अचानक लगा लाखों का चूना :- तीन पीढिय़ों से बनारसी पान का कारोबार करने वाले अनिल चौरसिया बताते हैं कि देश में बनारसी पान की सबसे बड़ी पान मंडी बनारस ही है। यहां से हर रोज 10 ट्रक से अधिक कच्चा पान (हरा पान) बाहर भेजा जाता है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के जरिए विदेशों को भी इसका आयात होता है। लेकिन यह सब ठप है। लाखों का कच्चा पान सड़ रहा है।
काले कोयले की आंच से होंठ की लाली :- बनारसी पान को कोयले की आंच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है। इसके बाद इस पर सफेद, पीला और गुलाबी रंग चढ़ता है। यहां के दो हज़ार से अधिक परिवारों का यह पुस्तैनी धंधा है। जिसमें एक लाख से अधिक कारीगर लगे हैं। यही बनारसी पान का रंग देते हैं।
बनारसी पान पर दोहरी मार :- पान विक्रेता संघ और पानदरीबा आढ़त से जुड़े दिनेश कहते हैं बनारस की बड़ी आबादी पान कारोबार से जुड़ी है। अप्रेल-मई का महीना कमाई का सीजन होता था। लगन, बारात, त्योहार में पान की मांग होती है। लेकिन सब ठप है। श्री बरई सभा काशी के महामंत्री अंजनी बरई कहते हैं लॉकडाउन में बनारसी पान को हर रोज कम से कम 15 करोड़ का नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही खस, मुकम्मर, गुलाब जल,पीला जर्दा, किमाम, गुलकंद जैसे सामान भी 21 दिन बाद बेस्वाद हो जाते हैं। इन्हें भी फेंकना होगा।
पान के 10 ब्रांड अब केशर का सहारा :- बनारस में बनारसी के अलावा मघई, पारादीपी, सांची, जगन्नाथी, चंद्रकला,मोहनपुरी, मिदनापुरी, मिठुआ, जबलपुरी देशी जैसे पान के कम से कम 10 ब्रांड मिलते हैं। हर बनारसी पान की गिलौरी मुंह में घुलाये रहता है। लेकिन अब बनारसी कहते फिर रहे हैं-गुरु मुंहवा के त जैसे हरण होई गइल बा। अब तो केशर का ही सहारा है।