साक्षात श्री राम, भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न के मिलन के इस दृश्य को लाखों श्रद्धालुओं ने नयनों में बसा लिया सदा के लिए।
ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप का दृश्य
डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. धीरे-धीरे भगवान भास्कर पश्चिमांचल की ओर अग्रसर थे। शाम ढल रही थी। लगभग चार बजे होंगे कि तभी नाटी इमली के भरत मिलाप लीला क्षेत्र के पश्चमि तरफ से बैंड बाजों की धुन के बीच हर-हर महादेव, जय श्री राम का उद्घोष सुनाई देता है। देखते ही देखते पल भर में भगवान श्री राम, माता जानकी, अनुज लक्ष्मण, सुग्रींव, हनुमान सहित समूचा रामदरबार पुष्पक विमान में सवार दिखाई देता है। पुष्पक विमान नाटी इमली के लीला क्षेत्र में उतरता है। पूरा मैदान श्रद्धालुओं से खचाखच भरा है। आसपास के मकान और अन्य भवनों के बारजों और छतों पर केवल नरमुंड ही नरमुंड दिखाई दे रहा है। जहां तक नजर पहुंचत है बस श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे हैं। भगवान श्री राम के लीला स्थल पर पहुंचते ही यदुवंशियों द्वारा डमरू बजा कर उनका स्वागत किया जाता है। हनुमान अयोध्या (बड़ा गणेश) जा कर पर्णकुटी में रह रहे राजा भरत व शत्रुघ्न को प्रभु श्रीराम के आगमन की सूचना देते हैं। सूचना मिलनी थी कि भरत व शत्रुघ्न नंगे पांव दौड़ पड़ते हैं अग्रज राम से मिलने। इसी बीच पूर्व काशिराज डॉ विभूति नारायण सिंह के पुत्र कुंवर अनंत नारायण की राजकीय सवारी आती है। फिर श्रद्धालु उनका हर-हर महादेव से पारंपरिक ढंग से स्वागत करते हैं, कुवर पिता की तरह ही जनता का अभिवादन दोनों हाथ जोड़ कर स्वीकार करते हैं। फिर प्रभु श्री राम दरबार का दरश्न कर परंपरागत रूप से गिन्नी का तोहफा देते हैं, मेला क्षेत्र की परिक्रमा करते हैं। तभी भरत व शत्रुघ्न पहुंचते हैं। मंच पर दोनों भाई हौले-हौले चढ़ते हैं। प्रभु को दूर से प्रणाम करते हैं और साष्टांग दंडवत करते हैं। उधर 14 साल से भाइयों से बिछुड़े भगवान श्री राम और लक्ष्मण दौडते हुए मंच पर आते हैं और दोनों भाइयों को उठा कर गले से लिपटा लेते हैं। यह वह क्षण है जब वक्त थम सा जाता है। चारों दिशाओँ से अमृत वर्षा होती है। नेत्र सजल हो उठते हैं। क्षण भर को हर शख्स भावुक हो उठता है। महिला श्रद्धालुओं के नेत्र सजल हो उठते हैं। इस बीच श्री राम पहले भरत और लक्ष्मण, शत्रुघ्न से गले मिलते हैं, फिर श्री राम और शत्रुघ्न व लक्ष्मण व भरत का मिलन होता है। गोस्वामी तुलसी दास कृत राम चरित मानस की चौपाइयों, दोहों और सोरठों के गान होते हैं। व्यास मंडली के इस सुमधुर गान से पूरा वातावरण राम मय हो जाता है। फिर मिलन के बाद भगवन् श्री राम, राजा भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न व माता जानकी सहित पूरी वानरी सेना को यदुवंशी परंपरागत रूप से कांधे पर उठा कर अयोध्या (बड़ा गणेश) के लिए प्रस्थान करते हैं। यही है वह क्षण भर की लीला जिसे देखने के लिए, कम से कम साल भर यानी अगले साल तक के नयनों में बसा लेने के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालु करीब साढ़े तीन सौ साल से यहां आ रहे हैं। अद्भुत नजारा होता है। इस अनोखे पल के लिए लोग दोपहर से ही टकटकी लगाए बैठे रहते हैं।
आश्विन शुक्ल एकादशी तिथि, रविवार का दिन, नाटी इमली का वह लीला क्षेत्र, चारों तरफ श्रद्धालुओं की अपार भीड़। दोपहर से ही टकटकी लगाए है। इंतजार है तो प्रभु श्रीराम समेत चारों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के मिलन का अद्भुत क्षण का। लेकिन जब वह वक्त आता है तो लोगों की आंखें छलछला उठती हैं। पल भर को मानों वक्त थम सा गया हो। लोगों अपलक बीच मंच पर इस मिलन के दृश्य को टकटकी लगाए निहारते रहते हैं और आंखों से आंसुओं की धारा अविरल बह रही होती है। ये है काशी के लक्खा मेले में शुमार विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के भरत मिलाप का दृश्य। श्रीचित्रकूट रामलीला कमेटी काशी द्वारा आयोजित भरत मिलाप की अद्भुत झांकी देखने के लिए नाटी इमली का भरत मिलाप मैदान, आसपास के घर पूरी तरह दर्शनार्थियों से पटे रहे।
