राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि 2009 से लेकर अभी तक बसपा का ग्राफ अन्य दलों की अपेक्षा कहीं ज्यादा नीचे गिरा है। इस लिहाज से जब सीटों के बंटावारे मंथन होगा तो सपा का पलड़ा भारी रहेगा। कारण पूर्वांचल की सियासत में सपा ने ज्यादातर सीटों पर बसपा को मात दी है। लोकसभा चुनाव 2014 में पीएम नरेन्द्र मोदी की लहर के चलते बसपा एक भी सीट नहीं मिली थी। वहीं सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव व उनके परिजनों ने किसी तरह पांच सीटों पर विजय हासिल की थी। गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव में भी सपा को जीत मिली है। ऐसे में इन सीटों पर अब सपा का दावा पक्का है। ऐसे में महागठबंधन में इस पर ज्यादा गौर फरमाया जाएगा कि सपा को कहां-कहां बसपा से अधिक वोट मिले थे, ऐसी सभी सीटों पर सपा अपना दावा करेगी जबकि मजबूती से लड़ने वाली सीटों पर बसपा अपना दावा पेश करेगी।
2014 के नतीजों की बात करें तो पीएम नरेन्द्र मोदी के संसदीय सीट बनारस में कांग्रेस मोदी, अरविंद केजरीवाल के बाद कांग्रेस थी तो चौथे नंबर पर बसपा और पांचवें पर सपा। वहीं चंदौली, आजगढ़, गोरखपुर, फूलपुर, गाजीपुर, लालगंज, बलिया, गोरखपुर, सलेमपुर, डुमरियागंज व बस्ती में सपा, बसपा से आगे रही थी। इनसे अलग बनारस के अलावा बासगांव, मऊ, देवरिया, संतकबीर नगर, कुशीनगर व महराजगंजइसी क्रम में इन सीटों पर बसपा को सपा से अधिक मत मिले थे। अब अगर सपा-बसपा के साथ कांग्रेस को जोड़ा जाए तो 2014 से अब तक के सीटों के लिहाज से सीटों का बंटवारा और कठिन होगा। आंकड़ों से साफ है जाता है कि जिन सीटों पर सपा व बसपा एक-दूसरे से आगे रहते हैं और वही सीट उन्हें मिलती है तो सबसे अधिक नुकसान बसपा को उठाना पड़ेगा। बसपा सुप्रीमो मायावती ऐसा होने नहीं देंगी। कारण जिन सीटों पर बसपा को सपा से कम वोट मिले हैं उन सीटों को छोडऩा सपा के लिए आसान नहीं होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो महागठबंधन बनने की सूरत में अगर 2009 के लोकसभा परिणाम को आधार बनाया जाता है तो लगभग-लगभग बराबर-बराबर की दावेदारी होगी। कारण साफ है कि सपा, कांग्रेस और बसपा के बीच एक-दो सीटों का ही अंतर रहा था तब। आंकड़े बताते हैं कि तब 21 में से सर्वाधिक आठ सीट बसपा को, सात सपा और छह सीट कांग्रेस को मिली थी। ऐसे में फिलहाल राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि 2009 में जीती सीटें किसी भी सूरत में कोई भी पार्टी छोड़ना नहीं चाहेगी। वैसे भी इन तीनों में राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है तो बसपा को भी राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल है। ऐसे में सपा ही है जिसे क्षेत्रीय दल के रूप में पहचान है फिलहाल। इस लिहाज से भी तीनों के बीच पांच से आठ सीटों के बीच ही बंटवारा होगा। इस पर किसी को कोई खास एतराज नहीं होना चाहिए। वैसे भी अखिलेश यादव कांग्रेस को पहले ही नसीहत दे चुके हैं कि बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ बड़ा दिल करना भी जरूरी है।
2009 में सपा, कांग्रेस, बसपा और रालोद के जीते प्रत्याशी
बसपा
1-फूलपुर कपिल मुनी कर्वरिया
2-बस्ती अरविंद कुमार चौधरी
3-संत कबीर नगर तिवारी
4-लालगंज डॉ बलिराम
5-घोसी दारा सिंह चौहान
6-सलेमपुर रामशंकर राजभर
7-जौनपुर धनंजय सिंह
8-भदोही गोरखनाथ
बसपा
1-फूलपुर कपिल मुनी कर्वरिया
2-बस्ती अरविंद कुमार चौधरी
3-संत कबीर नगर तिवारी
4-लालगंज डॉ बलिराम
5-घोसी दारा सिंह चौहान
6-सलेमपुर रामशंकर राजभर
7-जौनपुर धनंजय सिंह
8-भदोही गोरखनाथ
सपा
1-कौशांबी शैलेंद्र कुमार
2-इलाहाबाद ए मनी जजी
3–बलिया नीरज सेखर
4-मछलीशहर तुफानी सरोज
5-गाजीपुर राधेमोहन सिंह
6-मिर्जापुर बाल कुमार पटेल
7-राबर्ट्सगंज पकौड़ी लाल कांग्रेस
1-प्रतापगढ़ राजकुमारी रत्ना सिंह
2-श्रावस्ती विजय कुमार
3–डुमरियागांज जगदंबिका पाल
4–गोंडा बेनी प्रसाद वर्मा
5-महराजगंज हर्ष वर्धन
6–कुशीनगर सिंह
1-कौशांबी शैलेंद्र कुमार
2-इलाहाबाद ए मनी जजी
3–बलिया नीरज सेखर
4-मछलीशहर तुफानी सरोज
5-गाजीपुर राधेमोहन सिंह
6-मिर्जापुर बाल कुमार पटेल
7-राबर्ट्सगंज पकौड़ी लाल कांग्रेस
1-प्रतापगढ़ राजकुमारी रत्ना सिंह
2-श्रावस्ती विजय कुमार
3–डुमरियागांज जगदंबिका पाल
4–गोंडा बेनी प्रसाद वर्मा
5-महराजगंज हर्ष वर्धन
6–कुशीनगर सिंह