इस नागकूप के महंत आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि यह गुरु पतंजलि की तपोस्थली है। मान्यता है कि नाग स्वरूप महर्षि पाणिनी ने यहीं पतंजलि को शिक्षा दी थी। पाणिनी प्रकांड व्याकरणाचार्य रहे। इसीलिए पाणिनी को बड़े गुरु और पतंजलि को छोटे गुरु की मान्यता प्राप्त है। आज के दिन यानी नागपंचमी को इन दोनों की पूजा की जाती है।
आचार्य पांडेय ने बताया कि इस प्राचीन कुंड में है नागेश्वर महादेव का शिवलिंग। नागदेवता को तुलसी की माला प्रिय है, ऐसे में इस कूप में तुलसी की माला चढाई जाती है। दूध और लावा नागदेवता के भोज्य पदार्थ के रूप में चढाया जाता है। उन्होंने बताया कि आज के दिन इस कुंड में स्नान करने का भी प्रावधान है। कुंड में स्नान करने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही भक्त जन कुंड का जल ले कर घर जाते हैं। हर कमरे में जल का छिड़काव किया जाता है। मान्यता यह भी है कि लगातार 21 दिन तक इस कुंड के जल से स्नान करने, आचमन करने से काल सर्प दोष से तो मुक्ति मिलती ही है साथ ही हर तरह की भय-बाधा से भी मुक्ति मिलती है।
ऐसे में इस नाग कूप में भोर से ही श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो गया। जैसे-जैसे दिन चढता गया भीड़ बढती गई। नवापुरा, जैतपुरा मोहल्ले में स्थित इस नागकूप के कुंड में स्नान, पूजन को श्रद्धालुओं जुटते रहे। आस पास के इलाकों में तुलसी की माला, बिल्व पत्र, दूध और लावा की दुकानें सजी थीं। श्रद्धालुओं ने कहा कि यहां हम हर साल आते हैं, नाग देवता को पूजने के लिए, उनका आशीर्वाद हासिल करने के लिए।
नागकूप के अलावा घर-घर में नाग की तस्वीर दरवाजों पर दीवारों पर लगाई गईँ। नाग देव का विधिवत पूजन-अर्चन हुआ। महिलाओं ने पूजन स्थल को साफ सुथरा कर नाग देव की तस्वीर चिपकाई और दूध लावा चढा कर पूजन-अर्चन किया।