इस बीच स्वामी सानंद के शिष्य स्वामी सिवानंद ने एक अति कारुणिक पत्र जारी कर सभी को स्वामी जी के 09 अक्टूबर से जलत्याग की सूचना दी है। प्रस्तुत है स्वामी शिवानंद का पत्र, उन्हीं के शब्दों में…
ऊँ मोदी जी का एक लेख पढ़ने को मिला। लेख बहुत ही सुन्दर था। इसमें अथर्ववेद के भूमि सूक्त का एक मन्त्र उद्धृत किया गया था। यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत् सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु। अथर्ववेद 12/1/3
यानि जिसमें समुद्र, नदी,जल हो, जिसमें खेती तथा अन्न होता हो, जिसमें यह क्रियाशील प्राण तृप्त होता हो, जिसमें पूर्व से पान करने वाला रसयुक्त पेय हो, वह भूमि हमें प्रदान करें। वेद के प्रत्येक मन्त्र के ऋषि होते हैं जिन्होंने प्रथम इसे देखा, उसके देवता होते हैं,वह किसी छन्द में होता है तथा उसका किसी में विनियोग होता है। अब ऋषि, देवता व छन्द तो ज्ञात है परन्तु मोदी जी इसका विनियोग किसमें कर रहे हैं? आजकल के लेखक मन्त्रों का विनियोग तीन ढंग से करते हैं-
1. अपने बुद्धि का प्रदर्शन करने के लिए कि मैं वेद का ज्ञाता हूं
2. उसके तथ्य को समझने के लिए
3. उसके सही रूप को जीवन में उतारने के लिए अब मोदी जी को दूसरे और तीसरे विनियोग से कोई मतलब नहीं है। भारतवर्ष में समस्त नदी व जल को दूषित कर नदी व स्रोत के अमृत तुल्य जल को विष बना रहे हैं तथा बोतलबंद जल कारपोरेट जगत के हित के लिए लोगों को पान करवाते हैं। लगता है भारतवर्ष में गरीब लोग,पशु, पक्षी व जलीय जीव को शुद्ध जल पान करने का अधिकार ही नहीं रहा। अन्य नदी की बात कौन करे अमृततुल्य गंगा नदी को पहले बांध में बांधकरफिर उसमें जहाज आदि चलाने के उपक्रम कर उसे नष्ट कर रहे हैं। नदी तो अब भारत वर्ष में रही ही नहीं, क्योंकि जो अपने उद्गम से मचलती, इठलाती, अपने दोनों किनारों को छूती भूमि और भूमा से लगातार संपर्क में रहती हुई, चलकर अपने लय स्थान में जाती है उसे ही नदी कहते हैं। मोदी जी द्वारा उद्धृत उसी भूमि सूक्त के 9वें मन्त्र जो इसी सिद्धान्त को प्रतिपादित करती है:
‘यस्यामापः परिचराः समानीरहोरात्रे अप्रमादं क्षरन्ति।
सा नो भूमिर्भूरिधारा पयो दुहामथो उक्षतुवर्चसा। अथर्ववेद 12/1/9
ऋषि प्रार्थना करते हैं कि जिसमें जल चारों बगल समानरूप से रात-दिन बिना प्रमाद के (लगातार अविरल) बहता है, ऐसी प्रचुर धारा वाले भूमि हमें दुग्ध के समान सारभूत फल को देवे, हमें वर्च (तेज) से सम्पन्न करें (जिन्हें स्वामी सानन्द जी वैज्ञानिक भाषा में Latitudinal, Longitudinal,Vertical and Temporal connectivity कहते हैं)।
अब प्रश्न उठता है कि मोदी जी के भूमि सूक्त का विनियोग पहला है या तीसरा?
अथर्ववेद के इसी सूक्त के भाव को लेकर एक 87 वर्षीय ऋषि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द मातृ सदन में आज 108 दिनों से अन्न त्याग कर गंगा जैसे अमृततुल्य पवित्र नदी को अपने मूलभूत रूप में लाने के लिये तपस्या पर हैं और मोदी जी एवं उनके जल संसाधन, जहाजरानी, परिवहन व गंगा मंत्री, जिन्हें गंगाजी की गरिमा का पता भी नहीं है और गंगाजी के प्रति श्रद्धा है ही नहीं,अपनी संपत्ति समझ गंगाजी को नष्ट करने पर उतारू हैं। इस ढंग से तो भारत वर्ष की समस्त नदियां विलुप्त हो जाएंगी और भारत वर्ष के बच्चों को नदी देखने और अध्ययन करने के लिए विदेश जाना पड़ेगा। वैसे मोदी जी को विदेशी रहन-सहन बहुत भाता है, स्वदेशी से उनको कोई मतलब नहीं है, तभी तो वे वाराणसी जैसे सांस्कृतिक शहर को क्वोटो बनाना चाहते हैं।
मोदी जी कृपया समय रहते चेतिए, मात्र दो दिन का समय है, 09 अक्तूबर के दोपहर से स्वामी सानन्द जी जल का परित्याग करेंगे, उसके बाद जीवन बचना मुश्किल है। यह आपके लिए अमिट कलंक होगा। आपको पता ही होगा कि 2011 में मातृ सदन के संत स्वामी निगमानन्द सरस्वती की आपकी उत्तराखण्ड सरकार,जिस समय श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी मुख्यमन्त्री थे,ने बलिदान ले लिया।
स्वामी सानन्द जी के पुण्यधाम के गमन के बाद मैं स्वयं तपस्या पर बैठूंगा तथा हमारे प्राणान्त के बाद यह क्रम जारी………..। यहां भगीरथ के द्वारा गंगाजी को दिये बचन का स्मरण दिला दूं-
साधवो न्यासिनः शान्ताः ब्रह्मिष्ठा लोक पावनाः।
हरन्त्यघं तेंऽगसंगात् तेष्वास्ते ह्यघभिद्धरिः।। श्रीमद्भागवत 9/9/6
सर्वत्यागी, अपने इन्द्रियों से उपरत होकर शान्त, ब्रह्मिष्ठ व लोक को पावन करने वाले संन्यासी अपने अंग संग से तेरे पाप का हरण करेंगे क्योंकि अघ (पाप) का भेदन करने वाले हरि उनके हृदय में वास करते हैं। मातृ सदन व स्वामी सानन्द जी भगीरथ के द्वारा दिये गये इसी आश्वासन का पालन कर रहे हैं।
स्वामी शिवानन्द
मातृ सदन आश्रम, हरिद्वार