डीरेका की स्थापना का उद्देश्य ही राष्ट्र को रेल परिचालन में आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से किया गया था। तत्कालीन काशी नरेश व किसानों ने अपनी जमीन वाराणसी की इस आध्यात्मिक नगरी में एक औद्योगिक मंदिर स्थापित करने व क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से दिया था। अब इस मंदिर के निगमीकरण से क्षेत्र के औद्योगिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा।
भारतीय रेलवे की उत्पादन इकाइयों की स्थापना ही रेलवे की आधारभूत संरचना के निर्माण एवं क्षेत्र विशेष की सामाजिक आर्थिक प्रगति से जोड कर किया गया था और इसकी प्राथमिक जिम्मेवदारी सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना था। आज भी रेलवे का संचालन सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए किया जाता है। निगम बनते ही लाभ कमाना निगम का प्रथम लक्ष्य हो जाएगा, जिससे सामाजिक जिम्मेदारियां पीछे छूट जाएंगी।
निगमीकरण की स्थिति में निगम बनने वाली संस्था को अपने उत्पादों के विपणन के लिए रणनीति बनानी होगी जो अनुभव की कमी के कारण बड़ा अवरोध कारक बनेगा।
निगमीकरण का सबसे बडा नुकसान यह होता है कि सरकार वित्तीय रूप से निगम बनने वाली संस्था को अपना समर्थन नहीं देगी। ऐसी स्थिति में यह संस्था तय करेगी उसका वित्त पोषण कैसे होगा। ज्यादातर संस्थाएं ऐसी स्थिति में वित्तीय संकट का सामना करती हैं और अंततः समाप्त हो जाती हैं।
निगम के बनते ही कर्मचारियों के सेवा शर्ते पूरी तरह से बदल जाऐंगी जिससे उन्हे व्यापक नुकसान होगा। कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा में न केवल कमी आएगी बल्किक उनके लाभ की कल्यारणकारी योजनाए सदा के लिए समाप्त हो जाएंगी।
निगम बनते ही संस्था का मुख्य लक्ष्य लाभ कमाना हो जाता है जिससे संस्था सामाजिक सरोकार से दूर हो जाती है।
जिन संस्थाओं को सरकारी तंत्र से निकालकर निगम के रूप में तब्दील किया गया है उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। ऐसी संस्थाएं जिनका निगमीकरण हुआ अंततः वो निजीकरण के राह पर हैं तथा गंभीर वित्तीय संकटों का सामना कर रही हैं। निगमित कई कंपनियां या तो निजी हांथो में चली गईं या फिर उनके दिवालिया होने की प्रक्रिया चल रही है। मसलन एमटीएनएल, बीएसएनएल।
निगम बनते ही निगम बनने वाली संस्था आर्थिक कारणों से बड़े उद्योगों से समझौते करती है जिससे अंततः बड़े उद्योगों को लाभ होता है और लघु व मध्यम उद्योगों को सरकारी तंत्र में जो लाभ होता था वह पूरी तरह बंद हो जाता है जिससे आसपास के क्षेत्रों के औद्योगीकरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
ऐसा प्राय देखा गया है कि जिन सरकारी संस्थाओं का निगमीकरण किया गया है उन संस्थाओं में संतोषजनक रोजगार की स्थिति एवं उत्पाद की गुणवत्ता दोनों में ही नकारात्मकता वृद्धि दर्ज की गई है। बीएसएनल व अन्य निगमीत कंपनियों के उदाहरण हमारे सामने हैं।
डीरेका के उत्पादों की ग्लोबल मांग कम है, भारतीय रेलवे ही डीरेका के उत्पादों का एकमुश्त खरीददार है। दूसरे शब्दों में डीरेका अब तक एकाधिकार वाले बाजार में थी। निगम बनने की स्थिति में भारतीय रेलवे डीरेका से उत्पाद खरीदने के लिए बाध्य नहीं रहेगी लिहाजा उत्पादों के वृहद श्रृंखला के न होने से डीरेका को निगमीकरण से नुकसान ही होगा।
श्रमिकों के स्थिर और निश्चित जीवन शैली से निगम के बनते ही अस्थिरता और अनिश्चितता आएगी जिससे अंततः कर्मचारी व उनके परिवारो में अवसाद की स्थिति उत्पन्न होगी जिससे आज की तारीख में खुशहाल नागरिकों के विश्वस्तरीय हैप्पी इंडेक्स में भी गिरावट आएगी।
देश व विदेश में डीजल इंजनों की पर्याप्ता मांग उपलब्ध है जबकि विद्युत इंजनों की मांग विकसित देशों के साथ साथ विकासशील देशों में भी बेहद कम है। यहां यह उल्लेखनीय है कि दुनिया के सबसे ज्यादा विकसित देश जैसे अमेरिका और चीन में उनके कुल इंजनों की संख्या के 70 प्रतिशत से अधिक डीजल इंजन ही हैं जबकि भारत में स्थिति धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है। दो शत्रु परमाणु देशों से घिरे होने की दृष्टि से भी उचित नहीं है।