परंपरागत रूप से दोपहर बाद 3.45 बजे प्रभु राम, लक्ष्मण व सीता अपने सेना प्रमुख के साथ पुष्पक विमान पर सवार होकर धूपचंडी स्थित रामलीला मैदान से भरत मिलाप स्थल नाटी इमली के लिए प्रस्थान किए। शाम चार बजे पुष्पक विमान लीला स्थल पर पहुंचा। उधर पवनपुत्र हनुमान से भगवान राम, लक्ष्मण व माता सीता के वापस आने की सूचना पर भरत व शत्रुघ्न अयोध्या भवन से (बड़ा गणेश) चित्रकूट सीमा (नाटी इमली मैदान) की ओर नंगे पांव ही दौड़ पड़े। वे बड़ा गणेश से नवापुरा, डीएवी कालेज, ईश्वरगंगी होते हुए लीला स्थल पर पहुंचे और बड़े भैया श्रीम को साष्टांग दंडवत किया (यानी दोनों हाथ जोड़ कर लीला स्थल पर स्थित संगमरमरी मंच पर बिछे कालीन पर लेट गए)।
इस बीच लोहटिया से ही हाथी पर सवार होकर पूर्व काशिराज के पुत्र कुंवर अनंत नारायण सिंह व तीन अन्य हाथियों पर उनके पुत्र समेत परिवार के अन्य सदस्य सवार होकर नाटी इमली की ओर चले। रास्ते भर लोग हर-हर महादेव का उद्घोष व हाथ जोड़कर कुंवर का अभिनंदन करते रहे। लीला स्थल पर पहुंचे महाराज बनारस ने सबसे पहले भगवान राम के पुष्पक विमान समेत पूरे मैदान की परिक्रमा की। परंपरागत रूप से रथ पर बैठे लीला के व्यवस्थापक को गिन्नी (स्वर्ण मुद्रा) प्रदान की।
कुंवर के लीला स्थल पर पहुंचने व परिक्रमा के पश्चात ठीक 4.40 बजे पुष्पक विमान पर विराजमान भगवान राम व अनुज लक्ष्मण भी नंगे पांव दौड़ते हुए मंच पर पहुंचे और शत्रुघ्न को उठा कर गले से लिपटा लिया। ये वो क्षण था जब लीला स्थल पर मौजूद श्रद्धालुओँ के नेत्र सजल हो उठे, कुछ की आंखें छलछला गईं तो कुछ अपने आंसुओं को रोक ही नहीं पा रहे थे। पल भर को लगा मानों सचमुच द्वापर का वह क्षण लौट आया हो जब 14 वर्ष के कठोर वनवास के बाद भगवान श्रीराम देवी सीता और अनुज लक्ष्मण आकर दोनों भाइयों से अलग-अलग गले मिलते हैं। भाइयों के इस मिलन के अद्भुत क्षण को श्रद्धालुओं ने अपनी पलकों में सदा के लिए बिठा लिया। इस अत्यंत भावुक व अविष्मरणीय पल को बहुतों ने अपने मोबाइल के कैमरे में भी कैद किया। यह वह पल था जब फ्रैक्शन ऑफ सेकेंड के लिए लीला स्थल पर पूर्ण शांति हो जाती है। लेकिन दूसरे ही क्षण लीला क्षेत्र भगवान श्रीराम, राजा भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जयकारों से गूंज उठता है। चारो भाई चारों दिशाओं में घूम कर दर्शन देते हैं। मान्यता है कि इस मिलन के क्षण देव लोक से देवता भी लीला स्थल पर पहुंचते हैं और चारों भाइयों पर अदृश्य रूप से पुष्प व आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। इसके पश्चात चारों भाइयों को पुष्पक विमान पर ले जाया गया, जहां भरत व शत्रुघ्न ने माता सीता को प्रणाम किया फिर पूरे राम दरबार की आरती उतारी गई तत्पश्चात परंपरागत रूप से खास यदुवंशियों ने पुष्पक विमान को कांधे पर उठाया और अयोध्या के लिए चल पड़े। ये पुष्पक विमान जिधर से गुजरा लोग छतों से तुलसी दल व पुष्प व माला अर्पित करते रहे। नाटी इमली से बड़ा गणेश तक का रास्ता फूल-माला से पट गया था। अयोध्या (बड़ा गणेश ) पहुंचने पर पुनः रामदरबार की आरती उतारी गई।
पुष्पक विमान के साथ ही गजराज पर सवार कुंवर अनंत नारायण की शाही सवारी व चल रही थी। कुवर लीला स्थल से नागरी प्रचारिणी सभा पहुंचे जहां कुछ देर विश्राम और पिता की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूजन-अर्चन करते हैं। फिर रामनगर के लिए रवाना हो जाते हैं। इस पल भर की लीला के लिए बनारस ही नहीं समूचा पूर्वांचल और देश विदेश से भक्तों का सैलाब जमा हुआ था। लीला स्थल पर तिल रखने को जगह नहीं थी। चारों तरफ मुंड ही मुंड नजर आ रहे थे। इसमें क्या पुरुष क्या महिलाएं, बाल वृंद सभी मौजूद रहे। मेला में हर वर्ग के लिए कुछ न कुछ खास था। कोई राम-सीता का मुखौटा खऱीद रहा था को कोई सारंगी, तो कोई तीर धनुष, गदा। लोगों ने इस मेले की खास मिठाई रेवड़ी संग चूड़ा भी खरीदा तो गोलगप्पे का स्वाद भी चखा।