सावन के सोमवार को पड़ रही है नागपंचमी, दो गुना है फलउसी दिन हथिया नक्षत्र भी लग रहामान्यताओं के अनुसार खुद भगवान शंकर ने की थी इस नाग कूप की स्थापना
नाग देवता
वाराणसी. सावन का महीने में शिव की नगरी काशी में यूं तो पूरे महीने भर विविध होता रहता है। भूत भावन शंकर के इतने स्वरूप और हर स्वरूप के शिवालय, हर किसी मंदिर का विशेष महात्म्य है। फिर प्रदोष और शिवरात्रि का तो खास महत्व है। लेकिन इस महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पंचमी को मनाए जाने वाले पर्व नाग पंचमी का खास ही महत्व है। इस दिन भगवान शिव के साथ नाग देव की पूजा अर्चना की जाती है। धर्म नगरी काशी में नाग देव की आराधना का भी विशेष स्थान है। इस नाग कूप के नाम से जाना जाता है। और विशेष यह कि मान्यता है कि इस नाग कूप की स्थापना खुद भगवान शंकर ने की थी।
ज्योतिषाचार्य पंडित बृज भूषण दुबे के अनुसार इस बार का सावन कुछ खास महत्व वाला है। सावन के दो सोमवार को विशेष योग पड़ने के कारण इसका महत्व और बढ़ गया है। सावन के दूसरे सोमवार को पड़ रहा है प्रदोष जो भगवान शंकर को सबसे प्रिय है। यूं तो हर माह के दोनों पक्ष में प्रदोष व शिवरात्रि पडते हैं लेकिन इसका सावन में कुछ ज्यादा ही महत्व हो जाता है फिर अगर सोम प्रदोष का योग हो तो पूछना ही क्या। इस दिन को शिव को जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक या रुद्राभिषेक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अवढर दानी शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है, धन धान्य की कमी नहीं होती और भाग्य भी प्रबल रहता है। सोम प्रदोष 29 जुलाई को पड़ रहा है।
पंडित दुबे ने बताया कि दूसरे सोमवार को जहां सोम प्रदोष है तो तीसरे सोमवार को नाग पंचमी है। इस दिन भगवान शंकर का अभिषेक करने के साथ नाग देवता की विशेष पूजा होगी। परंपरागत रूप से काशी के हर घर में नाग देवता को पूजा जाता है। सुबह दूध और लावा चढा कर पूजन होता है फिर दीवारों पर नाग देवता के चित्र भी लगाए जाते हैं। भक्त गण नाग देवता को पूज कर सर्प दोष से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। नाग पंचमी 5 अगस्त को है।
नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त 5 अगस्त के दिन नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त सुबह 5:49 से 8:28 के बीच पड़ रहा है। जबकि तिथि समाप्ति इसी दिन दोपहर 3:54 तक रहेगी। वैसे काशी में नाग देव के पूजन को भगवान शंकर द्वारा बनवाया गया नाग कूप भी है। यह नाग कूप नवापुरा मोहल्ले में स्थित है। इस नाग कुआं के बारे में मान्यता है कि इसकी अथाह गहराई पाताल और नागलोक तक जाती है। यह कूप कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। इस कूप की गहराई की थाह आज तक कोई नहीं लगा पाया। मान्यताओं के अनुसार इस कूप के दर्शन मात्र से ही नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है।
स्थानीय पुरनियों की मानें तो करकोटक नाग तीर्थ के नाम से विख्यात इसी पवित्र स्थान पर नागवंश के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी। मान्यता यह भी है की इस कूप का रास्ता सीधे नाग लोक को जाता है। पतंजलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। गोनार्ध (गोण्डा) में जन्मे पतंजलि बड़े हो कर काशी आए और यहीं नागकूप पर बस गए। वह व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे।
वैसे तो नागपंचमी के दिन छोटे गुरु और बड़े गुरु के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता है उससे तात्पर्य यह है कि हम बड़े व छोटे दोनों ही नागों का सम्मान करते हैं और दोनों की ही विधिविधानपूर्वक पूजन अर्चन करते हैं। क्योकि, महादेव के श्रृंगार के रूप में उनके गले में सजे बड़े नागदेव हैं तो वहीं उनके पैरों के समीप छोटे-छोटे नाग भी हैं और वो भी लोगों की आस्था से जुड़े हुए होते हैं।