लाशों के बीच घुंघरुओं की झंकार :- चैत्र नवरात्र की सप्तमी की रात श्मशान नाथ महोत्सव का आयोजन किया जाता है। काशी की मणिकर्णिका घाट पर हर साल मोक्ष प्राप्त करने के लिए सेक्स वर्कर (नगर वधुएं) नृत्य करती हैं। रात में मुर्दों की जलती लाशों के बीच घुंघरुओं की झंकार सुनकर कोई भी डर जाए पर सेक्स वर्कर हैं कि अपने अल्हड़ अंदाज से महाश्मशान के राजा श्मशान नाथ को खुश करने का पूरा जोर लगाती हैं।
नटराज से निवेदन :- ऐसा प्रचलन में है कि, नगर वधुएं जलती चिताओं के सामने नटराज को साक्षी मानकर यहां नाचेंगी तो अगले जन्म में नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा। इसलिए यह सभी नगरवधू भगवान नटराज से निवेदन करती रहती हैं।
सोनम वांगचुक लखनऊ आ रहे हैं, चौंक गए, जानिए क्यों कैसे शुरू हुआ श्मशान नाथ उत्सव :- बताया जाता है इस प्रथा की शुरूआत वर्ष 1585 में हुई थी। आमेर के राजा सवाई मान सिंह के समय से परम्परा शुरू हुई है। मान सिंह ने 1585 में मणिकर्णिका घाट पर मंदिर का निर्माण करवाया था। श्मशान नाथ उत्सव में महाश्मशान की वजह से जब कोई कलाकार संगीत कार्यक्रम पेश करने को राजी नहीं हुआ तो मान सिंह ने नगरवधुओं को आमंत्रण भेजा। नगरवधुओं इस आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया। और पूरी रात महाश्मशान पर नृत्य करती रही। वो दिन है और आज का दिन यह परम्परा निरंतर चली आ रही है।