इस बार जिला निर्वाचन अधिकारी ने 90 प्लस का टार्गेट रखा है। निर्वाचन विभाग से लेकर स्वीप तक के अधिकारी और कर्मचारी लगातार इस जतन में लगे हैं कि मतदान प्रतिशत लक्ष्य के सापेक्ष हो। इस संबंध में स्वीप की ब्रांड एंबेसडर, अंतर्राष्ट्रीय अथलीट नीलू मिश्रा ने बताया कि मतदान प्रतिशत बढाने के लिए, जागरूकता रैली निकाली जा रही है, नुक्कड़ नाटक कराए जा रहे हैं। खेल कूद के माध्यम से भी प्रयास किया जा रहा है लोगों को जागरूक करने का। उन्होंने बताया कि करीब 30-32 सेंटर्स ऐसे चिह्नित किए गए हैं जहां पोलिंग परसेंटेज काफी कम रहता है। इसमें सिगरा स्थित छित्तूपुर सिंचाई कालोनी में सबसे ज्यादा समस्या है। लोग मतदान से पहले छुट्टी में घर चले जाते हैं। इस बार लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वो मतदान जरूर करें। इसी तरह सभी चिह्नित क्षेत्रों में जनजागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
बता दें कि निर्वाचन आयोग के प्रयास से मतदाता सूची में तो वृद्धि हो रही है, इसमें युवाओं की तादाद ज्यादा होती है। लेकिन वो भी मतदान के प्रति बहुत रुचि नहीं लेते। अगर पिछले 57 साल की बात करें तो सर्वाधिक 63 फीसद मतदान 1962 में हुआ था, उसके बाद से कई सालों तक 50 फीसद के आस-पास रहा। यहां तक कि 2009 में जब बसपा और भाजपा के बीच कांटे की लड़ाई हुई तब भी मतदान प्रतिशत 42 फीसद ही रहा।
यहां यह भी बता दें कि मतदाताओं को जागरूक करने और मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग की ओर से प्रति विधानसभा 14 हजार रुपये दिए जाते हैं। वाराणसी की आठ विधानसभा क्षेत्रों में जागरूकता के लिए जिला निर्वाचन कार्यालय को एक लाख 12 हजार रुपये मिले हैं। अब स्वीप और निर्वाचन कार्यालय लगातार प्रयास कर रहा है। देखना यह है कि इस बार क्या टार्गेट पूरा होता है। हालांकि इसमें मौसम की मार भी काफी हद तक प्रभाव डालती है। गर्मी में होने वाले चुनावों में लोग घर से निकलना ही नहीं चाहते।
लोकसभा चुनाव में वोटिंग परसेंटेज वर्ष- वोटिंग परसेंटेज1962-63.28
1967-49.49
1971-55.48
1977-55.83
1980-53.66
1984-54.94
1989-42.64
1991-44.79
1996-40.58
1998-47.18
1999-45.02
2004-42.60
2009-42.1
2014-58.35
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