विश्वनाथ गली में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर है त्रिजटा नामक राक्षसी का मंदिर है। यहां देश के कोने-कोने से लोग दर्शन के लिए आते हैं। त्रिजटा को मूली और बैगन का भोग लगाया जाता है। इनके बारे में मान्यता यह है कि माता सीता से त्रिजटा को वरदान मिला है। उसके अनुसार कार्तिक पुर्णिमा के अगले दिन उसकी पूजा की जाएगी। बताया जाता है कि जब माता सीता को रावण हरण कर ले गया और अशोक वाटिका में उनके रहने की व्यवस्था की तब सीता माता की देखभाल त्रिजटा नामक एक राक्षसी ही किया करती थी। राक्षस जब माता जानकी को परेशान करते थे या उनपर कोई संकट की घडी आती थी तो त्रिजटा बराबर उस संकट से माता को बचाया करती थी।
राम-रावण युद्ध में जब प्रभु श्री राम की सेना रावण को पराजित कर अयोध्या लौट रही थी तब राक्षसी त्रिजटा ने सीता से अनुरोध किया की उसको भी साथ लेकर चलें। लेकिन सीता ने कहा, `ये संभव नहीं है, लेकिन मैं तुमको वरदान देती हूं कि तुम शिव की नगरी काशी चली जाओ। वहां तुमको मुक्ति मिल जाएगी। तुम वहां साल में एक दिन देवी स्वरुप में पूजी जाओगी।` काशी खंड में वर्णित है कि उसके बाद त्रिजटा बाबा काशी विश्वनाथ के दरबार चली आई और उनके समीप ही विराजी। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के बाद अगहन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को त्रिजटा का दर्शन-पूजन किया जाने लगा।