अखिलेश यादव व मायावती दोनों पार्टी की बड़ी ताकत यूपी में दिखायी पड़ती है। अभी तक दोनों ही नेता यूपी के सीएम बनने की लड़ाई लड़ते आये हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी की ऐसी लहर चली है कि सपा व बसपा जैसे प्रतिद्वंदी दल को एक साथ चुनाव लडऩा पड़ रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती की निगाह अब पीएम पद की कुर्सी पर है। राहुल गांधी के नेतृत्व में अभी कांग्रेस पुरानी स्थिति में नहीं आ पायी है ऐसे में बसपा सुप्रीमो मायावती जानती है कि यूपी में 30 सीटो पर भी जीत मिल जाती है तो सपा का समर्थन लेकर पीएम बनने का दांव लगाया जा सकता है इसी उद्देश्य से बसपा ने सपा से गठबंधन की तैयारी की है। अखिलेश यादव की योजना है कि एक बार मायावती नई दिल्ली में स्थापित हो जाती है तो यूपी में सिर्फ अखिलेश यादव का राज होगा। बसपा के समर्थन से सपा फिर से यूपी सरकार बना लेगी। दोनों ही दलों की रणनीति तभी कामयाब होगी जब लोकसभा चुनाव 2019 में महागठबंधन को भारी जीत मिले। यदि जीत नहीं मिलती है तो फिर क्या होगा। यह बड़ा सवाल अब खड़ा हो गया है।
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संसदीय चुनाव 2019 में सपा व बसपा को अधिक सीट नहीं मिलती है तो बसपा सुप्रीमो मायावती को फिर से यूपी की राजनीति में सक्रिय होना होगा। यह तभी संभव होगा जब सपा से गठबंधन खत्म हो। यूपी की राजनीति में सपा व बसपा का गठबंधन खत्म हो जाता है तो फिर दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव लडऩे को बाध्य होंगे। ऐसी स्थिति में सीएम योगी का सबसे अधिक फायदा हो सकता है। लोकसभा चुनाव 2019 का चुनाव परिणाम ही सपा व बसपा के गठबंधन का भविष्य तय करेगा। यदि गठबंधन को हार मिली तो सपा व कांग्रेस गठबंधन जैसे हाल हो जायेगा।
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