scriptकाशी में बनेगा राक्षसराज विभीषण का मंदिर, शुक्राचार्य, त्रिजटा और सुषेन वैद्य के विग्रह भी स्थापित होंगे | Vibhishan Temple Will Built in Varanasi with Treta Yug Charachters | Patrika News

काशी में बनेगा राक्षसराज विभीषण का मंदिर, शुक्राचार्य, त्रिजटा और सुषेन वैद्य के विग्रह भी स्थापित होंगे

locationवाराणसीPublished: Oct 24, 2020 07:39:23 pm

त्रेतायुग के मैत्री संबंधों को भी पुनर्जीवित करेगा यह मंदिर
एक जगह होंगे राम चरति मानस से जुड़े पात्रों के दर्शन
विश्व में अपनी तरह का अकेला श्री राम मंदिर होगा

Vibhishan Mandir

विभीषण मंदिर

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. शिव की काशी में लंकापति राक्षसराज विभीषण का भी मंदिर होगा। यहां एक ऐसा राम मंदिर बनाया जा रहा है जिसमें श्रीराम व जानकी सहित कई अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां विराजमान होंगी तो उसी के परिसर में त्रेतायुग के मैत्री संबंधों को भी पुनर्जीवित किया जाएगा। यहां राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य, राक्षस राज विभीषण, माता त्रिजटा और सुषेन वैद्य की प्रतिमाएं लगाई जाएंगी। इससे जहां त्रेतायुग के मैत्री संबंध पुनर्जीवित होंगे तो वहीं भारत और श्रीलंका के मैत्री संबंध भी मजबूत होंगे।

 

यह मंदिर महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र की जन्मस्थली लमही स्थित सुभाष भवन के पास इंद्रेश नगर में बन रहा है। इसमें भगवान श्रीराम, के भाइयों, इनकी माताओं, पिता, हनुमान जामवंत, नल नील, जटायु, विभीषण आदि की मूर्तियां होंगी। मंदिर में राम चरित मानस से जुड़े पात्रों के एक साथ दर्शन हो जाएंगे।

 

Vibhishan Temple

 

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी परिषद के सदस्य इंद्रेश कुमार ने भगवान राम के प्रति आस्था को जन-जन तक पहुंचाने के लिये श्रीराम पंथ की शुरुआत की है। मंदिर का मकसद है कि रामराज की स्थापना में सहायक रहे देवी देवताओं के दर्शन एक ही जगह हो जाएं।

 

यह मंदिर वाराणसी के लमही स्थित इंद्रेश आश्रम परसिर में आश्रम द्वारा ही बनवाया जा रहा है। 2000 स्क्वायर फीट में बनने वाला यह विश्व में अपनी तरह का अकेला मंदिर होगा। पिछले आठ दिनों से मंदिर के लिये शिला पूजन का कार्यक्रम चल हा है। नवें दिन मंदिर के भूमि पूजन के साथ ही इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हो जाएगा।

 

आरएसएस के इंद्रेश कुमार ने कहा है कि रामराज्य की स्थापना में सहयोग देने वाले ऋषि पुत्रों, देवताओं और राक्षस कुल के लोगों की मूर्तियां पूजी जाएंगी। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि प्रभु श्रीराम ने जात-पात, शत्रु-मित्र, देश, भाषा आदि का भेद किये बिना सबको गले लगाया है।

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