काशी को जानने वाले पुरनिये बताते हैं कि मुगलकाल के दौरान ‘शाही नाला’ को ‘शाही सुरंग’ के नाम से जाना जाता था। इसकी खासियत यह कि इसके अंदर से दो हाथी एक साथ गुजर सकते हैं। शहर के पुरनियों का कहना है कि अंग्रेजों ने इसी ‘शाही सुरंग’ के सहारे बनारस की सीवर समस्या सुलझाने का काम शुरू किया। काशी का ऐतिहासिक व भौगोलिक नक्शा तैयार करने वाले जेम्स प्रिंसेप के अनुसार, इसका काम वर्ष 1827 में पूरा हुआ था। इसे लाखौरी ईंट और बरी मसाला से बनाया गया था। अस्सी से कोनिया तक इसकी लंबाई 24 किलो मीटर बताई जाती है। यह अब भी अस्तित्व में है लेकिन उसकी भौतिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी किसी के पास नहीं। पुरनियों के मुताबिक यह नाला अस्सी, भेलूपुर, कमच्छा, गुरुबाग, गिरिजाघर, बेनियाबाग, चौक, पक्का महाल, मछोदरी होते हुए कोनिया तक गया है।
शाही नाला की भौतिक स्थिति को चिह्नित करने के साथ ही उसके जीर्णोद्धार का काम जारी है। इस मुगलकालीन शाही नाले को रोबोटिक कैमरों के जरिये जानकारी हासिल की गई। इसके लिए जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जायका) ने 92 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। अब जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की निगरानी में मरम्मत का काम चल रहा है। मरम्मत कार्य का फैसला अगस्त 2015 में लिया गया। सितंबर के बाद रोबोटिक सर्वे का काम शुरू हुआ दरअसल इसका नक्शा न नगर निगम के पास था न जलकल के पास। ऐसे में रोबोटिक सर्वे की जरूरत पड़ी। शहर की घनी आबादी से होकर गुजरने वाला यह नाला पूरी तरह भूमिगत है। प्राचीन शाही नाला मौजूदा समय में भी शहर के सीवर सिस्टम का एक बड़ा आधार है। यह प्राचीन काशी की जलनिकासी व्यवस्था की एक नजीर है। शहर के पुरनिये बताते हैं कि अंदर ही अंदर शहर के कई अन्य छोटे-बड़े नाले इससे जुड़े हैं लेकिन इसकी भौतिक स्थिति का पता न होने से नालों के जाम होने या क्षतिग्रस्त होने पर उसकी मरम्मत तक नहीं हो पाती रही।
बता दें कि कहा जाता है कि मुगल कालीन शाही सुरंग को 1822 में ब्रिटिश काल में शाही नाले में तब्दील कर दिया गया। इसकी गोलाई चार से आठ फीट तक की है। जिसमें आदमी आराम से इसमें आ जा सकता है। ऐसे ब्रिटिश काल से अब तक यह शाही नाला ही शहर का मुख्य ड्रेनेज सिस्टम है। ऐसे में इसे फिर से नवीनीकृत और अपडेट करने के तहत नाले की सफाई, मरम्मत और नई पाइप लाइन बिछाने का काम फरवरी 2016 में शुरू हुआ। इसके लिए संपर्क नालों को ब्लॉक कर दिया गया। इसके चलते शहर की सीवर व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। जगह-जगह सीवर ओवर फ्लो की शिकायत आने लगी। 2016 में हुई नगर निगम सदन की अंतिम बैठक में यह मसला उठा तब जलकल के इंजीनियरों ने यह जानकारी दी थी कि जल निगम द्वारा मेन ट्रंक लाइन बंद कर देने के चलते सीवर ओवर फ्लो की दिक्कत आ रही है। इसी बीच तत्कालीन कमिश्नर नितन रमेश गोकर्ण की बैठक में जल निगम ने बताया था कि शाही नाले की मरम्मत, सफाई और निर्माण का काम दिसंबर तक 2017 तक पूरा हो जाएगा, फिर आगामी 50 सालों तक सीवर की समस्या समाप्त हो जाएगी।
शाही नाले से जुड़ी अन्य ट्रंक लाइनें
-गोदौलियाः यहां इस नाले से कमच्छा, लक्सा, लक्ष्मीकुंड, रामापुरा का सीवर लाइन का कनेक्शन जुड़ा है।
-नईसड़कः सुदामापुर, महमूरगंज, आकशवाणी, बैंक नगर कालोनी, सिगरा चौराहा होते हुए आशिक-माशूक की मजार, सिद्धगिरी बाग, सोनिया, औरंगाबाद, पुराना पान दरीबा, लल्लापुरा, पितरकुंडा, काली महाल, अलकुरैश मस्जिद, पनामा तिराहे से आने वाली सीवर लाइन जुड़ी है। इसी प्रकार गोविंदपुरा, दालमंडी, चाहमामा, घुघरानी गली का सीवर लाइन भी जुड़ी है।
-मैदागिनः यहां चौक, बुलानाला, कर्णघंटा, गोला दीनानाथ, राजादरवाजा, काशीपुरा, नखास की सीवर लाइन मिलती है।
बता दें कि 1982-1984 में शाही नाला में रुकावट के कारण बहाव बाधित हुआ था। जल संस्थान द्वारा बेनियाबाग में बनाया गया भूमिगत वाटर टैंक अंडर ग्राउंड शाही नाले के ऊपर बनाया गया जहां से शाही नाले को खोद कर तिरछा करके मिलाया गया है।
सफाई, मरम्मत और नई पाइप लाइन बिछाने के लिए जल निगम ने गिरिजाघर चौराहे से लहुराबीर तक सड़क के ऊपर मोटी पाइप लाइन बिछा रखी है। इससे इलाके में जाम भी लगता है। खास तौर पर बेनिया-नई सड़क इलाके में। इसे लेकर पिछले साल क्षेत्रीय लोगों ने कई दिनों तक धरना प्रदर्शन भी किया था। लेकिन कोई हल नहीं निकला। कारण साफ है जब तक पूरी तरह से शाही नाला साफ नहीं हो जाएगा इसे हटाया नहीं जा सकता। पूर्व निर्धारित समय में काम पूरा नहीं होने के चलते बिन बारिश सीवर लाइन चोक हो रही है। लोगों को सीवर के पानी से हो कर गुजरना पड़ रहा है वह भी जून के महीने में। अभी पिछले महीने ही मैदागिन, गोलघर, काल भैरव इलाके में जलभराव और सीवर ओवर फ्लो होने पर कमिश्नर दीपक अग्रवाल भी नाराज हुए थे और जल नगिम के इंजीनियर को जेल भेजने तक की चेतावनी दे दी थी।