scriptTeachers Day Special: वो शिक्षक जिसने मुफलिसी से सीखी जीने की कला फिर बदल दी गांव की तस्वीर | Teachers Day Special Story about Nandlal Master Varanasi | Patrika News

Teachers Day Special: वो शिक्षक जिसने मुफलिसी से सीखी जीने की कला फिर बदल दी गांव की तस्वीर

locationवाराणसीPublished: Sep 05, 2019 01:19:07 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

ऐसा शिक्षक जिसने 17 साल की उम्र से ही बच्चों को पढाना शुरू किया वह भी निःशुल्क-देखते-देखते उनके नाम के साथ ही जुड़ गया मास्टर-बच्चों के साथ ग्रामीण महिलाओं, किशोरियों, बुनकरों के बच्चों में जगाई शिक्षा की अलख-देश विदेश में भारतीय शिक्षा के महत्व की अलख जगाई-सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़े और लड़ने को तैयार की जमीन-जल, जंगल, जमीन ही नहीं प्रदूषण के खिलाफ भी खोल रखा है मोर्चा-गांव के लोगों को जोड़ कर बनाई संस्था और लोगों को किया जागरुक-स्कूल खोला और बच्चों को दे रहे निःशुल्क शिक्षा

Nandlal Master

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डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. देश के दूसरे राष्ट्रपति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन का है आज जन्मदिवस। पूरा देश उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। वो शख्स जिसने देश ही नहीं पूरी दुनिया को भारतीय शिक्षा, भारतीय दर्शन का ज्ञान कराया। ऐसे में काशी जिसे सर्व विद्या की राजधानी माना गया है, उस जिले में शहर से दूर एक गांव में रहने वाले साधारण से बुनकर परिवार में जन्मा एक शख्स जिसके सिर से पिता का साया छोटी-सी उम्र में ही उठ गया। अशिक्षित मां पर सात बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी आ गई। उन्होंने किसी तरह मजदूरी कर बच्चों का पेट पाला। परिवार का बोझ कम करने के लिए बड़ी बहन उस बच्चे को अपने साथ ससुराल ले गई। वहीं उन्होंने अपनी पढ़ाई शुरू की। स्कूल जाने वाले वे अपने घर के एकमात्र सदस्य थे। आगे चल कर वही बच्चा गांव के लिए मास्टर साहब बन गया।
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छुट्टी मनाने आए नागेपुर और यहीं बच्चों को पढाना शुरू कर दिया

बचपन में ही मौसी के घर से वह छुट्टियों में नागेपुर आए। उन्होंने देखा कि यह बनारसी साड़ी बुनकरों का इलाका है और यहां ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते। एक दिन चार-पांच बच्चे उनके पास आए और उनसे पढ़ने का आग्रह करने लगे। इसके बाद, नंदलाल ने रोज शाम को दो घंटे उन्हें पढ़ाना शुरू किया। देखते-ही-देखते एक महीने के अंदर ही उनके पास 40 से 50 बच्चे आने लगे। महज 17 साल के नंदलाल को लोग मास्टर जी कहने लगे। इसके बाद तो उनका नाम ही ‘नंदलाल मास्टर’ पड़ गया।
17 साल की उम्र में ही समाज सेवा से जुड़ गए
नंदलाल मास्टर 17 साल की अल्पायु में ही समाज-सेवा में जुट गए थे। उन्होंने शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि पांच गरीब बुनकर बच्चों को पढ़ाने से शुरू हुआ सिलसिला आज पांच सौ से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की जिंदगी में उजियारा फैला रहा है। यहीं नहीं वे अपनी संस्था के जरिए युवतियों और महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी के आगे अक्सर लोग घुटने टेक देते हैं, लेकिन जो शख्स दुख और संघर्ष की आग में खुद को तपा देता है, वह नंदलाल मास्टर जैसी सुनहरी शख्सियत बन जाता है।
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परिवार के विरोध को दरकिनार कर नागेपुर के लोगों का जीवन सुधारने में जुटे

आज की तारीख में नंदलाल मास्टर नागेपुर गांव में किसी के बेटे हैं तो किसी के भाई। किसी के गुरु हैं तो किसी के सहयोगी। ऐसी एक उनकि शिष्या स्वाती सिंह जो खुद भी मुहीम संस्था के माध्यम से किशोरियों को मासिक धर्म के दौरान होने वाली दिक्कतों से वाकिफ कराने, बच्चों को पढाने उनके कैरियर को बेहतर करने में जुटी हैं, ने पत्रिका संग मास्टर नंदलाल के बारे में अपने अनुभव साझा किया। स्वाती बताती हैं कि नागेपुर के बुजुर्ग अशोक सिंह बताते हैं कि नंदलाल मास्टर साहब को बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते उनसे ऐसा लगाव हुआ कि परिवार के विरोध के बावजूद उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी। वे यहां बच्चों को पढ़ाने में ज्यादा समय देने लगे। खुद बुनकरी सीख कर परिवार की जीविका के लिए वे घर में ही हथकरघा पर बनारसी साड़ी बनाने लगे। इसी दौरान उन्होंने समाजशास्त्र से मास्टर डिग्री की पढ़ाई भी पूरी की।
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गांव की तस्वीर बदलने का बीड़ा उठाया

