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संकटमोचन परिसर के जंगल में हनुमान जी ने दिया था  तुलसीदास को दर्शन

locationवाराणसीPublished: Jan 04, 2017 02:59:00 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

आज भी संकटमोचन परिसर में हैं सैकड़ों प्राचीन तालाब

Sankatmochan temple

Sankatmochan temple

वाराणसी. संकट मोचक मंदिर बालाजी के एक बहुत ही प्यारा और चमत्कारी मंदिर है । इस मंदिर को वानर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर के आस पास बंदरों की संख्या बहुत है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्री हनुमान जी अपनी वानर सेना के साथ इस मंदिर में रमे हुए है। यह मंदिर वाराणसी शहर के दक्षिण में स्तिथ है। नाम के अनुसार ही यह मंदिर अपने भक्तो के संकट दूर करने वाला है।




मंदिर निर्माण 1900 के करीब बना था मंदिर
यह मंदिर आजादी के लिए लड़ने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1900 के करीब बनवाया था। हनुमान जयंती पर मां दुर्गा मंदिर से संकट मोचक मंदिर तक एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस मंदिर में श्री राम के सामने श्री हनुमान जी की मुर्ति स्थापित है जो इस मंदिर को अन्य हनुमान मंदिर से अलग करती है।





संकटमोचन में है प्राचीन तालाब
शहर के कम लोग ही जानते होंगे कि संकटमोचन मंदिर परिसर में सैकड़ों वर्ष प्राचीन तालाब भी है। सरकारी दस्तावेजों में उल्लेख है कि असि नदी कंदवा, कंचनपुर, नेवादा, बटुआपुर, संकटमोचन तालाब समेत 54 तालाबों से होकर गुजरती थी। विडंबना है कि इनमें से आज संकटमोचन और कंचनपुर के ही तालाब अस्तित्व में हैं। आज भी मंदिर प्रशासन ने जंगल और तालाब को बचाकर रखा है। पगडंडियों से होकर जंगल तक पहुंचने वाले रास्ते की जानकारी मंदिर से जुड़े पुराने लोगों को ही है। 




परिसर के इस जंगल में तुलसीदास को हनुमान जी ने दिया था दर्शन
मंदिर परिसर में ही साढ़े पांच एकड़ में फैला करीब छह सौ साल पुराना सघन जंगल भी है। लोकमान्यता है कि इसी जंगल में तुलसीदास को तपस्या के दौरान हनुमान जी ने दर्शन दिए थे। तुलसीदास ने यहीं हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की और यह स्थान बाद में संकटमोचन मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने स्वरचित ‘हनुमानाष्टक’ में संकटमोचन का उल्लेख किया है। खास बात यह भी है कि इस वन में कदंब की ऐसी प्रजाति का भी एक वृक्ष है जो यहां के अतिरिक्त सिर्फ मथुरा में मिलता है। इसी कदंब की एक डाल प्रतिवर्ष नागनथैया की लीला में भेजी जाती है।
मंदिर के वसीयतनामे में उल्लेख मिलता है कि अति प्राचीन तालाब का जीर्णोद्धार 1904 में कराया गया था। तालाब के एक किनारे पक्के घाट बनवाए गए थे। तालाब कितना पुराना है, इसका उल्लेख नहीं मिलता। भू-अभिलेखों के मुताबिक मंदिर परिसर में जंगल के बीच स्थित इस तालाब में गंगा और असि नदी के बाढ़ का पानी पहुंचता था। मंदिर प्रशासन की ओर से प्राचीन तालाब का ध्यान रखा जाता है। समय-समय पर इसमें पानी भी भरा जाता है।

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