पत्रिका विशेष
आवेश तिवारी
वाराणसी। वो 1959 का वक्त था। लखनऊ स्थित ईस्टर्न कमांड ने सिक्किम और नार्थ ईस्ट फ्रंटियर की तिब्बत से सटी सीमाओं पर चीन से मुकाबले के लिए सेना को कूच करने का हुक्म दिया। चौथी इन्फेंट्री डिविजन से मेजर जनरल के के तिवारी को बतौर कमांडर सिग्नल के तौर पर असम के तेजपुर इलाके में पहुँचने का हुक्म सुनाया गया।
आमतौर पर यह डिविजन मैदानी इलाकों में 30 से 40 किमी के क्षेत्र में युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित थी लेकिन अब उसे हजारो वर्ग किलोमीटर में फैले पहाड़ी क्षेत्र में चीन से मुकाबला करना था। उस वक्त अरुणांचल प्रदेश में भारत के पांच फ्रंटियर डिविजन थे मगर कोई सड़क नहीं थे, उस पर से पहुँचते ही क्वार्टर मास्टर जनरल ने तत्काल आपरेशन अमर शुरू करने का हुक्म दिया। चौकिये मत इन्हें कोई युद्ध नहीं लड़ना था बल्कि अपने लिए बांस के मकान बनाने थे जिसे ‘बांसा’ कहा जाता है।
आटा खाओ, आटे से लड़ो, आटे से सन्देश भेजो
यह वो दौर था जब मिलिट्री आपरेशन के दौरान सिग्नल का काम करने वाले सैनिक मजदूरों की तरह तीन महीने तक भारत चीन सीमा पर मकान ही बनाते रहे। उस दौरान किल्लत इस कदर थी कि रोटियों पर लिख कर सन्देश भेजे जाते थे। जब एक सैनिक द्वारा मेजर जनरल तिवारी को रोटी पर लिखकर सन्देश भेजा गया और उन्होंने उसका कारण पूछा। तो सैनिक ने कहा ‘ हमें इसके लिए माफ़ करे कि हमें आटे का इस्तेमाल सन्देश भेजने के लिए करना पड़ रहा है, लेकिन यही एकमात्र चीज बची है जिससे हम युद्ध लड़ सकते हैं , अपना पेट भर सकते हैं और सन्देश भेज सकते हैं।’
आपरेशन ओंकार का वो कठिन वक्त
सन 1962, आर्मी हेडक्वार्टर ने असम राइफल्स पर मौजूद सभी पोस्ट्स को आगे बढ़कर ‘आपरेशन ओंकार’ शुरू करने का हुक्म सुना दिया। यह वो वक्त था जब मेजर जनरल की डिविजन ने सेना द्वारा निर्धारित तीन सालों के परिवार विहीन सेवा की अवधि पूरी कर ली थी। मेजर जनरल तिवारी एकमात्र अधिकारी थे जो दो साल का अतिरिक्त समय यहाँ दे रहे थे। लेकिन युद्ध सिर पर था सो उन्हें डटे रहना था। सातवी इन्फेंट्री ब्रिगेड के ब्रिग्रेडियर दलवी ने ‘नमका चु’ नामक नदी के तट पर अस्थायी हेडक्वार्टर बनाने का हुक्म सुनाया। रातों रात तवांग सेक्टर में एक अस्थायी ब्रिगेड बना दी गई जहाँ सिग्नल की सुविधा भी न थी।
जब सितम्बर 1962 में चीन ने मैकमोहन लाइन के पास ढोला पोस्ट पर कब्ज़ा जमा लिया अचानक जनरल बी एम् कौल 8 अक्टूबर को तेजपुर पहुंचे उन्होंने कहा कमांडिंग की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई है। मुकाबला कडा होने जा रहा था और जनरल तिवारी की जिम्मेदारी भी बढने जा रही थी। हेडक्वार्टर का हुक्म था कि कोई भी सन्देश टेलीग्राफिक भाषा में नहीं भेजे जायेंगे ,उन्हें एक लिफ़ाफ़े में रखकर भेजा जाना था और उस पर टॉप सीक्रेट लिखा जाना था ,यह खतरनाक था मगर आदेश था ‘।
जब रम की जार में ले लाये मेजर बैटरी का एसिड
उधर ब्रिग्रेडियर दलवी की ब्रिगेड तय समय पर नमका चू पहुँच गई थी। जैसे ही ब्रिगेड पहुंची उन्हें थाग्ला की चोटी से चीनी सैनिको को पीछे खदेड़ने का हुक्म सुना दिया गया। लेकिन सबसे दुखद यह रहा कि जब जनरल तिवारी वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां कोई जनरेटर नहीं था जिससे कि बैटरी का चार्ज होना मुश्किल था। जो स्थानीय पोर्टर उसे लेकर आ रहे थे उनमे से कुछ चीनियों के जासूस भी थे ,उन्होंने जनरेटर रास्ते में ही एक खड्ड में गिरा दिया। केवल इतना ही नहीं उन लोगों ने रास्ते में बैटरियों से एसिड निकालकर फेंक दी उसका जिससे वजन कुछ कम हो सके। अब मेजर जनरल तिवारी के पास सिग्नलिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं बची थी। सर्वाधिक दुखद यह था कि एयरफोर्स के पायल ने हेलीकाप्टर से एसिड लाने से मना कर दिया। फिर क्या था मेजर जनरल तिवारी ने एक बड़ा सा जार लिया उसमे एसिड भरा और उस पर “सेना के लिए रम लिखा स्टीकर चिपकाया और हेलीकाप्टर से एसिड ले आये। जिससे बैटरियों को चार्ज किया जा सके और चीनियों से मुकाबला किया जा सके।
चीनी कैद के वो दिन और फिर मिले जनरल कौल
20 अक्टूबर की सुबह मेजर जनरल तिवारी की नींद तेज बमबारी के साथ खुली वो अपने बनकर में थे नींद खुलते ही वो तेजी से अपने सिग्नल बनकर की ओर भागे लेकिन जैसे ही वो वहां पहुंचे उनके दो सिग्नलमैन वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। इसके पहले की वो संभलते चीनी बूटों की आवाज उन तक पहुंची सैकड़ों चीनी सैनिकों ने उन्हें घेर कर बंदी बना लिया। कुछ ही समय में वो युद्धबंदी के तौर पर चीनियों के कैम्प में थे।
जनरल तिवारी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है हमें चीनी कैद में माओवादी साहित्य पढने को दिया जाता था ,वो कहते थे कि रेड बुक पढो ,मैने पढ़ी लेकिन मुझे
लता मंगेशकर के उस गाने का इन्तजार रहता था जो अक्सर चीनी कैम्पों में बजता था “आजा रे अब मेरा दिल पुकारा ..।” युद्ध खत्म होने के कुछ दिन बाद एक दिन जनरल कौल मेजर जनरल तिवारी से दिल्ली के एक बैंक में मिले । जनरल तिवारी दौड़ कर गए और कहा ” सर मुझे पहचाना ,मैं आपका कमांडिंग आफिसर सिग्नल ‘, जनरल कौल ने यह सुनते ही तिवारी को गले से लगा लिया और कहा ‘तुम पहले अधिकारी हो किशन, जिसने मुझे पहचाना ,रिटायरमेंट के बाद मेरे साथ काम करने वाले भी मुझे देखते हैं तो मुंह फेर लेते हैं ।’