इसके बाद गांव की तस्वीर बदलने के लिए नंदलाल ने आसपास के गांवों के नवयुवकों को अपने साथ जोड़ा और दूसरे गांवों में भी बाल-श्रमिकों को निशुल्क शिक्षा देना शुरू किया। नागेपुर, बेनीपुर, नेवाज का पूरा, तक्खुपुर, हरसोस, मेहदीगंज, कल्लीपुर, सईदपर, गणेशपुर, इस्लामपुर, खजूरी आदि गांवों में शाम को बुनकर बच्चों की पाठशाला लगने लगी। साथ ही, उन्होंने गांव के नौजवानों के साथ लोक समिति संस्था का गठन किया। आज आशा सामाजिक स्कूल के नाम से दो स्कूल हैं, जहां पांच सौ से ज्यादा बच्चे निशुल्क शिक्षा ले रहे हैं।
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गरीब लड़कियों और महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने का अभियान शुरू किया

उन्होंने गरीब लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग गांवों में सिलाई-कढ़ाई व व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए दस केंद्र खोले। वहां इस समय कई लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं। इसी तरह गांव से सूदखोरी खत्म करने और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटी-छोटी बचत के माध्यम से स्वयं सहायता समूह शुरू किया। अब आराजीलाइन ब्लॉक के करीब 30 गांवों में 60 से ज्यादा महिलाओं के बचत समूह बन चुके हैं। ये महिलाएं अपने बचत बैंक से लेन-देन कर रही हैं।
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दहेज प्रथा को खत्म करने को सामूहिक विवाह कराना शुरू किया
सामाजिक कार्यों के दौरान नंदलाल मास्टर ने महसूस किया कि उनके इलाके में बुनकर परिवार काफी कम उम्र में लड़कियों की शादी कर देते हैं। साथ ही दहेज का भी चलन है। इस प्रथा पर चोट करने के लिए उन्होंने 2007 में अपनी संस्था लोक समिति के माध्यम से दहेज रहित सामूहिक विवाह कराने का निर्णय किया। अब तक जन-सहयोग से वे 700 से ज्यादा शदियां करा चुके हैं।
गरीब बच्चों को गोद लिया और पढाना शुरू किया
इसके अलावा नंदलाल ने गांवों में महिला किसानों के माध्यम से बीज बैंक बनाया। गरीब बच्चों के लिए अत्याधुनिक वाचनालय और पुस्तकालय खोले। वे गांव के 40 होनहार गरीब बच्चों को गोद लेकर उनके कॉलेज की पढ़ाई में सहयोग कर रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने असंगठित मजदूरों की यूनियन भी बनाई। आज करीब 3000 से ज्यादा मजदूर संगठित हैं।
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कई देशों का भ्रमण किया, सम्मानित हुए

नंदलाल मास्टर को सामाजिक क्षेत्र में काम करने के लिए कई संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। वे ब्राजील, हंगरी, नीदरलैंड और जर्मनी में विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर व्याख्यान दे चुके हैं। वे क्षेत्र की हर समस्या के लिए जनता की आवाज बन कर खड़े रहते हैं। गरीबी, बेरोजगारी व अभाव में अक्सर लोग जीवन के आगे घुटने टेक देते हैं लेकिन जो शख्स दुख और संघर्ष की आग में खुद को तपा देता है, वह नंदलाल मास्टर जैसी सुनहरी शख्सियत बन जाता है।
हाल ही में यूएसए में भारतीय दर्शन व शिक्षा की अलख जगा कर लौटे हैं
नंदलाल मास्टर जुलाई में गए थे महीने भर की अमेरिकी यात्रा पर। उन्होंने 25 दिनों की अमेरिका यात्रा के बारे में बताया कि यात्रा बहुत ही शिक्षाप्रद व रोमांचित करने वाली रही। आशा, AID, CAI व अन्य नये पुराने साथियों के साथ मिलना उनके साथ बैठकें करना बहुत अच्छा लगा। वहां के MIT यूनिवर्सिटी (बोस्टन), जार्जिया टेक यूनिवर्सिटी (अटलांटा), यूनिवर्सिटी आफ टैक्सास (ऑस्टिन) जैसे विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय में छात्रों, प्रोफेसर के बीच हम जैसे सामाजिक कार्यकर्ता का अपने सामाजिक सारोकारो पर वक्तब्य देना और लोगों के बीच आकर्षक का केंद्र होना सचमुच सुखद आश्चर्यचकित करने वाला था। इस दौरान अमेरिका के ऐतिहासिक स्थलों, यहाँ की संस्कृति, कला,शिक्षा ब्यवस्था आदि को देखने से बहुत कुछ सीखने और समझने को मिला। उन्होंने आशा फार एजुकेशन टीम के प्रति आभार जताया, जिनके आमंत्रण पर उन्हें अमेरिका जाने का मौका मिला।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने किया सम्मानित
शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर 4 सितंबर 2019 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (समाजकार्य विभाग) वाराणसी द्वारा सामाजिक सेवा कार्य के लिए मास्टर नंदलाल का सम्मान किया गया।
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