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World Environment Day Special-हवा से पानी तक जहरीला, जिएं तो कैसे जिएं

locationवाराणसीPublished: Jun 03, 2018 05:46:44 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

3 STP क्षमता 102 MLD शोधन, रोज निकलता है मलजल 350 MLD यानी 248 MLD गैर शोधित गंदा पानी सीधे जा रहा गंगा व सहायक नदियों में।

काशी में जल व वायु प्रदूषण

काशी में जल व वायु प्रदूषण

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की हवा पानी सब जहरीला हो गया है। अब फेफड़ों से लेकर दिल तक छलनी होने की बात पुरानी होती जा रही है। रोज नई-नई बीमारियां शरीर को जकड़ने लगी हैं। सामान्य सी दिखने वाली खांसी का भी इलाज नहीं हो पा रहा। वैद्य और डॉक्टर बनारस से बाहर रहने की सलाह देने लगे हैं ताकि शुद्ध हवा और पानी मिल सके। लेकिन प्रशासन गहरी नींद में है।
शहर की आबोहवा में मानक से 10 गुना तक ज्यादा प्रदूषण है। बंद कमरे में भी रहना मुश्किल है, सड़कों की तो हालत ही क्या कहना। शहर से लेकर आस-पास के ग्रामीण इलाकों में भी सांस लेना मुश्किल हो गया है। हर तरफ वही धूल, खुले नाले, जलते कचरे, नालों से निकली गंधाती सील्ट, ध्वस्त ट्रैफिक सिस्टम के चलते घंटों जाम में फंसने पर डीजल और पेट्रोल के काले धुएं। ऐसे में किसी को चर्म रोग हो रहा तो कोई खांसी जैसी सामान्य सी बीमारी से महीनों उबर नहीं पा रहा। जनरल फिजिशियन डॉ पीके तिवारी हों या चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ एमके मिश्र अथवा इएनटी विशेषज्ञ डॉ केएन मिश्रा, सबकी सलाह है कि ये पल्यूशन है। इसके चलते रोजाना मरीजों की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। लेकिन जिम्मेदारों का हाल यह कि कि पिछले छह महीने में महज 13 दिन ऐसे मिले जब इंसान को शुद्ध हवा मिली।
हवा ही प्रदूषित है ऐसा नहीं इस शहर में तीन चौथाई हिस्से को गंगा जल सप्लाई किया जाता है। लेकिन अब तो गंगा जल भी जहरीला हो गया है। ये जल आचमन करने लायक तो रही नहीं गया तो पीएंगे कैसे। गंगा से लेकर नाले तक में प्लास्टिक का कचरा आम है। कहने को यहां गंगा सफाई का अभियान तो जून 1985 से शुरू है। लेकिन इन 33 वर्षों में गंगा का आंचल लगातार मैला ही हुआ है। अब तो गंगा जल में आक्सीजन तक की कमी होने लगी है जिससे मछली ही नहीं अन्य जलीय जंतुओं के जीवन पर भी खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में यह जल पेयजल में तब्दील कर जो घरों में सप्लाई किया जा रहा है बिना फिल्टर पीने काबिल नहीं। फिल्टर के बाद भी मोटर न्यूट्रान जैसी घातक बीमारी हो रही है। ऐसा मर्ज जिसा का दुनिया में कोई इलाज नहीं। अब कहां जाएं।
हाल यह है कि हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात में भी न जिला प्रशासन को चिंता है न प्रदूषण नियंत्रण विभाग को। नगर निगम की तो बात ही नहीं करना। किसी स्तर पर आज तक अलर्ट नहीं घोषित किया गया। वायु प्रदूषण पर काम करने वाली संस्था केयर 4 एयर की ओर से एकता शेखर, रवि शेखर के नेतृत्व में मास्क लगा कर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नीचे धरना-प्रदर्शन तक किया गया लेकिन क्या फर्क पड़ता है। करते रहिए प्रदर्शन, देते रहिए धरना, हम नहीं सुधरेंगे।
हाल ये कि गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए शहर में तीन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं, दीनापुर, भगवानपुर और डीजल रेल इंजन कारखाना। इसमें दीनापुर की क्षमता है 80 एमएलडी, भगवानपुर की 9.8 एमएलडी और डीरेका की 12 एमएलडी। यानी कुल मिला कर 102 एमएलडी शोधन क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इस वक्त शहर में काम कर रहे हैं। इसके सापेक्ष रोजाना शहर से निकलता है 350 एमएलडी मलजल, यानी 248 एमएलडी मलजल सीधे गंगा व सहायक नदियों में बिना शोधन के ही गिरा दिया जा रहा है रोज। अब उसी जल को पंप कर जलकल विभाग अपने परिसर स्थित टैंक में भेजता है जहां से घरों में सप्लाई होती है। कहने को जलकल अपने स्तर से गंगा जल को फिल्टर करने का दावा करता है पर कितना? उसके पास कोई शोधन संयंत्र है क्या?
अब दीनापुर में 140 एमएलडी, गोइठहां में 120 एमएलडी और रमना में 50 एमएलडी क्षमता के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट निर्माणाधीन हैं। इनका निर्माण कब तक पूरा होगा ये तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन जानकार बताते हैं कि जब तक इस कुल 310 और 102 को मिला कर 412 एमएलडी क्षमता के एसटीपी जब शहर को मिलेंगे तब तक मलजल का उत्सर्जन जो वर्तमान में 350 एमएलडी है वह दोगुना नहीं तो डेढ़ गुना तो बढ़ ही जाएगा। यानी काशी अब वास्तव में मोक्ष दायिनी हो गई है तभी तो बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विजय नाथ मिश्र डाइंग सिटी के नाम से फिल्म बनाने लगे हैं।

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