पूर्व विधायक पिछले कुछ समय से फेंफड़ों की बीमारी से परेशान थे और उनका भोपाल के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था। रात दो बजे उनके निधन का समाचार मिला और पूरा शहर शोक में डूब गया। उनका पार्थिव शरीर माधवगंज स्थित उनके निवास पर लाया गया, जहां लोगों ने उनके अंतिम दर्शन किए। भाजपा नेताओं सहित कलेक्टर डॉ. पंकज जैन, एसपी विनायक वर्मा सहित अन्य अधिकारियों ने भी उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ. राकेश सिंह जादौन ने उनके पार्थिव शरीर पर भारतीय जनता पार्टी का ध्वज अर्पित किया। खुली गाड़ी में उनके पार्थिव शरीर को मुक्तिधाम ले जाया गया, जहां हजारों लोगों ने उन्हें अंतिम विदााई दी।
लगातार चार बार रहे विधायक
ठा. मोहर सिंह क्षेत्र में दादा के नाम से लोकप्रिय थे, काली और घनी मूंछों और बातचीत के देशी अंदाज के कारण वे हर सभा, समारोह में अपनी पहचान अलग ही रखते थे। दांगी समाज के अध्यक्ष रहे और समाज हित में भी अग्रणी रहे। सन् 1980 में सबसे पहले उन्हें भाजपा ने विदिशा विधानसभा का प्रत्याशी बनाया और वे जीते। इसके बाद लगातार 1985, 1990 और 1993 में भी वे विदिशा विधानसभा क्षेत्र के विधायक बने। 1998 में भाजपा ने मोहरसिंह की जगह उनकी पत्नी सुशीला ठाकुर को प्रत्याशी बनाया और वे चुनाव जीतकर विधायक बनीं।
ठा. मोहर सिंह क्षेत्र में दादा के नाम से लोकप्रिय थे, काली और घनी मूंछों और बातचीत के देशी अंदाज के कारण वे हर सभा, समारोह में अपनी पहचान अलग ही रखते थे। दांगी समाज के अध्यक्ष रहे और समाज हित में भी अग्रणी रहे। सन् 1980 में सबसे पहले उन्हें भाजपा ने विदिशा विधानसभा का प्रत्याशी बनाया और वे जीते। इसके बाद लगातार 1985, 1990 और 1993 में भी वे विदिशा विधानसभा क्षेत्र के विधायक बने। 1998 में भाजपा ने मोहरसिंह की जगह उनकी पत्नी सुशीला ठाकुर को प्रत्याशी बनाया और वे चुनाव जीतकर विधायक बनीं।
जेब में मोहर वाले मोहर सिंह
चार बार के विधायक ठा. मोहरसिंह के खाते में भले ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं रही, लेकिन उनकी सहजता, लोगों के काम के लिए हमेशा तत्पर रहने और बाइक पर बैठकर ही निकल पडऩे वाले इस विधायक की पहचान इस रूप में होती थी कि वे अपनी जेब में मोहर(सील) और पेड लेकर चलते थ्ेा। जहां किसी ने अपनी समस्या का आवेदन दिया, वहीं अपनी जेब से सील निकाली, आवेदन पर लगाई और दस्तखत कर कह दिया जाओ, अब खुश, हो जाएगा तुम्हारा काम। काम हो या न हो, लेकिन आवेदक तो इसी में खुश हो जाता था कि विधायक जी ने आसानी से सिफारिश कर दी।
चार बार के विधायक ठा. मोहरसिंह के खाते में भले ही कोई बड़ी उपलब्धि नहीं रही, लेकिन उनकी सहजता, लोगों के काम के लिए हमेशा तत्पर रहने और बाइक पर बैठकर ही निकल पडऩे वाले इस विधायक की पहचान इस रूप में होती थी कि वे अपनी जेब में मोहर(सील) और पेड लेकर चलते थ्ेा। जहां किसी ने अपनी समस्या का आवेदन दिया, वहीं अपनी जेब से सील निकाली, आवेदन पर लगाई और दस्तखत कर कह दिया जाओ, अब खुश, हो जाएगा तुम्हारा काम। काम हो या न हो, लेकिन आवेदक तो इसी में खुश हो जाता था कि विधायक जी ने आसानी से सिफारिश कर दी।
छात्र राजनीति से विधायक तक का सफर
ठा. मोहर सिंह एसएसएल जैन महाविद्यालय के छात्र रहे और छात्र राजनीति करते हुए ही निर्दलीय पार्षद बने। जनसंघी नेता राघवजी ने उनकी लोकप्रियता को पहचाना और वे उन्हें जनसंघ में लाए। फिर वे भारतीय जनसंघ की ओर से भी पार्षद बने और फिर नपा उपाध्यक्ष भी बने। सन् 1980 में पहली बार भाजपा ने उन्हें विधायक का प्रत्याशी बनाया और फिर लगातार चार बार विधायक बने।
ठा. मोहर सिंह एसएसएल जैन महाविद्यालय के छात्र रहे और छात्र राजनीति करते हुए ही निर्दलीय पार्षद बने। जनसंघी नेता राघवजी ने उनकी लोकप्रियता को पहचाना और वे उन्हें जनसंघ में लाए। फिर वे भारतीय जनसंघ की ओर से भी पार्षद बने और फिर नपा उपाध्यक्ष भी बने। सन् 1980 में पहली बार भाजपा ने उन्हें विधायक का प्रत्याशी बनाया और फिर लगातार चार बार विधायक बने।