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साझा विपक्ष के प्रतिरोध मार्च से BJP में बढ़ी बेचैनी

locationवाराणसीPublished: Sep 20, 2017 09:28:40 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बीजेपी में अंदरखाने करारा जवाब देने की तैयारी पर मंथन। संभव है पीएम के साथ होने वाली बैठक में भी उठे यह मुद्दा।
 

झूठ के खिलाफ विरोध मार्च

साझा विपक्ष का विरोध मार्च

वाराणसी. मुद्दा चाहे जो रहा हो पर जिस तरह से संयुक्त विपक्ष ने बुधवार को काशी में प्रतिरोध मार्च निकाला उससे बीजेपी खेमें पर हड़कंप मच गया है। बीजेपी को इस तरह की उम्मीद भी न थी कि समूचा विपक्ष एक हो पाएगा और इस तरह से रैली निकाल लेगा। फिर जब सुबह बारिश शुरू हुई तो बीजेपी के लोगों में चर्चा शुरू हो गई कि अब तो यह रैली पूरी तरह से फ्लाप हो जाएगी। लेकिन बारिश की परवाह न करते हुए विपक्षी सड़कों पर उतरे तो बीजेपी सकते में आ गई। इतना ही नहीं आज के विपक्ष के इस मार्च ने आम आदमी को भी सोचने पर विवश कर दिया है कि कहीं न कहीं तो ये सही हैं। मार्च के दौरान भी आते जाते राहगीरों और खास तौर कमजोर तबके का जिस तरह से समर्थन मिल रहा था उसके कहीं न कहीं गहरे संकेत थे।
इस रैली का महत्व इस कारण भी बढ़ जाता है कि इसमें किसी पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं था। सारे स्थानीय नेता थे। वे नेता जो कभी एक पार्टी में होते हुए एक दूसरे की आलोचना करने से नहीं चूकते रहे। लेकिन आज वे सभी एक साथ थे। हाथ में हाथ डाले कदम से कदम मिलाते चल रहे थे। उनके निशाने पर थी बीजेपी और वाराणसी के सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। उन्होंने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर कतिपय लोगों द्वारा की गईं भद्दी-भद्दी टिप्पणियों को लेकर गुस्सा साफ नजर आया। खास तौर पर महिलाओं के बीच। हालांकि पुरुष भी उन टिप्पणियों को लेकर खासे संजीदा नजर आए। उन्हीं टिप्पणियों में से एक का तो बैनर भी बनाया गया था जिसे पुलिस पिकेट के ऊपर लगा दिया गया था जिसे पुलिस ने नोच कर जमीन पर गिरा दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उनका साफ कहना था कि सचमुच इस तरह का एका अगर विपक्ष में 2019 तक बना रहेगा तो परिणाम चाहे जो हो लेकिन बीजेपी को भी अपनी रणनीति बनाते वक्त काफी मशक्कत करनी होगी। कारण यह था कि इस रैली में उन लोगों का शरीक होना था जो आम तौर पर खुद को सक्रिय राजनीति से अलग कर चुके हैं। ऐसे में उनका सड़क पर उतरना राजनीतिक हलकों में बड़ा संदेश दे गया। कुछ पुराने लोगों को यह कहते सुना गया कि अगर सारे दल एक हो कर एक-एक मुद्दे पर सत्ताधारी दल पर हमला शुरू कर दें तो आमजन के बीच इसका सकारात्मक संदेश जाएगा।
कुछ लोग यह भी सुनते नजर आए कि बीजेपी को यह कयास ही नहीं रहा होगा कि इस तरह से विपक्ष एकजुट हो कर सड़क पर उतर आएगा। वाकई कई सालों या दशकों बाद इस तरह की एकजुटता नजर आई विपक्ष में। अन्यथा ये तो अपने ही दलों में एक दूसरे की टांग खींचते दिखते थे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है। लेकिन हर किसी की जुबान पर एक ही बात थी कि यह एकजुटता 2019 तक कायम रहे। बिखराव की सूरत में हालात फिर जस के तस हो जाएंगे। फिर इस मार्च में स्वयंसेवी संगठनों का उतरना, महिलाओं की भागीदारी ने इसकी सफलता में चार चांद लगा दिया। चाहे ये महिलाएं समाजवादी पार्टी की हो या कांग्रेस अथवा आम आदमी पार्टी की। सबसे आश्चर्य जनक तो अपना दल की सहभागिता रही। कुछ आयोजक भी इनकी भागीदारी को लेकर चकित रहे। उधर प्रधानमंत्री के बनारस दौरे से दो दिन पहले निकली इस विपक्ष की रैली को लेकर बीजेपी में अंदरखाने चिंतन जरूर शुरू हुआ है। कारण वे भी कहीं न कहीं लग रहा है कि ये एकजुट रहे तो खतरा पैदा कर सकते हैं। सबसे पहले तो सेमीफाइनल के रूप में देखे जा रहे नगर निकाय चुनाव को लेकर बीजेपी खेमा सकते में है। वाराणसी की हालिया स्थिति से सब अच्छी तरह से वाकिफ हैं, ऐसे में अगर नियोजित तरीके से विपक्ष निकाय चुनाव में उतर आता है तो यह सत्ताधारी दल के लिए चुनौती भरा होगा।
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