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कैंपस में आंदोलन को हवा देने के मामले में एसएटीआइ के चार प्राध्यापकों को क्लीनचिट

locationविदिशाPublished: Jul 09, 2020 09:35:55 pm

Submitted by:

govind saxena

चार साल पहले हुए आंदोलन में निशाने पर लिए गए थे ये चार प्राध्यापक

SATI VIDISHA

कैंपस में आंदोलन को हवा देने के मामले में एसएटीआइ के चार प्राध्यापकों को क्लीनचिट,कैंपस में आंदोलन को हवा देने के मामले में एसएटीआइ के चार प्राध्यापकों को क्लीनचिट

विदिशा. चार वर्ष पहले एसएटीआई में हुए आंदोलन को हवा देने और उसमें अनुशासनहीनता करने के आरोप में जिन चार वरिष्ठ प्राध्यापकों के खिलाफ डायरेक्टर की अनुशंसा पर संचालक तकनीकी शिक्षा ने विभागीय जांच शुरू कराई थी, जांच अधिकारी ने जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट में चारों प्राध्यापकों को क्लीनचिट दे दी है और इसे निरस्त करने की अनुशंसा की है। हालांकि कॉलेज की तरफ से अभी इन प्राध्यापकों को अपने दोषमुक्ति की सूचना नहीं दी गई है।
जिन्हें आरोपों के समर्थन में खड़ा किया वे भी सच बोल गए…
जांचकर्ता ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आरोप पत्र प्रस्तुतकर्ता अधिकारी ने गवाह के रूप में रजिस्ट्रार प्रवीण करकरे, दीपक शर्मा और डॉ कनक सक्सेना को प्रस्तुत किया था, लेकिन गवाही में करकरे ने कहा कि पीएफ राशि सीलिंग के आदेश के विरोध में हुए आंदोलन और हड़ताल में सभी कर्मचारियों और शिक्षकों ने सामूहिक रूप से भाग लिया था। वे स्वयं भी हड़ताल में शामिल थे, हड़ताल का आव्हान सतिता और कर्मचारी कल्याण परिषद का निर्णय था। दीपक शर्मा ने कहा कि सभी ने हड़ताल में हिस्सा लिया था, आरोपित शिक्षकों की आंदोलन भागीदारी सभी कर्मचारियों की ही तरह थी, इन्होंने न तो किसी कर्मचारी और शिक्षक को उकसाया और न ही दबाव बनाया था। डॉ कनक सक्सेना ने बयान दिया कि पीएफ कटौती संबंधी आदेश के विरोध में सभी कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से हड़ताल की थी, इसकी सूचना भी संचालक को दी गई थी।
यह है जांच का निष्कष…र्
डॉ एसएस ठाकुर जांच अधिकारी ने जांच का निष्कर्ष निकालते हुए लिखा है कि सभी आरोपी शिक्षकों पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं होती है, अत: डॉ आलोक जैन, डॉ राजेन्द्र दुबे, प्रो. संदीप जैन सर्राफ और प्रो. वायके जैन के विरुद्ध संस्थित विभागीय जांच निराधार और तथ्यहीन पाई गई है एवं इसे समाप्त करने की अन्रुशंसा की जाती है। जांच अधिकारी ने अपनी यही रिपोर्ट और अनुशंसा संचालक तकनीकी शिक्षा को भेजी है।
इस तरह चला था पूरा घटनाक्रम….
एसएटीआइ में 20-30 जुलाई 2016 के बीच पीएफ में कटौती को लेकर शैक्षणिक और अशैक्षणिक स्टॉफ ने आंदोलन शुरू किया था। 1 से 4 अगस्त तक हड़ताल की थी। इसी बीच 3 अगस्त को प्रभारी संचालक डॉ जेएस चौहान को हटाकर सोसायटी के तत्कालीन सचिव प्रतापभानु शर्मा ने प्रो. आलोक जैन को संचालक बना दिया था। लेकिन अगले ही दिन 4 अगस्त को प्रबंधन ने संचालक कक्ष का ताला तुड़वाकर डॉ चौहान को फिर संचालक का प्रभार सौंप दिया। इस घटना के बीच सोसायटी के चेयरमैन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सचिव प्रतापभानु शर्मा को भी सोसायटी से दूर कर दिया। 4 अगस्त को ही पीएफ में कटौती संबंधी आदेश को बीओजी द्वारा वापस लिए जाने की मौखिक सूचना स्टॉफ को दी गई, इस पर 4 अगस्त को हड़ताल खत्म कर दी गई। इसके बाद 16 अगस्त को पीएफ में कटौती के आदेश का विरोध करने के आरोप में 4 प्राध्यापकों डॉ आलोक जैन, डॉ राजेन्द्र दुबे, डॉ संदीप जैन और डॉ वायके जैन को नोटिस दिया गया। नोटिस का जवाब न मिलने पर डायरेक्टर ने 5 जुलाई 2017 को विभागीय जांच शुरू करने के लिए प्रक्रिया शुरू की और एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को जांच अधिकारी बनाया गया। लेकिन चारों प्राध्यापकों ने जांच अधिकारी की नियुक्ति पर न्यायालय से स्थगन ले लिया तो जांच अधिकारी ने 29 जून 2018 को जांच से खुद को मुक्त कर इस्तीफा दे दिया। इसके बाद संचालक डॉ चौहान ने चारों प्राध्यापकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए संचालक तकनीकी शिक्षा को लिखा और संचालक ने डॉ एसएस ठाकुर, प्राचार्य शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय जबलपुर को जांच अधिकारी नियुक्त किया। जांच अधिकारी डॉ ठाकुर ने जिन आधारों पर जांच शुरू कराई गई उस आधार को ही गलत बताया है। फिर भी जांच अधिकारी ने हर बिन्दु पर जांच की रिपोर्ट देते हुए चारों को क्लीनचिट दी है।
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