शब-ए-बराअत का मतलब
इस्लामकि महीने शाबान के 14 और 15 तारीख के बीच की रात को ‘शब ए बराअत’ कहा गया है। इस रात के बारे में पैगम्बर साहब ने फरमाया है कि आज की रात अल्लाह की जानिब से लोगों की माफी की जाती है। इस रात को अरबी में लैलतुल बराअत कहा जाता है। ‘लैला’ का अर्थ अरबी में रात और ‘बराअत’ का अर्थ है छुटकारा। इस रात इबादत कर गुनाहों की माफी मांगी जाती है। यानि ये गुनाहों से छुटकारे की रात है। फारसी जबान में रात को शब कहते हैं और उर्दू में भी शब ही कहते हैं। इसलिये जहां उर्दू हिन्दी और फारसी बोली जाती है वहां इसे शब-ए-बराअत कहा जाता है। शब-ए-बरात इसका बिगड़ा शब्द है।
इस दिन की इबादत का पूण्य उन्होंने बताया कि ‘शब ए बराअत’ की रात इबादत कर गुनाहों की माफी दुआ मांगी जाती है। इस्लाम में ऐसी मान्यता है कि इस रात को ऐस करने से गुनाह माफ हो जाते हैं। रात के पिछले हिस्से में की गई दुआ कबूल होती है, ऐसा कहा जाता है। यानि रात दो बजे से लेकर भोर में चार बजे तक। उन्होंने बताया कि इसके अगले दो दिन रोजा रखा जाता है।
पटाखा बजाना शब ए बराअत और पटाखा छाेड़ने का आपस में कोई लेना देना नहीं। यह बिल्कुल फिजूल खर्ची और वक्त की बरबादी है। मुफ्ती हारून ने बताया कि इसका इस्लाम से या शब ए बरात से ताल्लुक नहीं है।
मस्जिद मजारों पर रोशनी मुफ्ती हारून के मुताबिक रोशनी करना एक रवायत (परंपरा) है। मजारों पर रोशनी करने का मकसद वहां मजारात की निशानदेही और लोगों के लिये सहूलियत जैसा है। कब्रिस्तानों में आने जाने वालों की सहूलियत के लिये रोशनी कर दी जाती है। मस्जिदों के रास्ते व मस्जिदों को भी रोशन कर दिया जाता है ताकि अंधेरे से दिक्कत न हो।
पकवान इसका पकवान से कोई ताल्लुक नहीं है। एक रवायत है मीठा पका लेने की। लोग फातिहा के लिहाज से भी ऐसा करते हैं।