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Sardar Sarovar Dam Project के खिलाफ वाराणसी में हस्ताक्षर अभियान, पीड़ितों के पक्ष में जुटाया समर्थन

locationवाराणसीPublished: Sep 17, 2019 07:49:08 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-Sardar Sarovar Dam Project के बाबत सरकार की कार्यशैली पर उठाया सवाल-अस्सी घाट पर वाराणसी के लोगों की हुई रैली-पर्यावरण की चुनौतियों का मुद्दा उठाया, रखी अपनी बात

नर्मदा बांध परियोजना का विरोध

नर्मदा बांध परियोजना का विरोध

वाराणसी. Sardar Sarovar Dam Project के खिलाफ वाराणसी में आमजन सड़क पर उतरे। रैली और हस्ताक्षर अभियान चलाया। इस मौके पर लोगों ने बांध प्रभावितों के पक्ष में समर्थन जुटाया। साथ ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाया। पर्यावरण की चुनौतियों का मुद्दा भी उठाया और इस बांध को मनुष्यता विरोधी करार दिया।
साझा संस्कृति मंच, एसएसएम, ज्वाइंट एक्शन कमेटी बीएचयू और जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय एनएपीएम के इस अभियान के तहत अस्सी घाट पर हुई जनसभा में छात्रों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने केंद्र सरकार से नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर से वार्ता करने और बांध प्रभावितो के राहत और पुनर्वास के इंतजाम सुनिश्चित करने की अपील की।
45 हजार परिवार दर्द से कराह रहे और पीएम मना रहे जन्मदिन

कहा कि दुःखद आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री अपना जन्मदिन उसी बांध स्थल पर मनाने गए हैं। ऐसे जगह पर जंहा 45 हजार परिवार विस्थापन के दर्द से कराह रहे हो वंहा अपनी व्यक्तिगत खुशी मनाना कैसा संदेश है ? उन्होंने 2 लाख स्वदेशी, किसान, मछुआरे और अन्य परिवारों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा, जो पर्यटन और विकास के पैकेज के इस आतंक की वास्तविक लागत का भुगतान कर रहे हैं। क्या हजारों लोगों के जीवन और आजीविका की तुलना में ‘ प्राकृतिक सुंदरता और जन्मदिन ‘आदि की बात अधिक महत्वपूर्ण है?
एक तरफ गांधी की 150वीं जयंती पर जश्न दूसरी ओर बापू की मूर्ति डूब रही क्षेत्र में

उन्होंने कहा कि अभी दो दिन पहले ही महात्मा गांधी की ऐतिहासिक समाधि स्थल भी डूब क्षेत्र में आ गई। भला हो नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथियो का जिन्होंने बापू की मूर्ति को पानी से बाहर निकाल सम्मान सहित ऊंचीं जगह पर रखा। लेकिन जो पूरा क्षेत्र ही डूबने वाला है और जो लोग खुद संघर्ष कर रहे हैं और डूबने और विस्थापन के लिए अभिशप्त है वो बापू को अगली बार बचा पाएंगे ये एक सवाल है उस सरकार के सामने जो खुद को पर्यावरण प्रेमी बतला रही है और गांधी जी के जन्म के 150वर्ष को देशभर में मना रही है।
बांधों की प्रासंगिकता पर सवाल

पर्यावरण प्रेमियों ने वैश्विक अध्ययनों की शोध रपट का हवाला देते हुए बड़े बांधो की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाए। बड़े बांधो पर होने वाला खर्च, अनगिन विस्थापनों का दर्द और उसके बाद प्राप्य बिजली, पीने के पानी की उपलब्धता, रोजगार आदि के वादे एक लंबे समय में राजनैतिक जुमले मात्र सिद्ध होते रहे है। समय आ गया है जब पर्यावरण के सवाल जल, जंगल, जमीन के सवाल प्राथमिकता से तय किये जाएं।
32 हजार परिवार बांध से प्रभावित

वक्ताओं ने कहा की नर्मदा घाटी में 32 हजार परिवार सरदार सरोवर बांध से प्रभावित है। अभी तक इनका पुनर्वास नहीं हो पाया है। वर्तमान सरकार केवल कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से सरदार सरोवर का जलस्तर 139 मीटर तक ले जाना चाहती है। ये सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना कर रही है। बता दें कि सर्वोच्च न्यायलय ने अपने आदेश में कहा था कि जब तक सभी का उचित पुनर्वास न हो जाये तब तक बांध का जलस्तर न बढ़ाया जाय।
ये है अमानवीय कृत्य

