scriptPM Modi Government-2 का डीएलडब्ल्यू के निगमीकरण का फैसला और डॉ राजेंद्र प्रसाद व लालबहादुर शास्त्री के सपने | Spacial Story about DLW Incorporation by PM Narendra Modi Government 2 | Patrika News

PM Modi Government-2 का डीएलडब्ल्यू के निगमीकरण का फैसला और डॉ राजेंद्र प्रसाद व लालबहादुर शास्त्री के सपने

locationवाराणसीPublished: Jul 08, 2019 02:31:32 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-PM Modi सरकार-2 के DLW Incorporation के फैसले से डीएलडब्ल्यू के 6000 कर्मचारी और उनके परिवारों पर संकट के बादल- देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने रखी थी इस कारखाने की नींव-1961 में बन कर तैयार हुआ था यह कारखाना-1964 में पहला इंजन लोकार्पित किया था देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने- पूर्व काशिराज ने जमीन दान में दी थी भारत सरकार को-आस-पास के किसानों ने भी जमीनें दान दी थीं-अब मोदी सरकार इस कारखाने का करने जा रही है निगमीकरण

DLW and PM Modi File photo

DLW and PM Modi File photo

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. PM Modi Government-2 ने डीजल रेल इंजन कारखाने के निगमीकरण का फैसला किया है। यह कितना समीचीन होगा, इससे देश और खास तौर पर वाराणसी व पूर्वांचल को कितना लाभ होगा यह तो भविष्य तय करेगा। पर आजादी के बाद के सालों में जब देश के महान सपूतों ने इस कारखाने की नींव डाली तो इसे लेकर उनके बड़े सपने थे जिन पर डीएलडब्ल्यू अब तक खरा उतरता चला आ रहा है। बता दें कि इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद काशी और पूर्वांचल के विकास के लिए इस क्षेत्र को औद्योग संसाधन मुहैया कराने के उद्देश्य से देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बनारस में डीजल रेल इंजन कारखाने की नींव रखी थी। यह कारखाना 1961 में बन कर तैयार हुआ और 1964 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने पहला डीजल इंजन देश को लोकार्पित किया था, तब डॉ संपूर्णानंद यूपी के मुख्यमंत्री थे। तब से अब तक डीएलडब्ल्यू निरंतर विकास की कहानी लिखता रहा है। अब इस कारखाने का निगमीकरण होने जा रहा है जिससे यहां काम करने वाले 6000 से ज्यादा कर्मचारियों और उनका परिवार का जीवन प्रभावित होगा। ऐसा वहां के कर्मचारियों का मानना है।
इतना ही नहीं डीजल रेल इंजन कारखाने के निर्माण के लिए पूर्व काशिराज डॉ विभूति नारायण सिंह और डीएलडब्ल्यू के आसपास के किसानों ने तत्कालीन भारत सरकार को अपनी जमीनें दान में दी थीं। ठीक उसी तरह से जिस तरह से महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के सपनों को साकार करने के लिए पूर्व काशिराज व आसपास के लोगों ने अपनी जमीन दान दी जिस पर महामना ने काशी हिंदू विश्व विद्यालय की नींव रख कर अपना सपना पूरा किया था।
डीएलडब्ल्यू की शुरूआत से यहां डीजल इंजनों का निर्माण होता रहा। नरेंद्र मोदी सरकार में इसका रूपांतरण हुआ और इलेक्ट्रिक इंजन बनने लगे। वर्तमान में भी इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के साथ डीजल लोकोमोटिव विदेशों को निर्यात किया जा रहा है।
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डीरेका बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति वाराणसी के संयोजक और कर्मचारी परिषद डीरेका के संयुक्त सचिव विष्णु देव दुबे और मीडिया प्रभारी अविनाश पाठक ने पत्रिका को बताया कि उन्होंने गत चार जुलाई को पीएम को संबोधित ज्ञापन वाराणसी के डीएम सुरेंद्र सिंह को सौंपा था जिसमें डीएलडब्लू के प्रस्तावित निगमीकरण से डीएलडब्लू सहित पुर्वाचल के औद्योगीकरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख किया गया है।
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डीएम को सौंपे गए ज्ञापन में निम्नलिखित बातें बताई गई हैं…

