-सर्वजन का नारा, पिछड़ों के वोट का बंटवारा और दलितों से दूरी ने मायवती के हाथो से छीन ली थी सत्ता
आवेश तिवारी
वाराणसी– यूपी विधानसभा चुनाव के पूर्व एकतरफ जहाँ सपा,भाजपा और कांग्रेस को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर चर्चाये खुल कर हो रही है ,वही जीत की प्रबल दावेदार माने जाने वाली बसपा के खेमे में अजीब सी खामोशी है ।2007 में गुंडाराज का सफाया करने के नाम पर सत्ता में आई मायावती ने 2009 में हुए लोकसभा चुनावों और फिर 2012 के विधानसभा चुनाव में बेहद खराब प्रदर्शन किया ।कहीं न कहीं से इन दोनों चुनावों के परिणामों में मायावती की परम्परागत समर्थक जनता की हताशा भी दिख रही थी,जिसे लगता रहा था कि अफसरों पर नकेल कस कर मायावती सर्वजन को ताकतवर बना रही हैं।आइये उन वजहों को तलाशने की कोशिश करते हैं जिनकी वजह से बसपा पिछला चुनाव हारी थी ,इन वजहों को समझकर ही हम 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा की ताकत की जोर -आजमाइश कर सकते हैं
सत्ता का केन्द्रीयकरण
मायावती की ये खासियत रही है कि वो सत्ता का केंद्र कभी भी खुद से अलग स्थानांतरित नहीं होने देती ,वो नहीं चाहती कि बसपा में सत्ता कई ध्रुवों में बट जाए ,यहाँ तक कि वो छोटे –बड़े निर्णय भी मंत्रिमंडल के बजाय अफसरों की सलाह पर लेती है। इसके अपने गुण –दोष हैं ,लेकिन इसका जो सबसे बड़ा दुष्परिणाम है वो यह है कि बसपा के रास्ते राजनीति करने वाला हर एक आदमी जानता है कि उसकी स्थिति हमेशा नंबर दो की रहेगी,नंबर एक वो कभी नहीं हो पायेगा । ये बात भी हर एक चुनावों के दौरान और उसके बाद भी बसपा की अपनी राजनीति और काम –काज के तरीकों पर असर डालती है ।
सर्वजन का नारा और दलितों से दूरी
मायावती के इस चौथे कार्यकाल ने राजनैतिक गठबंधनों के इस दौर में सामाजिक गठबंधन नाम की जिस नयी शब्द –संरचना को जन्म दिया ,वो बीच –बीच में चोटिल नजर आई । मायावती द्वारा जब उच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद मध्यान्ह भोजन में दलित विधवा रसोइयों के आरक्षण रोस्टर को खत्म करके विधवा,निराश्रित और तलाकशुदा महिला को प्राथमिकता दिए जाने का शासनादेश जारी कर दिया गया तो उसकी काफी आलोचना हुई |हालाँकि उस एक वक्त प्रदेश के कई हिस्सों में मध्यान्ह भोजन को लेकर गाँव –चट्टियों में हिंसा और कक्षाओं के बहिष्कार की ख़बरें आ रही थी । लेकिन सरकार का ये निर्णय प्रदेश के दलितों को अचम्भे में डाल देने वाला था ,उन्हें इस बात का कत्तई अंदाजा नहीं था कि उनका पसंदीदा मुख्यमंत्री इस कदर आत्मसमर्पण कर देगा । इस निर्णय के बाद ऐसा नहीं हुआ कि गाँवों में दलितों और गैर दलितों के बीच का वैमनस्य खत्म हो गया ,सच कहा जाए तो यही से सर्वजन की मीठी पौध कड़वी होनी शुरू हो गयी थी ।
पिछड़े वोटरों का दम
एक दूसरी बड़ी बात मुस्लिम और पिछड़े वोटरों के विश्वास से जुडी थी,मुस्लिमों ने परम्परागत ढंग से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को अपनी पसंद के रूप में जिन्दा रखा ,वहीँ पिछड़ी जातियों में यादव ,कुर्मी ,कोयरी,बनिया और जनजातियों इत्यादि जातियों के लिए सपा और भाजपा के प्रति प्रतिबद्धता ज्यों का त्यों बनी रही ,तमाम कोशिशों और सत्ता में भागीदारी देने के बावजूद ये जातियां और मुस्लिम समुदाय इस सर्वजन समुदाय का हिस्सा बनने से बिदकता रहा । जबकि वो मायावती ही थी जिनके कार्यकाल में आतंकवाद के नाम पर अल्पसंख्यकों की बेवजह गिरफ्तारी पर रोक लगायी जा सकी ,इतना ही नहीं पूरे प्रदेश में फर्जी इनकाउंटर भी पूरी तरह से खत्म हो गए,वरुण गाँधी पर मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक टिपण्णी करने की वजह से एनएसए भी लगाया गया गोकशी पर रोक लगायी गयी ,मुख्यमंत्री ने हाल के दिनों में गरीब सवर्णों को आरक्षण दिए जाने की भी वकालत की है ।
भाईचारा समितियों की अनदेखी
बसपा की भाईचारा समितियों ने मुस्लिमों ,पिछडों और सवर्णों को पार्टी से जोड़ने के लिए जी–तोड़ प्रयास किये थे लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं और स्वयं मायावती के सीधे तौर पर इसमें ज्यादा रूचि न लिए जाने से अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आये |मायावती सरकार की बड़ी उपलब्धियों में काशीराम शहरी गरीब आवास योजना ,अम्बेडकर ग्राम विकास योजना ,काशीराम शहरी समग्र विकास योजना आदि रही । प्रदेश में बीपीएल कार्ड धारकों के लिए बनी आवासीय योजना अपने आप में अनूठी योजना साबित हुई ,अपने सर पर छत के सपने संजोने से भी डरने वाले गरीबों –दलितों के लिए पक्के मकान भी थे ,बिजली भी थी ,पानी भी था । हालाँकि नोएडा और नेशनल हाइवे के इर्द गिर्द बनाये गयी आवासीय कालोनियों में आवास आवंटन के घोटालों के मामले भी सामने आये हैं। माया सरकार की इन उपलब्धियों के बीच एक आपत्ति बार –बार सामने आती है कि जेपी की ४० हजार करोड़ की गंगा एक्सप्रेस वे योजना के अलावा प्रदेश में कोई भी बड़ी योजना उनके इस कार्यकाल में शुरू नहीं हो पायी । ये योजना भी किसानों के प्रबल विरोध की वजह से अधर लटकी दिखाई देती है |सरकार के आदेश के बावजूद प्रदेश में रिलायंस के रिटेल स्टोर शुरू होते ही बंद हो गए ,प्रदेश में नए बिजलीघरों के लिए भी दो दर्जन से ज्यादा करार किये गए ,लेकिन उनमे से कुछ ही पूरे हो पाए ,हालाँकि इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश की बढती जा रही जनसँख्या और मांग एवं पूर्ति के बीच का भारी अंतर था ,फिर भी मायावती के कार्यकाल में प्रदेश को लगभग 600 मेगावाट अतिरिक्त बिजली मिलने लगी