यहां गांव में रावण का मंदिर भी है, और जब भी गांव में किसी नए कार्य की शुरूआत होती है तो रावण की पूजा से ही होती है। इस गांव का एक परिवार तो रावण की सेवा में ही समर्पित हो गया है। इस परिवार ने ही रावण का मंदिर बनवाया। परिवार के बच्चों का नाम लंकेश, मेघनाथ और कुंभकरण है।
देश में रावण के प्रति प्रेम रखने वाला परिवार विदिशा जिले के लटेरी तहसील का रहने वाला है। खासतौर पर दशहरा पर इस गांव में बने रावण बाबा मंदिर में विशेष पूजा की जाती है, इसे रावण की महा पूजा कहा जाता है। पूरे गांव के लोग प्राचीन रावण मंदिर में भजन कीर्तन करते है और इस विशेष पूजा में शामिल होत हैं। पूजा में रावण के नाभि पर घी का लेप भी लगाया जाता है। जिससे भगवान राम के द्वारा चलाए गए अग्निबाण की तपिस शांत हो जाए। रावण की महापूजा में गांव के ही नहीं, दूर-दूर लोग आते हैं।
विदिशा जिला नटेरन के पास बसे इस गांव के नाम भी रावण है। इस गांव में अधिकतर ब्राम्हण परिवार निवास करते हैं। गांव में तालाब के साथ ही रावण बाबा का मंदिर है। एक दशक पहले रावण की यह विशाल प्रतिमा एक टीले पर लेटी अवस्था में थी। 6 फीट लम्बी पत्थर की यह प्रतिमा में रावण की नाभि स्पष्ट दिखाई देती है। इस प्रतिमा में रावण के केवल छह सिर दिखाई देते हैं। अन्य चार सिर प्रतिमा के पीछे होने के कारण दिखाई नहीं देते हैं। इस गांव में दशहरे के दिन भी यहां रावण का दहन नहीं किया जाता।
गांव में हर शुभ काम से पहले रावण बाबा की पूजा की जाती है। अक्सर हर शुभ काम की शुरूआत गजानन की पूजा से की जाती है। लेकिन इस गांव में हर शुभ काम की आगाज रावण की पूजा से होता है। यहां तक कि गांव में शादी के बाद दुल्हन सबसे पहले रावण के मंदिर माथा टेकती है। इस क्षेत्र में मान्यता है कि क्षेत्र में बूधो नाम का एक राक्षस था, जिसने रावण के दरबार में रावण से दंगल लड़ने की इच्छा जाहिर की, तब रावण ने कहा था तुम बापस जाओ और जहां रहते हो वहीं मेरी प्रतिमा से लडऩे का अभ्यास करो।
इस इलाके में बूधो की पहाड़ी भी है उसके पास ही यह प्रतिमा आदिकाल से स्थापित है। रावण गांव के लोग जब भी नया वाहनों लाते हैं तो सबसे पहले पूजा कर गाड़ी पर जय लंकेश या रावण बाबा की जय लिखवाते हैं। रावण मंदिर के सामने तालाब बना है गांव में इस तालाब पवित्रता को बनाए रखने के लिए कपड़े नहीं धोए जाते।