विदिशा

झुग्गी बस्तियों के बच्चे कहते हैं वेलकम सर, गुडमार्निंग…

एक युवक दे रहा 100 से ज्यादा बच्चों को निशुल्क शिक्षा

विदिशाMay 29, 2018 / 01:07 pm

govind saxena

झुग्गी बस्तियों के बच्चे कहते हैं वेलकम सर, गुडमार्निंग…

विदिशा। शासकीय संवेदनहीनता के दौर में एक युवक अपने निजी परिश्रम और लगन से झुग्गी बस्तियों के गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर उनका जीवन संवारने का बीड़ा उठाए काम कर रहा है। ठेठ गरीब तबकों के इन बच्चों की कक्षा में जब भी कोई पहुंचता है तो वे सम्मान से खड़े होकर आदर के साथ कहते हैँ वेलकम सर…गुड मार्निंग…।
सफल शिक्षा समिति के मनोज कौशल्य पेशे से एक पैरामेडिकल कॉलेज में काउंसलर हैं। उन्होंने सोशल वर्क में एमए की डिग्री ली है।

एक मित्र के जन्मदिन पर जब वे गंदी बस्तियों में पहुंचे तो वहां के बच्चों की स्थिति देखकर उनके लिए कुछ बेहतर करने का जज्बा जागा। करीब एक वर्ष हो गया, बच्चों के माता-पिता की अनुमति से उन्होंने १५-२० बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर शिक्षा देने का काम शुरू किया था, देखते ही देखते १०० से ज्यादा बच्चे हो गए। कई ८-१० वर्ष की उम्र के ऐसे बच्चे भी कौशल्य से जुड़े हैं, जिन्होंने कभी किसी कक्षा में प्रवेश नहीं लिया। अधिकांश बच्चे स्कूल में नियमित न जाने, बाल मजदूरी करने अथवा पन्नी बीनने वाले हैं।

रोजाना दो घंटे तक इन्हीं झुग्गियों के बच्चों के बीच बिताने और उन्हें पढ़ाने वाले मनोज बताते हैं कि इन बस्तियों में सभी तरह के बच्चे होते हैं, लेकिन यदि ठीक से डील किया जाए तो हर बच्चा पढ़ाई में मन लगाने लगता है। वह बात भी मानता है और पढ़ता भी है। मनोज कहते हैं कि इन बस्तियों मेें कुछ बहुत ही होनहार बच्चे भी हैं, बस मार्गदर्शन की जरूरत है इन्हें।

मनोज के मुताबिक शहर की जतरापुरा नई बस्ती, जतरापुरा पुरानी बस्ती, महलघाट मार्ग की बस्ती, शेरपुरा टीला, करैयाखेड़ा रोड आदि समेत कई बस्तियों में करीब ६०० बच्चे ऐसे हैं जो बालमजदूरी या पन्नी बीनने के कारण नियमित रूप से स्कूल नहीं जा पाते। ऐसे ही बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में जोडऩे का प्रयास वे कर रहे है। वे हर त्यौहार भी इन्हीं बच्चों के साथ मनाते हैं। मुख्य रूप से इन बच्चों को अंग्रेजी और गणित की तैयारी कराई जाती है, ताकि वे मुख्य विषयों में कमजोर न रहें।

मनोज इन दिनों जतरापुरा के प्राथमिक शाला में झुग्गी वाले बच्चों की कक्षाएं लगा रहे हैं। वे बताते हैं कि इन दिनों स्कूल की छुट्टियों के कारण शाला भवन खाली था, उन्हें पेड़ के नीचे पढ़ाते देख शाला प्रभारी एस आर भगत ने उन्हें ग्रीष्मावकाश में शाला भवन के उपयोग की ही इजााजत दे दी और वे स्कूल में इन बच्चों को पढ़ाने लगे। लेकिन एक माह बाद फिर वही हालात बनेंगे और मनोज फिर अपने इन शिष्यों को लेकर किसी पेड़ की छांव या फिर किसी मंदिर का चबूतरा तलाशेंगे, क्योंकि प्रशासन की नजर ऐसे लोगों पर कहां पड़ती है।

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