काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र के नागरिकों का कहना है कि इस धरोहर को बचाने की जरूरत है, उसे संरक्षित करने की जरूरत है न कि उसे ढाहने की।
एक तरफ विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण और सौंदर्यीकरण की योजना परवान चढ़ रही है, विश्वनाथ कॉरिडोर व गंगा पाथ वे परियोजना को अमली जामा पहनाए जाने की कवायद में जुटा है शासन व प्रशासन। वहीं दूसरी ओर परिक्षेत्र का हाल बुरा है। प्राचीन भवन व मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं। गिर रहे हैं। ये वो भवन व मंदिर हैं जिनकी दीवारों पर जो चित्रकारी है, जो मीनाकारी है वह आज देखने को दुर्लभ है। उसे उसी रूप में दोबारा स्थापित किया जाना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं है।
इतनी संकरी गली और उसमें भी एक मकान की दीवार से निकला पुराना विशाल वृक्ष और कहीं नहीं मिलेगा। तभी तो कितनी भी गर्मी सताए इन गलियों में हमेशा शीतलता रहती है।
यहां हर घर में मंदिर है और हर मंदिर एक धरोहर है। ऐसा कोई घर नहीं जिसमें किसी न किसी देवी देवता के विग्रह न हों। फिर ये भी नहीं कि ये मंदिर और देव विग्रह हाल के वर्षों में रखे गए हों। कोई ढाई सौ साल पुराना है तो कोई पांच सौ साल पुराना।
गलियों में कूड़ा कचरा पसरा रहता है। नियमित तौर पर साफ सफाई भी नहीं होती।
इसे देखने के लिए लोग काशी आते हैं। जरूरत इन गलियों की संसकृति को जानने और समझने की है। उसे समझे बगैर कोई भी आदमी उसे खंडहर मान कर गिरा सकता है यहां जरूरत उन गिरते भवनों की मरम्मत कराने की है।