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BRD Medical College में बच्चों की मौत के बाद आखिर पोस्टमार्टम क्यों नहीं!

locationवाराणसीPublished: Aug 13, 2017 03:21:00 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बनारस से उठी आवाज, बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ वीएन मिश्र ने कहा बगैर पोस्टमार्टम कैसे मालूम कैसे हुई मौत।
 

बीआरडी मेडिकल कॉलेज 30 बच्चों की मौत पर सवाल

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मृत बच्चे को लेकर जाते परिजन

वाराणसी. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 30 बच्चों की मौत हो गई। मौत पर गोरखपुर या पूर्वांचल ही नहीं पूरे देश में हंगामा मचा है। लेकिन हकीकत कोई जानने का प्रयास ही नहीं कर रहा। इस 21वीं सदी में जब मेडिकल साइंस अपने चरम पर है, जीते जी या मृत्यु के बाद इंसानी शरीर की हर जानकारी हासिल की जा सकती है। इसके लिए जीते जी एक्स-रे से लेकर एमआरआई तक की सुविधा है तो मृत्यु के बाद पोस्टमार्टम से लेकर बिसरा तक की जांच की व्यवस्था है। फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई मौत के बाद उन शवों का पोस्टमार्टम अब तक क्यों नहीं किया गया। क्या उन मृतकों के बिसरों को सुरक्षित रखा गया ताकि उसकी जांच हो सके। जानकार इसे लेकर अचरज में हैं कि बिना पोस्टमार्टम किसी भी मौत के बारे में कैसे कोई घोषणा की जा सकती है। यह निश्चित तौर पर इतने बड़े मामले को दफन करने जैसा ही है। बिना पोस्टमार्टम किसी ने ये कैसे जान लिया कि ये मौतें आक्सीजन की कमी से ही हुईं।
जानकारों का कहना है कि मेडिकल साइंस में हाल के दिनों में यह परंपरा शुरू हुई है कि किसी अस्पताल में कोई मौत हो तो शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जा रहा। इसके लिए जहां मृतक के तीमारदार और परिवारी जन दोषी हैं तो उससे कहीं ज्यादा दोषी अस्पताल प्रशासन है। हाल के दिनों में यानी जून से अगस्त के बीच पूर्वांचल के दो बड़े शहरों बनारस और गोरखपुर में ऐसे बड़े मामले सामने आए। दोनों ही जगह हुई मौत के बाद पोस्टमार्टम नहीं कराया गया। चाहे वह बीएचयू हो या अब बीआरडी मेडिकल कॉलेज। बीएचयू में ऑपरेशन के बाद हुई मौत के तुरंत बाद किसी परिजन ने पोस्टमार्टम के लिए दबाव नहीं बनाया। छोटी-छोटी बातों पर हंगामा करने वाले तीमारदार शवों को लेकर निकल गए। घटना के बाद जब मीडिया में खबरें आईं तब उन्हें होश आया, तब तक शवों म अंत्येष्ठि हो चुकी थी। बावजूद इसके किसी के कहने पर हो या देर आई समझ लोगों ने यह कहना शुरू किया कि मौत के बाद अस्पताल प्रशासन ने उन्हें शव के साथ भगा दिया। हालांकि बीएचयू के सरसुंदर लाल चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ. ओपी उपाध्याय कहते हैं उन्हें जैसे ही मौत की सूचना मिली थी तभी उन्होंने डॉक्टरों व अस्पताल के कर्मचारियों को पोस्टमार्टम के लिए कहा था। सच चाहे जो हो क्योंकि अभी पूरे प्रकरण की जांच जारी है। लेकिन यहां भी उन मौतों पर पर्दा पड़ा है। ठीक उसी तर्ज पर बीआरडी कॉलेज में भी 30 मासूम सहित 60-70 मौत के बाद किसी का पोस्टमार्टम नहीं हुआ। अब जानकारों का सवाल है कि आखिर पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया।