उन्होंने कहा की पुनर्वास और राहत के बिना एक बड़े भूभाग पर इस तरह बांध के पानी से ‘ डूब ‘ ले आना एक निर्मम एवं अमानवीय कृत्य है। क्षेत्र के रहवासी जिनकी वो जमीन, पेड़, खेत, गली, सड़के, कुंएं, तालाब आदि थे, वे किंकर्तव्यविमूढ़ परेशान हाल सरकार के इस कदम से सपरिवार परेशानी में है। हम सभी को नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में खड़े होने की जरूरत है।
केंद्र को अपने फैसले पर पुनर्विचार करे

सामाजिक कार्यकर्ता जागृति राही ने कहा की मध्य प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव द्वारा नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) को 27 मई, 2019 को लिखे गए एक हालिया पत्र के अनुसार, 76 गांवों के कुल 6,000 परिवार डूब क्षेत्र में निवास कर रहे हैं। लगभग 8,500 आवेदन, जिनमें से खेतिहर भूमि के लिये 2,952 रुपये तक के और अन्य पात्रताओं में रु 60 लाख का मुआवजा, जोकि शीर्ष अदालत द्वारा निर्देशित है, अभी भी लंबित हैं। हालांकि, नर्मदा बचाओ आंदोलन का अनुमान है कि कम से कम 32,000 परिवारों को वैकल्पिक भूमि, आदिवासियों और किसानों से अधिगृहीत भूमि के मुआवजे, घर के भूखंड, पुनर्वास स्थलों पर सुविधाओं सहित कई पुनर्वास, पुनर्वास अनुदान और आजीविका विशेष रूप से दलितों और भूमिहीन श्रमिकों, मछुआरों, कुम्हारों, नावों, छोटे व्यापारियों और कारीगरों के लिए मुआवजे का इंतजार है। हालांकि मध्य प्रदेश सरकार ने अनिश्चित स्थिति पर विचार करने के लिए कुछ कदम उठाये है और केंद्र को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए लिखा भी है।
हम दुःखी हैं पीएम के बयान से

उन्होने कहा कि हम यह जान कर दुःखी हैं कि कुछ दिनों पहले प्रधान मंत्री ने यह कहते हुए ट्वीट किया कि वो सरदार सरोवर बांध की 134 मीटर तक की ‘लुभावनी’ दृष्टि से ‘रोमांचित’ है, और यह भी कि वह पसंद करेंगे देश भर से लोग आएं और इसे देखें, साथ में ‘प्रतिष्ठित’ स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को भी निहारें।
एक वक्ता ने कहा कि यह भी उजागर करने की आवश्यकता है कि यह पूरा क्षेत्र V- अनुसूची आदिवासी क्षेत्र के भीतर स्थित है, जिसे भारत के संविधान के अनुसार एक विशेष दर्जा प्राप्त है और राष्ट्रपति के पास इस क्षेत्र में लोगों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेवारी है।
इन बिंदुओं पर चलाया गया हस्ताक्षर अभियान

क- सरदार सरोवर परियोजना जलाशय में जल स्तर बनाए रखने के लिए नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को 122 मीटर पर रुकने को निर्देशित करें।
ख- बांध के फाटकों को बंद करने का जल्दबाजी में लिया गया निर्णय, जब तक कि सभी 32,000 परिवारों का वैध और भेदभावहीन पुनर्वास सुनिश्चित नहीं हो जाता।
ग- पहले से ही प्रभावित हजारों परिवारों को अंतरिम राहत प्रदान करें।
ये रहे मौजूद

जनसभा के दौरान प्रेरणा कला मन्च के साथियो ने जंगल जमीन के सवालों पर जागरूकता लाने के लिए गीत सुनाए। सभा और हस्ताक्षर अभियान में प्रमुख रूप से जागृति राही, एकता शेखर, रवि शेखर, एसपी रॉय, रामजन्म, अनूप श्रमिक, फ़ादर आनंद, महेंद्र राठौर, फ़ॉदर दयाकर, सानिया, रितेश, अनंत अशोक, प्रिएश, धनंजय, श्रेया त्रिपाठी, विवेक मिश्रा, विवेक कुमार आदि मौजूद रहे।
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