1-क्षेत्र के औद्योगिक विकास पर बुरा असर
डीरेका की स्थापना का उद्देश्य ही राष्ट्र को रेल परिचालन में आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से किया गया था। तत्कालीन काशी नरेश व किसानों ने अपनी जमीन वाराणसी की इस आध्यात्मिक नगरी में एक औद्योगिक मंदिर स्थापित करने व क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से दिया था। अब इस मंदिर के निगमीकरण से क्षेत्र के औद्योगिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा।
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2-सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन पर बुरा असर पड़ेगा
भारतीय रेलवे की उत्पादन इकाइयों की स्थापना ही रेलवे की आधारभूत संरचना के निर्माण एवं क्षेत्र विशेष की सामाजिक आर्थिक प्रगति से जोड कर किया गया था और इसकी प्राथमिक जिम्मेवदारी सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना था। आज भी रेलवे का संचालन सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए किया जाता है। निगम बनते ही लाभ कमाना निगम का प्रथम लक्ष्य हो जाएगा, जिससे सामाजिक जिम्मेदारियां पीछे छूट जाएंगी।
3-उत्पादों के विपणन में संभावित परेशानी
निगमीकरण की स्थिति में निगम बनने वाली संस्था को अपने उत्पादों के विपणन के लिए रणनीति बनानी होगी जो अनुभव की कमी के कारण बड़ा अवरोध कारक बनेगा।
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4-निगमीकरण से वित्तीय नुकसान
निगमीकरण का सबसे बडा नुकसान यह होता है कि सरकार वित्तीय रूप से निगम बनने वाली संस्था को अपना समर्थन नहीं देगी। ऐसी स्थिति में यह संस्था तय करेगी उसका वित्त पोषण कैसे होगा। ज्यादातर संस्थाएं ऐसी स्थिति में वित्तीय संकट का सामना करती हैं और अंततः समाप्‍त हो जाती हैं।
5-कर्मचारियों के सेवा शर्तो एवं सामाजिक सुरक्षा में कमी
निगम के बनते ही कर्मचारियों के सेवा शर्ते पूरी तरह से बदल जाऐंगी जिससे उन्हे व्यापक नुकसान होगा। कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा में न केवल कमी आएगी बल्किक उनके लाभ की कल्यारणकारी योजनाए सदा के लिए समाप्त हो जाएंगी।
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6-सामाजिक जिम्मेदारी से दूर
निगम बनते ही संस्था का मुख्य लक्ष्य लाभ कमाना हो जाता है जिससे संस्था सामाजिक सरोकार से दूर हो जाती है।
7-निगमीकरण के खराब अनुभव
जिन संस्थाओं को सरकारी तंत्र से निकालकर निगम के रूप में तब्दील किया गया है उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। ऐसी संस्थाएं जिनका निगमीकरण हुआ अंततः वो नि‍जीकरण के राह पर हैं तथा गंभीर वित्तीय संकटों का सामना कर रही हैं। निगमित कई कंपनियां या तो नि‍जी हांथो में चली गईं या फिर उनके दिवालिया होने की प्रक्रिया चल रही है। मसलन एमटीएनएल, बीएसएनएल।
8-लघु व मध्यम उद्योगों को नुकसान
निगम बनते ही निगम बनने वाली संस्था आर्थिक कारणों से बड़े उद्योगों से समझौते करती है जिससे अंततः बड़े उद्योगों को लाभ होता है और लघु व मध्यम उद्योगों को सरकारी तंत्र में जो लाभ होता था वह पूरी तरह बंद हो जाता है जिससे आसपास के क्षेत्रों के औद्योगीकरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
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9-रोजगार व उत्पाद की गुणवत्ता में नुकसान
ऐसा प्राय देखा गया है कि जिन सरकारी संस्थाओं का निगमीकरण किया गया है उन संस्थाओं में संतोषजनक रोजगार की स्थिति एवं उत्पाद की गुणवत्ता दोनों में ही नकारात्मकता वृद्धि दर्ज की गई है। बीएसएनल व अन्य निगमीत कंपनियों के उदाहरण हमारे सामने हैं।
10-उत्पाद के ग्लोबल मांग में कमी
डीरेका के उत्पादों की ग्लोबल मांग कम है, भारतीय रेलवे ही डीरेका के उत्पादों का एकमुश्त खरीददार है। दूसरे शब्दों में डीरेका अब तक एकाधिकार वाले बाजार में थी। निगम बनने की स्थिति में भारतीय रेलवे डीरेका से उत्पाद खरीदने के लिए बाध्य नहीं रहेगी लिहाजा उत्पादों के वृहद श्रृंखला के न होने से डीरेका को निगमीकरण से नुकसान ही होगा।
11-अस्थिर और अनिश्चित जीवन से अवसाद का बढ़ना
श्रमिकों के स्थिर और निश्चित जीवन शैली से निगम के बनते ही अस्थिरता और अनिश्चितता आएगी जिससे अंततः कर्मचारी व उनके परिवारो में अवसाद की स्थिति उत्पन्न होगी जिससे आज की तारीख में खुशहाल नागरिकों के विश्वस्तरीय हैप्पी इंडेक्स में भी गिरावट आएगी।
12-डीजल इंजनों के पर्याप्तख मांग
देश व विदेश में डीजल इंजनों की पर्याप्ता मांग उपलब्ध है जबकि विद्युत इंजनों की मांग विकसित देशों के साथ साथ विकासशील देशों में भी बेहद कम है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देश जैसे अमेरिका और चीन में उनके कुल इंजनों की संख्या के 70 प्रतिशत से अधिक डीजल इंजन ही हैं जबकि भारत में स्थिति धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है। दो शत्रु परमाणु देशों से घिरे होने की दृष्टि से भी उचित नहीं है।
इन 12 बिंदुओं पर फोकस करते हुए डीएलडब्ल्यू कर्मचारी नेताओं ने बनारस के सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह अनुरोध किया है कि इन बिंदुओं पर ध्यान देते हुए प्रस्तावित निगमीकरण की प्रक्रिया वापस ली जाय।
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