दरअसल भारत सरकार गंगा नदी में गैंगेटिक डाॅल्फिन संरक्षा के लिये बेहद गंभीर स्तर पर प्रयास कर रही है, जिसके सकारात्मक नतीजे भी मिले हैं। इसके लिये जनजागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं। वसाराणसी के रामनगर में गंगा प्रहरी टीम के प्रदेश संयोजक दर्शन निषाद के नेतृत्व में भी इसके लिये जन जागरूकता अभियान चलता है। उनकी टीम अपने अभियान के तहत गंगा नदी में मछुआरों की निगरानी करती है। टीम जब सुजाबाद गांव के सामने नदी में रेस्कयू कर रही थी तो मछुआरों की जाल में एक बिल्कुल अलग दिखने वाली अजीबो गरीब मछली आयी। ऐसी मछली मछुआारों ने पहले कभी नहीं देखी थी। चटख नारंगी रंग की मछली लोगों में कौतूहल का विषय बन गयी, लेकिन कोई इसकी पहचान नहीं कर पाया।
दर्शन निषाद ने बताया कि जाल में जो मछली फंसी उसके शरीर पर कांटे उभरे हुए हैं। मुंह सिर के नीचे है और आंख ऊपरी हिस्से में। मछली चटख नारंगी रंग की है। पकड़े जाने के बाद अंदेशा जतायाा गया कि यह मछली क्लास स्तर की हो सकती है। इसके बाद मछली की पहचान के लिये नमामि गंगे भारत सरकार व भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानित डाफ. रुचि बडोला और वरिष्ठ वैज्ञानित डाॅ. ए हुसैन को भेजा गया था।
हालांक किहा यह जा रहा है कि मछली किसी के अक्वेरियम के जरिये गंगा में आयी हो सकती है। क्योंकि यह जहां पाई जाती है वह यहां से हजारों मील दूर है और अमेजन से गंगा में आना किसी तौर मुमकिन नहीं। डीएफओ वराणसी महावीर कौजलीगी की भी इस बाबत यही राय है। उन्होंने पत्रिका को बताया कि सकर कैटफिश गंगा की प्रजाति नहीं बल्कि यह अमेजन नदी में पायी जाती है। हो सकता है कि किसी के अक्वेयिरम के द्वारा मछली गंगा में आ गई हो। हालांकि अक्वेरियम की विदेशी मछलियां नदियों में डालना ठीक नहीं।