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वीरान हुआ सिरोंज का दरीबालान, सरकार की नजरें इनायत हों तो मिले जीवनदान

locationविदिशाPublished: Nov 25, 2021 09:35:05 pm

Submitted by:

govind saxena

सिरोंज के बुनकरों और रंगरेजों के हालात बदतर, मजदूरी को मजबूर

वीरान हुआ सिरोंज का दरीबालान, सरकार की नजरें इनायत हों तो मिले जीवनदान

वीरान हुआ सिरोंज का दरीबालान, सरकार की नजरें इनायत हों तो मिले जीवनदान

विदिशा. इतिहास में भी दर्ज है कि सिरोंज की मलमल और छींट के साथ ही बुनाई का काम भी देश भर में मशहूर था। पिछले करीब 25 साल तक यहां दरीबालान नाम का एक पूरा मोहल्ला ऐसी ही हाथ की कारीगरी, बुनकरों, रंगरेजों और सूत की कताई और इसके व्यवसाय के लिए मशहूर था। यहां की दरियों की गुणवत्ता और जाजम की खासियत के कारण ये विदेशो में भी पसंद की जाती थीं। लेकिन बाद के समय में सरकार की बेरुखी के कारण सिरोंज का यह दरीबालान वीरान हो गया। यहां के बुनकर अपना पेट भरने के लिए मजदूरी पर उतर आए। अपने काम की कीमत न होते देख युवाओं ने इसमें कोई रुचि नहीं ली। अब हालात यह हैं कि पूरे सिरोंज में जहां 200 से ज्यादा बुनकर, रंगरेज और सूत कताई करने वाले परिवार थे, वहां अब मात्र एक-दो परिवारों में इसकी रस्म निभाई जा रही है। यह हाथकरघा उद्योग खत्म होने को है। ऐसे में यदि सरकार की नजरें इनायत हों तो सिरोंज की इस कला और पुराने उद्योग को फिर जीवनदान मिल सकता है। यहां के दरीबालान में फिर रौनक आ सकती है।

दरीबालान के अब्दुल रज्जाक खान बताते हैं कि अब यहां केवल हमारा ही परिवार दरी बनाने का काम करता है। पहले यहां करीब 200 बुनकर रात दिन काम कर जगह-जगह माल की सप्लाई देते थे। मांग इतनी थी कि पूर्ति करना मुश्किल होता था। लेकिन सरकार की नीतियों के चलते रूपमति हैंडलूम्स में माल लेना बंद कर दिया तो हमारे सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। खुले बाजार में हाथ के काम की कद्र तो है लेकिन यह माल महंगा पडऩे से खरीदार नहीं मिलते। काम को दाम नहीं मिलते तो बुनकरों का घर चलना मुश्किल हो गया। नतीजा यह हुआ कि दरीबालान सिर्फ नाम रह गया, यहां दरी-जाजम, चादर बनाने का काम लगभग खत्म हो गया। वे कहते हैं कि अब हमारे बाद इस घर में भी ये काम नहीं होगा। युवा वर्ग पैसा न मिलने से मजदूरी, हम्माली और ठेले चलाने को मजबूर हो गया है।
यह है सरकार से अपेक्षा
बुनकर कहते हैं कि सरकार बड़ेे उद्योगों को स्थापित करने के लिए खूब बड़ी बड़ी बातें कर रही है। लेकिन ऐसे खत्म होते उद्योगों में नई जान फूंकने की कोई बात नहीं कर रहा। अब भी वक्त है कि हमें सस्ता कच्चा माल उपलब्ध कराया जाए और सबसे महत्वपूर्ण हमारे माल की अच्छी मार्केंटिंग के प्रबंध हों तो यह उद्योग फिर जीवित हो सकता है और अपनी पुरानी ख्याति के अनुरूप सिरोंज में दरी उद्योग स्थापित हो सकता है। वरना खत्म तो लगभग हो ही चुका है।
पहले घरों में सूत कातते और रंगते थे
बुनकर परिवार के ही अताउरर्हमान खान कहते हैं कि अब घर में केवल दो बुजुर्ग पिता और चाचा ही इस काम को करते हैं। पहले दरीबालान के घर-घर में सूत कताई और रंगाई का काम खूब होता था। लेकिन अब दरी बनाना ही बंद है तो सारे हाथ बेकार हो गए हैं। अब मजदूरी से घर-परिवार चलाने की कोशिश करते हैं। जब दाम ही नहीं मिलते तो काम कैसे और क्यों करें। जिस काम से पेट ही नहीं पाल पाएं उस काम का फायदा क्या।
्रईकोफ्रेंडली और मौसम अनुकूल दरियां
सिरोंज के दरीबालान की दरियां विशुद्ध सूती होने के कारण ईको फे्रंडली होती हैं। इनकी खासियत ये भी हैं कि ये सर्दियों में गर्माती हैं तो गर्मियों में ठंडक देती हैं। इन दरियों और जाजम में किसी भी प्रकार के प्लास्टिक धागे का इस्तेमाल नहीं होता। इन्हें आसानी से धोया जा सकता है और निरंतर उपयोग के बाद भी ये कम से कम 30 साल तक अच्छी बनी रहती हैं।
प्रदर्शनियों में सरकार मौका दे
जरूरी है कि हरकरघा तथा हस्तशिल्प से जुड़े सामानों और वस्त्रों की प्रदर्शनी के समय शासन स्तर पर सिरोंज के इन बुनकरों को मौका दिया जाए और खासकर यहां की दरी-जाजम और कपड़ों की नुमाइश लगाकर उनकी खास क्वालिटी को प्रचारित-प्रसारित किया जाए, जिससे इस उद्योग को फिर पहचान मिल सके।
पहले थे 100 लूम अब बचे मात्र 10
बुनकर अब्दुल रज्जाक बताते हैं कि पहले दरी बालान में 100 से ज्यादा लूम थे, जिन पर दो सौ लोग काम करते थे। लूम वह संयंत्र कहलाता है जिस पर दरी-कपड़ा ब़ुना जाता है। हर लूम पर दो लोग काम करते थे, लेकिन हालात ये हैं कि अब यहां मात्र दस लूम ही बचे हैं, जिनमें से अधिकांश बंद ही रहते हैं। इसके अलावा 150-200 महिलाएं सूत कातने का काम करतीं थीं। कई लोग सूत की रंगाई का काम करते थे, लेकिन अब यह सब खत्म हो गया। अब उज्जैन और इंदौर आदि से रंगाई कराई जाती है।

दरी बालान सिरोंज का ख्यातिलब्ध कला और व्यवसाय का केंद्र था। यहां अव्वल दर्जे की दरी-जाजम बनती थीं। लेकिन ये हथकरघा उद्योग कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों का शिकार हो गया। पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने इनके उत्थान के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन उत्पाद महंगे होने से ये उद्योग चल नहीं सका। अब फिर सरकार से बात कर इनके काम को पुर्नस्थापित करने का प्रयास करेंगे।
-उमाकांत शर्मा, विधायक सिरोंज
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