विश्व पुस्तक दिवस पर विश्वविद्यालय और शिक्षा विभाग में बनी सहमति विश्व पुस्तक दिवस पर शनिवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के बीच इस पर सहमति बनी। इसके तहत विश्वविद्यालय में मौजूद दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण और डिजिटलाइजेशन के लिए परियोजना बनाकर शासन को भेजी जानी है। संपूर्णानंद के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि उच्च शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव मोनिका एस गर्ग ने विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में संग्रहित दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण, संवर्धन और डिजिटलाइजेशन के लिये शासन स्तर से सहयोग देने पर बात हो गई है। 57 करोड़ में पुस्तकों का रखरखाव और 10 करोड़ में डिजिटलाइजेशन का काम पूरा किया जाएगा। कुलपति प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि इस परियोजना को संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से धन आवंटित कराकर उसके अधीन डिजिटलाइजेशन और संरक्षण किया जाएगा।
लाल कपड़े में लपेट कर रखी गई हैं ये दुर्लभ पांडुलिपियां बता दें कि विश्वविद्यालय के प्राचीन सरस्वती भवन (ग्रंथालय) में पांडुलिपियों को खास तरह के रसायन का लेप लगाकर व्यवस्थित किया जाएगा। यही नहीं इनका अध्ययन होगा और शोध भी प्रकाशित होंगे। जानकार बताते हैं कि विश्वविद्यालय में रखी गई से दुर्लभ पांडुलिपियों में अनमोल खजाना हैं। यहां पर एक हजार साल पुरानी हस्तलिखित श्रीमदभागवतगीता है। यह देश की प्राचीनतम पांडुलिपि है। इसी तरह स्वर्णपत्र आच्छादित, लाक्षपत्र पर कमवाचा (वर्मी लिपि) यहीं संग्रहित है। स्वर्णाक्षरयुक्त रास पंचाध्यायी (सचित्र) की सूक्ष्म कलात्मकता अनुपम है। यहां पर वेद, कर्मकांड, वेदांत, सांख्य, योग, धर्मशास्त्र, पुराणेतिहास, ज्योतिष, मीमांसा, न्याय वैशेषिक, साहित्य, व्याकरण और आयुर्वेद की दुर्लभ पांडुलिपियां रखी हैं। इसके अलावा बौद्ध, जैन, भक्ति, कला और संगीत के विषय भी संरक्षित किए गए हैं। इसमें अनमोल ज्ञान भंडार संग्रहित हैं।जो कि सभी जनों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा।
1914 में बना सरस्वती भवन पुस्तकालय जानकारों के मुताबिक 1907 में प्रिंस ऑफ वेल्स के निरीक्षण के बाद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर में सरस्वती भवन का निर्माण शुरू हुआ जो वर्ष 1914 में पूर्ण हुआ। इसके बाद यह भवन विश्वविद्यालय में पूरी तर ह से पुस्तकालय बन गया। विद्वान पं. गोपीनाथ कविराज पुस्तकालय के पहले पुस्तकालयाध्यक्ष रहे।