गांव के अंदर बिजली के खम्भे एवं तारों का संजाल बिछा है, लेकिन यह भी पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। जर्जर खम्भों के सहारे दौड़ रही बिजली से ग्रामीण भय के साये में जीने को मजबूर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में समस्याओं का अम्बार है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि गांव का हाल जानने नहीं आया।
ग्रामीणों का कहना है कि सूबे में सरकार बदलने के बाद विकास की आस जगी थी, वह भी अब दम तोड़ रही है। बिजली और पानी ही नहीं, बेहतर कल की बुनियाद मानी जानेवाली शिक्षा व्यवस्था भी कमोबेश बदहाल ही है। पर्याप्त मात्रा में केरोसिन तेल नहीं मिल पाने के कारण रोशनी के स्रोत ढ़िबरी पर भी ग्रहण लग जाता है, फिर लोग मोमबत्ती व रोशनी के अन्य वैकल्पिक माध्यमों पर निर्भर होने को विवश हो जाते हैं।
गांव की छात्राओं ने बिजली की अनुपलब्धता पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा बोर्ड परीक्षाएं नजदीक हैं। ऐसे में यहां बिजली की इतनी ज्यादा समस्या है, कि हम लोग ढ़िबरी के उजाले से पढ़ने को मजबूर है। छात्राओं ने कहा कि केरोसिन तेल भी प्रर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता, पढ़ाई में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों ने इसकी शिकायत विभागीय अधिकारियों के साथ ही जिले के आला अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों से भी की, लेकिन समस्याओं के समाधान की दिशा में पहल करना किसी ने भी जरूरी नहीं समझा। ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन का ध्यान आकर्षित कराते हुए समस्याओं का समाधान सुनिश्चित कराने की मांग की है।
गौरतलब है कि यह गांव भी देश के लिये अपने लाल की शहादत दे चुका है। गाँव ह्दय शंकर दूबे सरहद की निगरानी करते हुए सन 2004 में शहीद हो गये थे। उस समय शासन-प्रशासन ने विकास के सब्जबाग दिखाए भी, लेकिन वह महज कोरी घोषणाएं बनकर रह गईं।
इनपुट- सुनील सोमवंशी