जीआई एक्सपर्ट पद्मश्री डॉ रजनीकांत ने पत्रिका को बताया कि चुनार बलुआ पत्थर को जीआई संख्या 557, वर्ग-19 के तहत नेचुरल गुड्स (प्राकृतिक उत्पाद की श्रेणी) में शामिल करने के लिए ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के फेसिलिटेशन से 25 जुलाई 2016 को चेन्नई के जीआई कोर्ट में आवेदन किया गया था। दो वर्ष 08 महीने की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद मार्च 2019 में जीआई पंजीकरण के बाद अब देश की बौद्धिक संपदा का दर्जा प्राप्त हो गया है।
उन्होंने बताया कि अब इस बहुमूल् पत्थर पर मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली जिले का ही कानूनी अधिकार है और यहीं से निकलने वाले पत्थर को ही चुनार बलुआ पत्थर कहा जाएगा। बताया कि इस पत्थर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह जितना ही प्राचीन होता जाएगा, पत्थर में विद्यमान बलुआ कणों और उसके घनत्व के कारण उसकी चमक वायु घर्षण से बढ़ती जाएगी। जल के अंदर सैकड़ों वर्षों तक रहने के बावजूद यह खराब नहीं होता।
विंध्याचल पर्वत माला एवं गंगा के किनारे के विशिष्ट प्राकृतिक संरचना, मिट्टी और पत्थर की विशिष्ट गुणवत्ता के कारण ही चुनार बलुआ पत्थर अपनी विशेष पहचान बनाए है। इससे इसकी प्रसिद्धि दुनिया के दूसरे देशों में भी है। साथ हीयह काशी क्षेत्र का 11वां जीआई पंजीकृत उत्पाद हो गया है। 06 अन्य क्राफ्ट जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया अभी जारी है।
उन्होंने बताया कि सारनाथ संग्रहाल में रखी अशोक की लाट, चुनार का प्रसिद्ध किला, रामनगर फोर्ट, बनारस के प्रसिद्ध घाट, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का मुख्य भवन, सारनथ का मुख्य बौद्ध मंदिर, थाई मंदिर में बनी कांधार शैली की 80 फीट ऊंची इस शैली की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा, सारनाथ वियतनामी मंदिर में 70 फीट की पदमासन की मूर्ति, स्तूप, सारनाथ संग्रहालय, मथुरा, वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिरों सहित हजारों बौद्ध प्रतिमाओं, कलाकृतियों का निर्माण चुनार के बलुआ पत्थर से बुद्ध व महावीर काल से किया जा रहा है।
वर्तमान में सारनाथ के पास थाई मंदिर के अंदर कांधार शैली की बुद्ध की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण भी चुनार के बलुआ पत्थर से ही चुनार और मिर्जापुर के शिल्पियों के पारंपरिक औजारों से किया गया है। फिलहाल करीब 1000 शिल्पी देश के विभिन्न हिस्सों में चुनार के बलुआ पत्थर पर अपनी नक्काशी उकेरने का काम कर रहे हैं। चुनार बलुआ पत्थर का कारोबार लगभग 2000 करोड़ वार्षक है। लेकिन विभिन्न कारणों से अवैध खनन व अनियोजित खनन के कारण इस विश्व प्रसिद्ध पत्थर का बड़ा ही दुरुपयोग हुआ है। चुनार और विंध्य क्षेत्र की इस प्राकृतिक संपदा को भारी नुकसान पहुंचा है। अब उम्मीद है कि जीआई पंजीकरण के बाद सरकारें इस प्राकृतिक उत्पाद पुनः सही मायने में संरक्षित किया जा सकेगा।