शिक्षा निदेशक डॉ अवध नरेश शर्मा की ओर से 13 फरवरी को संयुक्त शिक्षा निदेशक और जिला विद्यालय निरीक्षक को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि चार फरवरी 2018 को भी इस आशय का एक पत्र भेजा गया था लेकिन उस पर अभी तक कोई सुझाव नहीं आए हैं। निदेशक ने कहा है कि शासन व विभाग शैत्रणिक सत्र 2018-19 से राजकीय इंटर कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने-लिखने की व्यवस्था की जानी है। उन्होंने निम्नलिखित मुद्दों पर सुझाव आमंत्रित किए हैं….
1- क्या आपके जिले के सभी राजकीय इंटर कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम अनुभाग प्रारंभ किया जा सकता है। यदि नहीं तो किस कारणवश तथा फिलहाल कितने कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम अनुभाग स्थापित किया जा सकता है।
2- जिन कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम अनुभाग प्रारंभ किया जा सकता है उनमें पूर्व तैयारी के लिए निदेशालय या शासन स्तर से किसी प्रकार की आवश्यकता की स्थिति। 3- अंग्रेजी माध्यम अनुभाग प्रारंभ करने के लिए कोई अन्य सुझाव।
निदेशक ने कहा है कि चार फरवरी को अपर सचिव के माध्यम से जारी पत्र को संज्ञान लेना शासन की प्राथमिकता विषयक प्रकरण के संबंध में आपकी उदासीनता परिलक्षित करती है। उन्होंने बताया है कि अंग्रेजी भाषा के शिक्षण पर विशेष बल दिए जाने के उद्देश्य से राजकीय इंटर कॉलेजों में अध्ययनरत छात्र, छात्राओं को अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन कार्य कराने के लिए प्रदेश सरकार कृत संकल्प है तथा आगमी शैक्षिक सत्र 2018-19 से राजकीय इंटर कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन कार्य प्रारंभ किया जाना प्रस्तावित है। ऐसे में सभी सक्षम अधिकारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि आगामी शैक्षणिक सत्र से राजकीय इंटर कॉलेजों में अंग्रेजी माध्यम से लिखने-पढ़ने की व्यवस्था प्रारंभ करने के लिए अपना सुझाव अति शीघ्र मेल अथवा ह्वाट्सएप ग्रुप पर उपलब्ध कराएं।
हवाहवाई है योजना इस संबंध में पत्रिका ने जब पूर्व शिक्षक विधायक डॉ प्रमोद कुमार मिश्र से बात की तो उनका कहना था कि सब कुछ हवा हवाई है। उन्होंने कहा कि हिंदी माध्यम के जो स्कूल-कॉलेज चाहे वो राजकीय हों या सहायता प्राप्त वहां शिक्षक हैं नहीं, अब अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होगी। उन्होंने बताया कि पूर्व में भी ऐसा एक आदेश आया था हालांकि वह ऐच्छिक था। ऐसे में कुछ विद्यालयों में उसे लागू किया गया। लेकिन वह केवल अभिभावकों की जेब पर डाका बन कर रह गया है। एक हॉल में चार-चार सेक्शन संचालित किए जा रहे हैं। यह पढाई नहीं बल्कि शिक्षा का मजाक है। दरअसल यह सरकार पूरी तरह से माध्यमिक शिक्षा परिषद का भी बाजारीकरण करने पर तुली है। साथ ही कहा कि अगला शैक्षिक सत्र अप्रैल से शुरू होगा, आज 14 फरवरी हो गई और अभी सुझाव मांगे जा रहे हैं। सुझाव कब तक जाएंगे, कब पाठ्यक्रम तैयार होगा, कब शिक्षकों की नियुक्ति होगी। ये सारे सवाल अभी अनुत्तरित हैं। लगता नहीं कि ऐसा कुछ करने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार वास्तव में संवेदनशील है। अगर कहीं किसी राजकीय विद्यालय में यह व्यवस्था लागू भी कर दी गई तो पढ़ाने कौन आएगा। अंग्रेजी माध्यम शिक्षा के लिए टीचर भी तो वैसे ही दक्ष होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे बेहतर है कि जो व्यवस्था है उसी में शिक्षकों की भर्ती करें।