गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों से गांव में भुजरिया उत्सव की यही परंपरा है। लेकिन इस बार ये परंपरा भी पूरी होना संभव नहीं दिख रहा है। इस बार हर त्यौहार सांकेतिक रूप से मनाने के निर्देश और तैयारियों के कारण इस परंपरा का पूरा होने में भी असमंजस है। गौरतलब है कि प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इस पर्व में आस पास के क्षेत्र के साथ साथ दूर दराज से आए लोगों की भारी भीड़ मौजूद रहती है। जिसमें स्थानीय लोगों के बीच बंदूक से निशानेबाजी की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस दौरान पेड़ पर नारियल को निशान के रूप में बांधकर उसमें निशाना लगाया जाता है। नारियल में निशाना लगने के बाद ही भुजरियों को नदी में तोडऩे के लिए ले जाया जाता है। लेकिन महामारी की गंभीर स्थिति में गांव के लोगो ने आपसी सहमति से इस त्यौहार को सांकेतिक रूप में मनाने का फैसला लिया है। जिसमें नारियल में निशान लगने की बाध्यता नहीं रहेगी और भुजरियों को सीधे नदी में तोडऩे के लिए ले जाया जाएगा।