दरअसल केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण जल परिवहन परियोजना के तहत गंगा में क्रूज चलाने, पर्यटकों को रिझाने के लिए शुरू वाटर स्पोर्ट्स तथा जल परिवहन में आड़े आने वाली कछुआ सेंचुरी को बनारस से हटाने का नाविक समाज विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि गंगा में क्रूज चलाने से उनकी रोजी रोटी पर प्रभाव पड़ रहा है। तीन-तीन पीढि़यों से नांव चला कर ही परिवार का भरण पोषण कर रहे थे, लेकिन क्रूज संचालन से जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल होगा वहीं बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि भी प्रभावित होगा। नाविक किसी कीमत पर गंगा में क्रूज नहीं चलने देना चाहते।
मां गंगा निषाद राज सेवा समिति के प्रदेश सचिव हरिश्चंद्र बिंद ने बताया कि गत 12 दिसंबर को हुई महापंचायत में ही आंदोलन की घोषणा की गई थी। शासन प्रशासन को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया था। लेकिन उस पर तवज्जो नहीं दिए जाने के बाद जब 15 दिन बीत गए तो गुरुवार को अस्सी घाट पर हुई महापंचायत में यह फैसला लिया गया कि शासन-प्रशासन की हठवादिता के विरोध में अब केवल हड़ताल ही विकल्प है। बोट लाइसेंस का नवीनीकरण न होना भी नाराजगी का बड़ा कारण है। नाविक समाज को अपनी दुर्दशा के लिए सीधे तौर पर वाराणसी के सांसद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि जब से नरेंद्र मोदी बनारस के सांसद हुए हैं तभी से मांझी समाज के खिलाफ एक न एक योजना लागू करने की बात शुरू हुई और अब तो क्रूज का संचालन भी शुरू हो गया। इससे पहले गंगा में ई-बोट लाई गई थी, अब जल परिवहन शुरू हो गया है।