पंचदेव मंदिर में हैं पांच देवी देवता और क्षेत्रीय देव दैत्राबीर बाब का है विग्रहविशेषतः शनि देव के विग्रह के पूजन को उमड़ती है भक्तों की भीड़हर शनिवार को लगता है श्रद्धालुओं का रेला
शनिदेव
वाराणसी. धर्म नगरी काशी में यूं तो कहा गया है कि कण-कण में शंकर विद्यमान हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि अन्य देवी-देवताओं के मंदिर न हों। हर चार कदम पर एक मंदिर जरूर मिल जाएगा। वैसे भी काशी जो भोले नाथ की नगरी के रूप में विख्यात है वहां आदि शक्ति, प्रथमेश श्री गणेश, भगवान शंकर के अवतार पवनसुत हनुमान के मंदिरों की बहार है तो न्याय के देवता शनि के मंदिर भी हैं, जहां हर शनिवार को भक्तों का सैलाब उमड़ता है। ऐसे ही एक मंदिर है कैंट रेलवे स्टेशन के समीप पंचदेव मंदिर, यहां पांच प्रमुख देवी देवता के विग्रह हैं इनमें शनि देव को प्रमुखता के साध मध्य स्थान दिया गया है।
यह पंच देव मंदिर तकरीबन चार दशक पुराना है। लेकिन इसकी ख्याति दूर-दूर तक है। हर शनिवार को यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। श्रद्धावनत हो कर जो भी भक्त यहां आता है उसके मन की मुराद जरूर पूरी होती है।
कैंट स्टेशन और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के निकट होने के कारण यहां आम श्रद्धालुओं के अलावा देसी-विदेशी पर्यटक तो आते ही हैं, विद्यार्थियों की भी भारी भीड़ उमड़ती है। परीक्षा के दौरान तो यहां छात्र-छात्राओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। अगर यह कहा जाए कि यह काशी के प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया है तो अतिशयोक्ति न होगी।
मंदिर के पुजारी प्रदीप कुमार उपाध्याय बताते हैं कि यहां पहले स्थानीय देव दैत्राबीर बाबा का मंदिर था। उस मंदिर को विशाल स्वरूप देने की इच्छा हुई पिता जी को और उन्होंने धीरे-धीरे मंदिर निर्माण शुरू कराया और इसे पंचदेव मंदिर के रूप में स्थापित किया। यहां बहुतेरे दीन-दुखिया भी आते हैं, लेकिन जो भी भक्त पूरी तरह श्रद्धावनत हो कर आता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। बताया कि शारदीय नवरात्र में मंदिर का वार्षिक श्रृंगार होता है, माता के भजन कीर्तन के अलावा माता का जागरण और भंडारा होता है। वैसे तो हर दिन भगवा का है लेकिन हर शनिवार, मंगलवार को विशेष रूप से आरती व पूजन होता है।