बनारस की सेवईं केवल मुस्लिम वर्ग के लोगों की ही पसन्द नहीं बल्कि सभी इसे बड़े चाव से खाते है। हर वर्ष ईद के लिए सेवई का काम होली के बाद से ही जोर पकड़ने लगता था। बनारसी सेवईंयों के दीवाने पूरे देशभर में हैं। इन सेवइयों की सबसे बड़ी खासियत इनकी बारीकी और साफ-सफाई है। पीढ़ियों से सेंवई बनाने का काम कर रहे वाराणसी सेंवई एसोसिएशन से जुड़े फूलचंद बताते हैं कि यहां की सेवईंयां बाल के बराबर जितनी बारीक होती हैं। फूलचंद बताते हैं कि एक कुंतल में करीब 20 से 25 किलो सेंवई ही उतर पाती हैं। जीरो नंबर, मोटी, मध्यम किमामी स्पेशल आदि सेवईं जो मार्केट में ₹50 किलो बेची जाती है। इस बार समान थोड़ा महंगा पड़ रहा तो बाज़ार में थोड़ा महंगा बिक रहा है।
सेवई बनाने के काम से जुड़े जतन कुमार बताते हैं कि सेवईं बनाना मेहनत का काम है, सेवई को सूखने में कुल 12 घंटे का समय लगता है, उसके बाद पैकिंग का काम होता है। सेवई कारोबारी फहीम कहते हैं कि जो फोन से ऑर्डर दुकानदार दे रहे हैं उन्हें पहुंचाने का काम किया जा रहा है। पर इस बार बाहरी व्यापारी आये ही नहीं जिसका बहुत बड़ा नुकसान हुआ।
बनारस में अब केवल राजघाट स्थित भदऊं में ही सेवईं बनाने का कारोबार जिंदा है। पहले रेवड़ी तालाब, मदनपुरा और दालमंडी में भी सेंवइयां बनती थीं लेकिन अब वहां के कारखाने बंद हो गए हैं। करीब 30 साल पहले सेवईं बनाने के वाली मशीन आ गई। बनारस में मौजूदा वक्त में सेवईं के करीब 50 प्लांट हैं। रोजाना एक प्लांट से करीब चार से पांच क्विंटल सेंवई तैयार होती थी पर इस बार ये प्लांट बस चालू हैं क्योंकि बाहर से व्यापारी आ नहीं सके।
सेवईं के लिए बनारस तो पुर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी है ही इसके साथ ही यहां की सेवईं का स्वाद देश के आधा दर्जन से ऊपर राज्यों तक पहुंचता है। उनमें महाराष्ट्र, मुम्बई, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश प्रमुख है। ट्रांसपोर्ट सेवा बाधित होने से इस बार ईद पर सेवईं के स्वाद से कई राज्यों के लोग वंचित रह जाएंगे।