होंने साफ कह दिया कि सपाई गठबंधन की खबरों पर ध्यान न दें और पार्टी के नेता विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारें। बस इसके बाद सपाइयों ने यह अंदाजा लगा लिया कि अब सपा-कांग्रेस का गठबंधन नहीं होगा। बावजूद इसके सपाइयों ने निर्देश सुना और सुनकर खामोशी अख्तियार कर ली। यूं तो कहने को जौनपुर में सपा के बड़े मंत्री हैं पर इस निर्देश को लेकर बोलने से सभी कतराते रहे। पत्रिका ने काफी कोशिश की पर किसी से सम्पर्क नहीं हो पाया।
तकरीबन यही हाल आजमगढ़ का भी रहा जो मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र और सपा का गढ़ भी है। वहां नेताओं से बात तो हुई, पर किसी ने भी इस बाबत कुछ बोलने या उनके जरिये से कुछ भी बयान प्रकाशित करने से ही मना कर दिया। हां जिलाध्यक्ष ने इतना जरूर कहा कि हमारे लिये सिर्फ इतन ही काफी है कि यह नेताजी का निर्देश है। नेताजी जो बोलेंगे वह सर्वमान्य होगा। उधर इलाहाबाद में रेवतीरमण सिंह से लेकर किसी नेता से इस बाबत कोई बयान नहीं मिल सका। जिलाध्यक्ष ने मोबाइल बंद कर लिया। वहां अतीक अहमद से भी इस बाबत कोई सम्पर्क नहीं हो पाया।
गोरखपुर में यूं तो नेता इस पर कुछ बोलने से कतराते रहे पर सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यमन्त्री जफर अमीन डक्कू ने जबान खोली। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी फिर सत्ता में आ रही है यह तय है। अगर कांग्रेस और सपा का गठबंधन होता तो हम दो तिहाई बहुमत पाते। कांग्रेस के पास 28 सीटें थीं। अगर गठबंधन होता तो उसे फायदा होता। आज की तारीख में अखिलेश यादव सीएम का सर्वमान्य चेहरा हैं। विकास के नाम पर उन्हें जनता पसंद कर रही है और वोट भी देगी। गठबंधन के बाद भी चेहरा वही होते। हम सत्ता में आने के बाद कांग्रेस को उसका वाजिब हक भी देते। पर वह नहीं चाह रहे तो इसमें हम क्या कर सकते हैं, हम तो पहले से ही जीत रहे थे।
उधर इस सवाल पर अभी-अभी समाजवादी बने अफजाल अंसारी ने कहा कि नेताजी मुलायम सिंह यादव एक परिपक्व और अनुभवी नेता हैं। वह बखूबी जानते हैं कि पार्टी की भलाई के लिये कब और क्या फैसला लेना चाहिये। हमारे नेता ने फैसला लिया है तो वह समाजवादियों के लिये सर्वमान्य है। अब इसके बाद किसी किन्तु-परन्तु की गुंजाइश नहीं बचती। हालांकि इस बाबत और ज्यादा सवाल पूछे जाने पर उन्होंने भी खामोशी अख्तियार कर लिया। उधर वाराणसी में भी सपा नेताओं ने इस पर कुछ भी बोलने से गुरेज किया। ज्यादातर बड़े नेताओं से सम्पर्क नहीं हो पाया।
राजनैतिक हलकों में ये बात लगातार चल रही है कि भले ही मुलायम सिंह यादव ने सीमए अखिलेश व प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल में सुलह करा दी हो, पर अभी भी दोनों के हित टकरा रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सपा में अंदर ही अंदर दो गुट बन चुके हैं। पर दोनों गुटों के सपाई खामोश हैं। रविवार को यह खामोशी और गहरी हो गई, जब सपा में यह बात फैली कि सीएम अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह को 403 प्रत्याशियों की लिस्ट सौंपी है। ऐसे में उन प्रत्याशियों की चिंता तो बढ़ ही गई है जिन्हें शिवपाल ने फाइनल किया है, पर उनकी भी स्थिति ठीक नहीं जिनके टिकट अभी फाइनल होने हैं। सपा सूत्रों की मानें तो सपाई अब मुलायम सिंह यादव के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि सपा में वर्चस्व की लड़ाई एक बार फिर गरमा सकती है। अब देखना यह होगा कि आपसी हितों को दरकिनार कर सपा आगे बढ़ती है या फिर चुनाव के पहले एक बार फिर सपा का वह चेहरा सामने आएगा, जो पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा।