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अखिलेशवादी सपा बनाम ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’, आसान नहीं शिवपाल की नई पारी

locationवाराणसीPublished: Aug 31, 2018 03:26:41 pm

कभी शिवपाल के एक इशारे पर दौड़े चले आने वाले उनके करीबी भी अब उनकी सियासी हैसियत देख रहे हैं।

Akhilesh Yadav and Shivpal Singh Yadav

अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव

एमआर फरीदी

वाराणसी. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव ने ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ बनाने का ऐलान कर यूपी की सियासत में भूचाल ला दिया है। लम्बे समय से समाजवादी पार्टी में हाशिये पर चल रहे शिवपाल यादव ने आखिरकार भतीजे अखिलेश से अपनी राह अलग कर ही लिया। कहा जा रहा है कि शिवपाल सिंह यादव का मुख्य मुकाबला अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से ही है। राजनैतिक गलियारों में अभी से यह चर्चा शुरू हो गई है कि यह सियासी अदावत 2019 में कुछ नया गुल खिलाएगी। हालांकि उसके पहले शिवपाल को अपना मोर्चा मजबूत करना होगा, जो फिलहाल उतना आसान भी नहीं जितना कहा जा रहा है।
शिवपाल सिंह यादव का समाजवादी सेक्युलर मोर्चा उसी सूरत में सफल हो सकता है जब वह सपा में से कम से कम 10 प्रतिशत भी ऐसे नेता तोड़ लें जो कभी उनके करीबी रहे हैं। इसके अलावा असंतुष्ट और हाशिये पर धकेल दिये गए नेता उनके साथ आ जाएं। यदि ऐसा होता है तो यह अखिलेश यादव के लिये बड़ा झटका साबित होगा और शिवपाल की सियासत की दूसरी पारी के लिये संजीवनी। हालांकि ऐसी ही संजीवनी का मुगालता पाले अमर सिंह भी कभी सपा से अलग हुए थे, लेकिन उसके बाद उनका क्या हुआ यह सबके सामने है।
जिस समाजवादी पार्टी में कभी शिवपाल सिंह यादव की तूती बोलती थी वहां अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। जिस संगठन पर कभी शिवपाल सिंह यादव की पकड़ थी वहां अब अखिलेश यादव का दबदबा है और शिवपाल गुट के नेता भी अपने सियासी भविष्य को देखते हुए अखिलेशवादी हो चुके हैं। पूरे यूपी में स्थिति ऐसी ही है। बात करें पूर्वांचल की तो यहां शिवपाल का गुट काफी मजबूत माना जाता रहा है। यहां के दिग्गज सपा नेता उस समय शिवपाल के साथ नजर आए थे जब भतीजे अखिलेश के साथ सियासी लड़ाई सड़क पर आ चुकी थी।
इसमें पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह, बाहुबली विजय मिश्रा, शादाब फातिमा, नारद राय, अम्बिका चौधरी वगैरह वो नाम थे जो शिवपाल सिंह यादव के साथ खड़े दिखे और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। पर इन नेताओं में अगर शादाब फातिमा को छोड़ दें तो कोई नाम ऐसा नहीं जो फिलहाल शिवपाल के समाजवादी सेक्युलर मोर्चे के साथ जाता दिख रहा हो। इसकी वजह भी है। विधानसभा चुनाव में शादाब फातिमा और अम्बिका चौधरी व नारद राय को सपा ने टिकट ही नहीं दिया था, जिसके बाद अम्बिका चौधरी और नारद राय बसपा में चले गए। पर शादाब फातिमा नहीं गयीं। काफी इन्तेजार कराने के बाद अखिलेश ने ओम प्रकाश सिंह को भी जमानियां विधानसभा से टिकट दे ही दिया था। पर अखिलेश के ही एक और करीबी पूर्व मंत्री गाजीपुर के विजय मिश्रा का टिकट अखिलेश ने काट दिया, जिसके बाद मिश्रा ने बसपा का दामन थाम लिया। बाहुबली विजय मिश्रा को भी अखिलेश ने टिकट नहीं दिया, वह सपा छोड़कर निषाद पार्टी के टिकट पर विधायक बने।
अब समाजवादी सेक्युलर मोर्चे को अगर किसी का साथ मिलने की संभावना है तो वह शादाब फातिमा, बाहुबली विजय मिश्रा और बाहुबली पूर्व सांसद अतीक के परिवार की है। नारद राय ने दोबारा सपा ज्वाइन कर ली है तो अंबिका व विजय मिश्रा बसपा में हैं। दूसरी पार्टियों में अपनी नयी पारी शुरू कर चुके नेताओं के लिये शिवपाल के साथ आने में फायदा दूर की कौड़ी और रिस्क ज्यादा है। इसके अलावा कई सपा नेताओं का यह भी मानना है कि मोर्चा किस सियासी करवट बैठेगा यह अभी साफ नहीं, पर एक बात साफ है कि इसकी कामयाबी सपा के वोटों के बिखराव पर ही संभव है। ऐसे में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा कामयाब तभी होगा जब शिवपाल सिंह यादव उन लोगों को मनाकर अपने साथ लाने में कामयाब होंगे जो कभी उनके वफादार थे और जिनके सपा में असंतुष्ट होने का वो दावा करते हैं।

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