इस मसले पर जब पत्रिका ने बीएचयू के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विजय नाथ मिश्र से बात की तो उनका भी कहना था कि बिना पोस्टमार्टम के मैं क्या कोई भी कैसे कह सकता है कि फलां की मौत कैसे हुई। उन्होंने कहा मैं एक चिकित्सक हूं और विज्ञान ने जब सारी तकनीक उपलब्ध करा दी है तो मैं उसके उपयोग की ही सलाह दूंगा। उन्होंने बताया कि मैने सीएम तक ट्वीट कर इस संबंध में अपनी राय दी है। उनसे जब यह पूछा गया कि पिछले दो दिन से राज्य के मंत्री हों या केंद्रीय मंत्री सभी एक ही राग अलाप रहे हैं कि किसी की मौत ऑक्सीजन से नहीं हुई। ऐसे में डॉ मिश्र ने कहा कि मुझे राजनीति से सरोकार नहीं, बतौर डॉक्टर इतना ही कह सकता हूं कि बिना चीर-फाड़ के किसी मौत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। पहले हर शव का पोस्टमार्टम कराया जाए। पोस्टमार्टम के बाद ही हकीकत सामने आएगी। इतनी बड़ी तादाद में हुई मौत से पर्दा उठना ही चाहिए। उन्होंने बताया कि गोरखपुर से लेकर महराजगंज, बलिया और आजमगढ़, पश्चिमी बिहार व नेपाल तक में इनसेफलाइटिस का प्रकोप है। लगभग 50 साल से इन इलाकों के मासूम हर साल बरसात के मौसम में बेमौत मारे जाते रहे। लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। सबसे पहले 1990 में लखनऊ के विशेषज्ञ प्रो. यूके मिश्र ने इस पर शोध कर देश ही नहीं दुनिया को इनसेफलाइटिस के बारे में जानकारी दी। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ मिश्र ने कहा कि मैने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ट्वीट कर प्रो. मिश्र के नेतृत्व में बीआरडी प्रकरण की जांच की मांग की है। डॉ मिश्र ने बताया कि 20 साल पहले लखनऊ के एसजीपीजीआइ में ⁠⁠⁠इनसेफालिटिस पर रीसर्च हुआ तो विश्व में पहली बार इसके बारे में लोगों को जानकारी हुई।⁠⁠ तब ही प्रो. यू के मिश्रा मिश्र ने अपने रिपोर्ट में कहा था कि, ⁠⁠⁠इनसेफालिटिस सेंटर का गठन होना चाहिए। लेकिन वह आज तक वास्तविक रूप में नहीं आ पाया।⁠
प्रो. मिश्र ने बताया कि ⁠⁠⁠इनसेफालिटिस में दिमागी सूजन से मौत होती है। इसमें ऑक्सिजन की कमी जैसी कोई भूमिका है ही नहीं। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का हिस्सा प्रति वर्ष दिमाग़ी बुखार या इनसेफालिटिस, के क़हर से प्रभावित होता है। सबसे ज़्यादा क़हर, जापानी इनसेफालिटिस का होता है। इसमें बुखार के बाद, दिमाग़ में सूजन और बेहोशी तथा मिर्गी का झटका आने लगता है। बुखार खत्म भी हो जाए तो भी ऐसे मरीज़ों को अगले चार से छह महीने तक हाथ पैर में अकड़न रहती हैं। बाद में धीरे धीरे मरीज़ ठीक हो जाता है।

जापानी इनसेफालिटिस के मरीज़ों में मौत के कारण

1. शुरुआत के 48 घण्टे में, जापानी इनसेफालिटिस के मरीज़ों को दिमाग़ में सूजन से मौत होती है।

2. पहले हफ़्ते से चौथे महीने के बीच मौत का कारण फेफड़े में सूजन होता है।

3-अगर ऐसे मरीज़ों का पहले 48 घंटे में दिमाग़ी सूजन को ठीक कर लिया जाए तो उन्हें मौत से बचाया जा सकता है।

4-ऐसे मरीज़ों में बहुत आक्सिजन की ज़रूरत नही, बल्कि, दिमाग़ी सूजन को कम करने की दवाई की ज़रूरत है।

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