scriptचांदी की पालकी में बैठकर निकले श्रीजी, क्षमावाणी पर्व मना | Celebrated the festival of Forgiveness | Patrika News

चांदी की पालकी में बैठकर निकले श्रीजी, क्षमावाणी पर्व मना

locationविदिशाPublished: Sep 21, 2021 10:04:56 pm

Submitted by:

govind saxena

छोटे मंदिर से निकला श्रीजी का विमान

चांदी की पालकी में बैठकर निकले श्रीजी, क्षमावाणी पर्व मना

चांदी की पालकी में बैठकर निकले श्रीजी, क्षमावाणी पर्व मना

विदिशा. पर्यूषण पर्व के उपरांत जैन समाज ने मंगलवार को छोटे दिगम्बर जैन मंदिर से श्रीजी की पालकी निकाली और महावीर के संदेशों की गूंज तथा गाजे बाजे के साथ शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए चल समारोह निकाला। सभी ने एक दूसरे से क्षमा याचना कर जाने अंजाने में हुई गलतियों की माफी मांगी। वहीं क्षमावाणी पर्व पर मुनि सौम्यसागर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि क्षमावाणी पर्व पर सोशल मीडिया पर क्षमायाचना लिखकर ही इतिश्री मान ली जाती है, इससे कुछ नहीं होता, क्षमावाणी पर्व अपने ह्दय को पवित्र बनाने और मन की सरलता के लिए आते हैं।

दोपहर करीब 1 बजे छोटे दिगंबर जैन मंदिर से शुरू हुआ क्षमावाणी पर्व चल समारोह दिव्य घोष और भक्ति उल्लास के साथ किलेअंदर, लोहाबाजार, बांसकुली, नीमताल होते हुए शीतलधाम पहुंचा। चल समारोह में श्रीजी चांदी की पालकी में विराजे थे, इस पालकी को धर्मावलंबी अपने कंधों पर रखकर चल रहे थे। जगह-जगह श्रद्धालुओं ने श्रीजी की आरती उतारी। विद्यासागर नवयुवक मंडल द्वारा किए जाने वाले दिव्य घोष से चल समारोह आकर्षक बन गया था। शीतलधाम में चल समारोह के पहुंचने के बाद मुनिसंघ के सानिध्य में क्षमावाणी पर्व मनाया गया और सभी ने एक दूसरे से क्षमा याचना की।
इस मौके पर मुनि सौम्य सागर ने कहा कि भारतीय संस्कृति कहती है कि जब किसी पर क्रोध का अवसर आए तो उस पर क्रोध मत करना, लेकिन श्रमण संस्कृति यह कहती है कि जिसके प्रति क्रोध का अवसर आ रहा है तो उसके प्रति क्षमा भाव धारण कर लेना। यदि आपके मन में किसी के लिए क्रोध उत्पन्न हुआ है तो उस क्रोध को क्षमारूपी जल से समाप्त कर दो। धर्मसभा में मुनि ने सभी को अपना आशीर्वाद दिया। इस मौक्े पर दस मुनियों का संघ मंच पर मौजूद थे।
क्रोध क्यों आता है…
क्रोध क्यों आता है? इसका जवाब देते हुए मुनि ने कहा कि यदि आपके मन जैसा काम नहीं हुआ तो तुरंत ही मान उपस्थित हो जाता है। और मान की पूर्ति न होने पर क्रोध उत्पन्न हो जाता है। और जब क्रोध से बात नहीं बनती तो व्यक्ति उसके शमन के लिए मायाचार करता है और जब मायाचार सफल हो जाता है तो व्यक्ति के अंदर तुरंत लोभ आ जाता है। यानी चारों कषाय एक साथ आ जाते हैं।

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